Thursday, August 27, 2015

वृक्ष की व्यथा

किसलिये? किसके लिये जी रहे हैं हम?
ताप, शीत, झंझायें  सह  रहे  हैं  हम.
विष  पीकर  अमृत  दे  रहे  हैं  हम.
फिर  भी  चोटें  सह  रहे  हैं  हम.



                                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग



Saturday, August 22, 2015

हाइकु


पर काट के
उड़ने को कहते
और क्या कहें!

तीर से चुभे
व्यंग्य तुम्हारे
जब भी मिले.

                                         डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Thursday, August 20, 2015

कौन रोकेगा
सूरज की चमक
औ' कब तक

                                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Sunday, August 16, 2015

सावन-गीत


राजा दिल्ली को जाना  जी
कि वहाँ से लाना धनुषपुरी.

रानी हम नहीं जाने जी
कि कैसी तेरी धनुषपुरी
राजा ऊदो-ऊदो डंडिया जी
किनारी चारों ओर लगी.

राजा दिल्ली को जाना जी
कि वहाँ से लाना धनुषपुरी

रानी हम कैसे देखें जी
कि कैसी लागे धनुषपुरी
राजा 'तीजों' को आना जी 
कि वहीं देखो धनुषपुरी

राजा दिल्ली को जाना जी
कि वहाँ से लाना धनुषपुरी

रानी पहन के निकलीं जी
कि अँगना में फिसल पड़ी.
हम नहीं जाने जी 
कि रानी तेरी चाल बुरी
हम नहीं जाने जी
कि राजा तेरी नज़र बुरी.
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Friday, August 14, 2015

बाबूजी की पुण्य-तिथि पर
15 अगस्त, 2015

तुम हो सूरज
तुम से ही
सब दीप जले
तुम से ही दमके
माँ चंदा सी.

                          डॉ0 मंजूश्री गर्ग
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं

लाल किले पे
लहराये तिरंगा
शान हमारी.
 
                                          डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Sunday, August 9, 2015

टूटने लगीं, रिश्तों की कड़ियाँ,
मन की गाँठें, सुलझती ही नहीं.

                                               डॉ0 मंजूश्री गर्ग






लकीरें नहीं
अनुभव-आखर
लिखे माथे पे.
--------डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Thursday, August 6, 2015

गरल पी कर जो मुस्काये,
वही तो शिव कहलाये.
     -डॉ0 मंजूश्री गर्ग


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'कौर' भी स्वर्ण!
अभिशाप बना है
वरदान पा.

    -डॉ0 मंजूश्री गर्ग