Saturday, November 28, 2015

संगम

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

श्वेत, श्याम, रतनार
गंगा, यमुना, सरस्वती
मिलें तीन धारायें
होवे संगम न्यारा।

इलाहाबाद में संगम में स्नान करने का अपना अलग ही अनूठा आनंद है. हर जगह गंगा हो या यमुना स्नान नदी के तट पर ही किया जाता है लेकिन संगम में स्नान के लिये नाव द्वारा बीच धार में जाया जाता है, जहाँ गंगा-यमुना का मिलन होता है. सफेद और साँवली दो धारायें बहती हुई अलग-अलग दिखाई देती हैं. सरस्वती का मिलन लुप्त रूप से होता है. किले के नीचे से जहाँ धारायें बहती हैं, कहते हैं वहीं गुलाबी रंग की सरस्वती की धारा को देखा जा सकता है.
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Friday, November 27, 2015

विवाह-उत्सव

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

विवाह दो दिन का उत्सव नहीं
उल्लास  है  जीवन  भर  का
समर्पण एक दूजे को वर-वधू का
निभानी हैं परम्परा दोनों कुलों की।

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Wednesday, November 25, 2015

ऊषा वैसे पौ फटने को कहते हैं किंतु वेदों में इसका अभिप्राय है वह देवी जो मनुष्य के दिमाग के अँधेरे में दैवी प्रकाश लाती है। इसी प्रकार अग्नि शब्द का अर्थ है आग। वेदों में इसका तात्पर्य केवल भस्म करने और शुद्ध करने वाली अग्नि से नहीं उस ऊर्जा और उस संकल्प शक्ति से भी है जो मनुष्य को सत्य की ओर ले जाती है।
गजल
डॉ0 मंजूश्री गर्ग

दीपक की तरह जलना है हमें,
उजाले के लिये लड़ना है हमें।

मंजिल की ओर चले हैं अभी,
बहुत दूर तक चलना है हमें।

दामन है फँसा काँटों में चाहे,
बहारों के लिये खिलना है हमें।

जीवन-भर लुटा कर खुशबुयें
हर-सिंगार सा झरना है हमें।

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Sunday, November 22, 2015

कामना

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

बारिशों के बाद
जैसे छाये हरियाली
पतझड़ के बाद
जैसे खिले बसंत
ऐसे ही जीवन में
फिर आयें खुशियाँ
उदासी का एक पल
सपने में भी ना आये.
चेहरे पे चमक
मन में उल्लास
दस्तक देते हुये
आये इस साल।

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Wednesday, November 18, 2015

धीरे से उठाइये, सँभाल के पढ़िये,
जिंदगी आँसू से गीली किताब है।

                                          डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Tuesday, November 10, 2015

आराधना

श्री गणेश जी
रिद्धि-सिद्धि के संग
सदा विराजें।

श्री लक्ष्मी जी
धन बर्षा करके
सब सुख दें।

श्री सरस्वती
कलाओं में निपुण
विद्या दान दें।

श्री रामचन्द्र
सीता संग धनुष
सदा विराजें।

श्री बिष्णु जी
लक्ष्मी संग चक्र
सदा विराजें।

         डॉ0 मंजूश्री गर्ग

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Saturday, November 7, 2015

दीये झिलमिलाये दीवाली की रात
मानों धरा पे आये गगन से तारे।
           डॉ0 मंजूश्री गर्ग



श्रम से भरें
जीवन सरोवर
खिलें कमल।
      डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Thursday, November 5, 2015

दीवाली

तोरण सजे
देहरी सजी
सजी दीवाली
घर-आँगन
छाया उजाला
घुली मिठास
बतासे सी
मन में छूटें
फुलझड़ियाँ
खिले अनार
खुशियों के।
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     डॉ0 मंंजूश्री गर्ग

Wednesday, November 4, 2015

काँटों भरी डाल खुश,
           फूलों के साथ।

अँधेरी रात खुश,
         तारों के साथ।

सूनी पहाड़ी खुश,
         निर्झर के साथ।

भीगी जिंदगी खुश,
           अपनों के साथ।

                    डॉ0मंजूश्री गर्ग

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Sunday, November 1, 2015

इंसानियत की धरा में
      प्यार के बीज बो दो।
आज नहीं तो कल
       मानवता के फूल खिलेंगे।
        
               डॉ0 मंजूश्री गर्ग
मस्त गगन में उड़ता पंछी
मत पिंजरे में कैद करो
जीते  जी  मर  जायेगा
'गर पिंजरे में कैद हुआ.

                  डॉ0 मंजूश्री गर्ग