Wednesday, September 30, 2015

हाइकु
      डॉ0 मंजूश्री गर्ग

दर्पण जैसे
आईना बनो तुम
रूप निहारूँ।

दिखेगा तुम्हें
अक्स अपना ही
मेरी आँखों में।
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Monday, September 28, 2015

जीवन की चार अवस्थायें
हाइकु


       डॉ0 मंजूश्री गर्ग

उम्र बारह
छूटता बचपन
आता कौमार्य

उम्र बीस में
जोश, उमंग पूरा
आयी जवानी.

उम्र चालीस
उतरती जवानी
आता बुढ़ापा.

उम्र अस्सी
लाठी टेक जिन्दगी
परबस सी.
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Monday, September 21, 2015

राधा रानी के जन्म-दिन पर हार्दिक शुभकामनायें
 
 
शुक्ल पक्ष
भादों मास अष्टमी
राधा जन्मी.
 
 
यमुना तीरे
कदंब तरू तले
बाजे बाँसुरी
 
            डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, September 16, 2015

श्री गणेश जन्म-उत्सव की हार्दिक शुभकामनायें

शुक्ल पक्ष
भादों मास चतुर्थी
गणेश जन्मे.

मोदक प्रिय
मोद से भरें सदा
घर-आँगन.

         डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Monday, September 14, 2015

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें-
14 सितम्बर, 1949 को भारत के संविधान में अनुच्छेद-343 के अनुसार हिंदी को भारत संघ की राजभाषा के रुप में मान्यता दी गयी है. हिंदी-उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली की राजभाषा है और अण्डमान निकोबार, पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र राज्य में हिंदी को द्वितीय भाषा के रुप में स्वीकार किया गया है.

Tuesday, September 8, 2015



रानी पद्मिनी
                    डॉ0 मंजूश्री गर्ग
रानी पद्मिनी सिंघल द्वीप(श्रीलंका) की राजकुमारी व चित्तौड़ के राजा रतनसेन की पत्नी थी. रानी पद्मिनी अत्यंत सुंदर,     वीर व बुद्धिमान थी. दूर-दूर तक राना पद्मिनी के रूप-गुण की चर्चायें हुआ करती थीं. जब आक्रमणकारी अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी के बारे में सुना, तो उसके मन में रानी पद्मिनी से मिलने की तीव्र अभिलाषा जाग्रत हुई, उसने राजा रतनसेन के पास प्रस्ताव रखा कि वह आपको भाई मानता है और एक  बार रानी पद्मिनी से मिलना चाहता है. जब राजा रतनसेन ने अलाउद्दीन खिलजी का प्रस्ताव रानी पद्मिनी से कहा तो वह सुल्तान  अलाउद्दीन खिलजी की कुटिल चाल समझ गयी. उसने कहा, “अलाउद्दीन खिलजी केवल मेरा प्रतिबिम्ब शीशे में देख सकता है.”
     अलाउद्दीन खिलजी अपने सीमित सैनिकों के साथ चित्तौड़ गया और वहाँ रानी पद्मिनी के अपूर्व सौंदर्य को आईने में देखकर ही इतना मोहित हो गया कि उसको पाने के लिये बेचैन हो गया. धोखे से राजा रतनसेन को बंदी बनाकर अपने खेमे(कैम्प) में ले आया और रानी पद्मिनी को संदेश भिजवाया कि यदि अपने पति राजा रतनसेन को जीवित देखना चाहती हो तो स्वंय खेमे में आकर अपने आप को समर्पित करें. पद्मिनी ने बुद्दिमानी से काम लेते हुये दूसरे दिन एक सौ पचास पालकियाँ तैय्यार कराई. उनमें अपनी सखी व नौकरानियों की जगह नारी वेश में चित्तौड़ के जाबांज सिपाहियों को लेकर अलाउद्दीन खिलजी के खेमे में गयीं और राजा रतनसेन को आजाद कराकर चित्तौड़ वापस आ गयी.

1.


तब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ के किले पर सीधे आक्रमण बोल दिया. राजा रतनसेन अपने सिपाहियों के साथ किले के अंदर से ही वीरता के साथ अलाउद्दीन खिलजी और उसकी सेना का सामना करते रहे. धीरे-धीरे चित्तौड़ की सेना कम होती जा रही थी. दूसरे अलाउद्दीन खिलजी ने वह मार्ग भी बंद कर दिया था जिससे रसद किले में पहुँचाई जा रही थी. किले के अंदर का सामान धीरे-धीरे कम होता गया. तब राजा रतनसेन और उसकी सेना ने केसरिया पगड़ी बाँध कर, किले के द्वार खोलकर सीधे अलाउद्दीन खिलजी की सेना से युद्ध किया और किले के अंदर रानी पद्मिनी के साथ सभी नारियों ने संपूर्ण श्रंगार कर सामूहिक रूप से अग्नि प्रज्वलित कर अपने आपको अग्नि में समर्पित कर जौहरकिया. जब चित्तौड़ की सेना पर विजय प्राप्त कर अलाउद्दीन खिलजी व उसकी सेना ने किले में प्रवेश किया तो उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ. मानों जीत के भी हार गये हों.

Friday, September 4, 2015

कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें

कृष्ण-पक्ष
भादों मास अष्टमी
कृष्ण जन्मे.

राधा ही नहीं
रुप, रस, माधुरी
कान्हा के साथ.

          डॉ0 मंजूश्री गर्ग