सीता की प्रतिज्ञाः
शूल नहीं चुभे थे कभी
कंटक भरी राहों में,
क्योंकि तुम साथ थे.
रावण की लंका में भी
रही थी सुकून से
क्योंकि तुम साथ थे.
आज अकारण ही
निर्वासित किया है तुमने
जानते हुये भी कि
गर्भ में तुम्हारा ही अंश
है.
बहुत ही अकेली
महसूस कर रही हूँ
मैं जग में.
अपनी ही परछाईं से
डर रही हूँ
मैं वन में.
आज राम तुमने नहीं!
मैंने निर्वासित किया है
तुम्हें ह्रदय से.
भूमि से जन्मी हूँ
भूमि में समा जाऊँगी
पर वापस तुम्हारी
अयोध्या में
कभी नहीं आऊँगी.
श्रीराम के उद्गारः
सीते! वृथा व्यथित होती हो
प्रिये!
तुम्हारा राम तो तुम्हारे
साथ है।
मृदुल, सौम्य राम तुम्हारे
साथ ही
निर्वासित हुआ है अयोध्या
से।
अयोध्या में तो अयोध्या की
निष्ठूर प्रजा का
निष्ठूर राजा राम है,
ह्रदयहीन राम है।
तुम बिन अयोध्या ही नहीं,
श्रीहीन है अयोध्या का
राजसिंहासन भी।
वंदनीय राम दरबार की वही
झाँकी होगी
जहाँ तुम विराजति हो सस्मित
राम के वाम अंग।
सराहनीय लेखनी 👍
ReplyDeleteधन्यवाद!
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