Friday, July 31, 2020





















सीता की प्रतिज्ञाः

शूल नहीं चुभे थे कभी
कंटक भरी राहों में,
क्योंकि तुम साथ थे.
रावण की लंका में भी
रही थी सुकून से
क्योंकि तुम साथ थे.

आज अकारण ही
निर्वासित किया है तुमने
जानते हुये भी कि
गर्भ में तुम्हारा ही अंश है.

बहुत ही अकेली
महसूस कर रही हूँ
मैं जग में.
अपनी ही परछाईं से
डर रही हूँ
मैं वन में.

आज राम तुमने नहीं!
मैंने निर्वासित किया है
तुम्हें ह्रदय से.
भूमि से जन्मी हूँ
भूमि में समा जाऊँगी
पर वापस तुम्हारी
अयोध्या में
कभी नहीं आऊँगी.


श्रीराम के उद्गारः

सीते! वृथा व्यथित होती हो प्रिये!
तुम्हारा राम तो तुम्हारे साथ है।
मृदुल, सौम्य राम तुम्हारे साथ ही
निर्वासित हुआ है अयोध्या से।

अयोध्या में तो अयोध्या की निष्ठूर प्रजा का
निष्ठूर राजा राम है, ह्रदयहीन राम है।
तुम बिन अयोध्या ही नहीं,
श्रीहीन है अयोध्या का राजसिंहासन भी।
वंदनीय राम दरबार की वही झाँकी होगी
जहाँ तुम विराजति हो सस्मित राम के वाम अंग।

----------------

Thursday, July 30, 2020



हर पड़ाव
देते हमें विश्राम
राह में बने।

                                  डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, July 28, 2020



राधा ही नहीं,
रूप, रस, माधुरी
कान्हा के साथ।

                            डॉ. मंजूश्री गर्ग


Monday, July 27, 2020


कैसे कह दूं कि मुलाकात नहीं होती है।
रोज मिलते हैं मगर बात नहीं होती है।

                                               शकील बदायूंनी

Sunday, July 26, 2020



दिन ढ़लते
निस्तेज हुआ सूर्य
सहमी शाम।

                             डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, July 24, 2020



प्रकृति का कोप


डायनासोर से
कंक्रीट के जंगल
धीरे-धीरे खाने लगे
नदी से रेत
पर्वत से पत्थर
वन से लकड़ी
खानों से लोहा।
धीरे-धीरे धरती पे
बढ़ने लगा प्रकृति का कोप
आने लगी बाढ़ें
होने लगे झंझावात
भूकंप, सुनामी
रोज की सी बातें।

       डॉ. मंजूश्री गर्ग
     



Thursday, July 23, 2020



चार दीवारें
घर नहीं;  बनाती
सिर्फ मकान।

                                 डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, July 21, 2020



कटीले शूल भी दुलरा रहे हैं पाँव को मेरे।
कहीं तुम पंथ पर पलकें बिछाए तो नहीं बैठी।।

                                                      बाल स्वरूप राही

Monday, July 20, 2020



मन की बातें मन से लिखकर मन तक ही पहुँचाना है।
व्यथा कथा इस जग की लिखकर जग को ही समझाना है।।

                                                                       सीमा हरि शर्मा

Friday, July 17, 2020



सोने चाँदी की तराजू में न तोलो उसको
प्यार अनमोल सुदामा के हैं चावल की तरह।

                                                              उदयभानु हंस

Thursday, July 16, 2020




विष्णु प्रभाकर


डॉ. मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि-  21 जून 1912
पुण्य-तिथि- 11 अपैल 2009

विष्णु प्रभाकर का जन्म उत्तर प्रदेश के मीरापुर गाँव में हुआ था. आपके पिता दुर्गाप्रसाद धार्मिक विचारों के थे और माता महादेवी शिक्षित महिला थीं और उन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का विरोध किया था. घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी इसलिये कम उम्र में ही आपने नौकरी करनी प्रारंभ कर दी और अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. अपनी लगनशीलता से हिन्दी में प्रभाकर और हिन्दी भूषण की उपाधि प्राप्त की. साथ ही संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी की बी. ए. की डिग्री प्राप्त की. आपका नाम प्रारंभ में विष्णु दयाल था, बाद में विष्णु प्रभाकर रखा. कुछ समय आकाशवाणी में नाट्य निर्देशन का कार्य किया.

विष्णु प्रभाकर पर महात्मा गाँधी के विचारों का बहुत प्रभाव था. स्वतंत्रता संग्राम में अपनी लेखनी के द्वारा निरंतर संघर्षरत रहे. आपने प्रेमचंद, जैनेन्द्र, अज्ञेय जैसे लेखकों के साथ रहकर भी अपनी अलग पहचान बनायी. कभी किसी खेमे में नहीं रहे. आपने लघु कहानी, नाटक, कहानी, उपन्यास, एकांकी, जीवनी, आत्मकथा, आदि विपुल मात्रा में कथा साहित्य की रचना की. आपकी पहली कहानी सन् 1931 ई. में दीवाली प्रकाशित हुई. आपको प्रसिद्धि प्रमुख रूप से बांग्ला लेखक श्री शरतचंद्र की जीवनी आवारा मसीहा लिखने पर मिली, जो सन् 1974 ई. में प्रकाशित हुई. प्रारम्भ में  आवारा मसीहा नाम पर भी विवाद था, जिस पर आपने लिखा-

आवारा मनुष्य में सब गुण होते हैं पर उसके सामने दिशा नहीं होती. जिस दिन उसे दिशा मिल जाती है उसी दिन वह मसीहा बन जाता है. मुझे खुशी है कि अधिकांश मित्रों ने इस नाम को इसी सन्दर्भ में स्वीकार कर लिया.
आपकी प्रमुख रचनायें हैं-

उपन्यास- ढ़लती रात, अर्द्धनारीश्वर, स्वप्नमयी, क्षमादान, दो मित्र, पाप का घड़ा, आदि.
कहानी-संग्रह- धरती अब भी घूम रही है, संघर्ष के बाद, मेरा वतन, खिलौने, आदि और अन्त.
नाटक- टूटते परिवेश, हत्या के बाद, अशोक, अब और नहीं, प्रकाश और परछाइयाँ, नवप्रभात, डॉक्टर, आदि
एकांकी-संग्रह- उजास
कविता-संग्रह- चलता चला जाऊँगा (मृत्यु के बाद सन् 2010 में प्रकाशित)
आत्म-कथा- तीन भाग- पंखहीन, और पंछी उड़ गया, मुक्त गगन में.

विष्णु प्रभाकर को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया जैसे- पद्म भूषण, मूर्तिदेवी सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार. सन् 2005 में राष्ट्रपति भवन में कथित दुर्व्यवहार के कारण आपने पद्म भूषण की उपाधि लौटा दी थी.

विष्णु प्रभाकर आधुनिक लेखकों को भी पढ़ते थे और समय-समय पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त भी करते थे. आधुनिक विचारों का आपके व्यक्तित्व पर बहुत प्रभाव भी था. यही कारण था कि आपकी इच्छानुसार आपका पार्थिव शरीर भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को सौंप दिया गया.

विष्णु प्रभाकर की कविता का अंश-
त्रास देता है जो
वह हँसता है
त्रसित है जो
वह रोता है
कितनी निकटता है
रोने और हँसने में।

         विष्णु प्रभाकर



Wednesday, July 15, 2020



आभास तुम्हारा पारस है।
मन सोने सा कर जाता है।।

                      सीमा हरि शर्मा

Tuesday, July 14, 2020



अंतहीन संवाद है
अपने ही प्रश्नों से
घिरे हैं हम
मृत्यु-पर्यन्त।

                 डॉ. मंजूश्री गर्ग


Sunday, July 12, 2020



घर-बाहर,
देहरी का दीपक,
करे उजाला।

                                    डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, July 10, 2020



तेरी बाँहों में
सावन के झूलों की
पेंगे मिली हैं।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग

Thursday, July 9, 2020


पास बैठे रहो, चाहे रूठे ही रहो।
मुस्का के मना लेंगे तुम्हें।
प्यार से, मनुहार से मना लेंगे तुम्हें।
फिर भी अगर ना माने तो
खुद रूठ कर मना लेंगे तुम्हें।

                   डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, July 8, 2020



रैन बिना जग दुखी और चन्द्र बिन रैन।
तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैन।।
                                             अमीर खुसरो

Monday, July 6, 2020



कभी मुस्कुराया, कभी गुनगुनाया।
इस तरह आँसुओं को बहलाया।।

                                        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, July 5, 2020




गुरू मेरा ज्ञान, गुरू हिरदय ध्यान, गुरू गोपाल पुरख भगवान,
गुरू मेरी पूजा, गुरू गोविन्द, गुरू मेरा पार ब्रह्म, गुरू भगवंत।
                                           गुरू गोविन्दसिंह




5 जुलाई, 2020 गुरू पुर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें

समाज में अध्यापक का महत्वपूर्ण स्थान है. वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में बौध्दिक परम्परायें और तकनीकी कौशल पहुँचाने का केन्द्र है और सभ्यता के प्रकाश को प्रज्वलित रखने में सहायता देता है।
                                      डॉ. राधा कृष्णन्




Friday, July 3, 2020



परीक्षा-घड़ी
धैर्य और संयम
खोयें ना हम।

               डॉ. मंजूश्री गर्ग


Wednesday, July 1, 2020




1जुलाई, 2020 डॉ. कुँअर बेचैन जी को शुभ जन्म-दिन की हार्दिक शुभकामनायें
एवम्
दीर्घायु की कामना के साथ
आपके ही गीत का कुछ अंश

सूखी मिट्टी से कोई भी
मूरत ना कभी बन पायेगी
जब हवा चलेगी, यह मिट्टी
खुद अपनी धूल उड़ायेगी
                    इसलिए सजल बादल बनकर, बौछार के छींटे देता चल।
                   यह दुनिया सूखी मिट्टी है, तू प्यार के छींटे देता चल।।

सूरज डूबा तो अम्बर को दे गया सितारों के छींटे
मधुऋतु भी जाने से पहले दे गयी बहारों के छींटे
सावन लौटा तो दुनिया को मिल गये मल्हारों के छींटे
बादल भी मिटने से पहले दे गया फुहारों के छींटे

तू भी कुछ नयी उमंगों से
अपने जीवन के रंगों से
               सुबहों-जैसे शुभ सिंदूरी श्रृंगार के छींटे देता चल।
                     यह दुनिया सूखी मिट्टी है, तू प्यार के छींटे देता चल।।


 ------