Thursday, December 31, 2020




नव वर्ष 2021 की हार्दिक शुभकामनायें

 

नया सवेरा

रोशन होंगी राहें

चहके मन।

 

                  डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, December 30, 2020


खुशी के पल

धूप खिली आँगन

छँटा कोहरा।


                                 डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, December 27, 2020


खुशी या गम

मनाने का मौसम

तो अभी नहीं।


                         डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, December 24, 2020


बादलों से आ

मोती बनी सीपी में

एक बूँद थी।


                                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, December 23, 2020


उलझे नैन

टूटे रिश्ते सारे

बँधी है प्रीत।


                                  डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, December 22, 2020


नई उमंगें

नई चाह मन में

जिलाती हमें।


                                  डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, December 19, 2020


धुंध हटेगी

आज नहीं तो कल

होगा उजाला।


                                   डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, December 18, 2020


अँजुरी-जल

गंगा का अभिषेक

गंगा जल से।


                            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, December 17, 2020


अटल हैं जो 

अडिग हैं इरादे।

ध्रुव हैं वही।


                                       डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, December 15, 2020


मधुर स्पर्श तुम्हारा जीने की नई चाह जगाता।

मानों हरित हुआ हो पौधा, पाकर बारिश की बूँदें।।

 

                      डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Saturday, December 12, 2020


कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है

रोज मिलते हैं मगर बात नहीं होती है।


                                         शकील बदायूंनी 

Monday, December 7, 2020


सुबह हो चाहे जितनी सबेरे

शाम से पहले शाम न हो

रात से पहले रात।

बसंत चाहे खिले शिशिर में

पतझड़ से पहले पतझार न हो।

 

        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, December 2, 2020


छोटा सा दिन

लम्बी होती रातें 

दिसम्बर में।


                                      डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, December 1, 2020


आँचल हिले

तारे झिलमिलायें

चाँद चमके।


                                          डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, November 30, 2020


कहीं न उनकी नजर से नजर किसी की लड़े।

वो इस लिहाज से आँखें झुकाए बैठे हैं।


                                    नूर नारवी 

Friday, November 27, 2020


वो शाम को घर लौट के आएंगे तो फिर

चाहेंगे कि सब भूल कर उनमें खो जाऊँ

जब इन्हें जागना है   मैं भी जागूं

जब नींद इन्हें आये तो मैं भी सो जाऊँ।


                                                      जां निसार अख्तर


Thursday, November 26, 2020


अनजाने के साथ, अनजाने पथ पे।

बढ़ तो गये कदम, पर सहमी है पायल।।

                                  डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Tuesday, November 24, 2020


हवायें जरा धीरे चलो,

नदिया जरा धीरे बहो।

अधूरी है कहानी अभी,

मत कहना दूर तक अभी।

 

                                 डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Monday, November 23, 2020


जरा आहट से टूटी नींद की टहनी।

ख्वाबों के जो फूल खिले थे बिखर गये।।

 

                                 डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

 

जिंदगी सुंदर गजल है दोस्तों

जिंदगी को गुनगुनाना चाहिए।


                                             आजिम कोहली

Thursday, November 19, 2020

 


खिलेंगे फूल

मौसम आने पर

धीरज धरो।


                                     डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, November 18, 2020


ये साज भी इंसानी हुनर की मिसाल है।

संगीत उतर आता है लोहे के तार में।।


                                         लक्ष्मीशंकर वाजपेयी 

Monday, November 16, 2020


यादों की छाँव में बैठ, जिंदगी कटती नहीं।

कुछ आज में जी लें, कुछ कल के सपने बुन लें।।

 

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, November 13, 2020



 

दीपावली 2020 की हार्दिक शुभकामनायें

 

आओ! आशा और विश्वास के दिये जलायें।

निराशा का अँधेरा दूर करने का करें प्रयास।।

      डॉ. मंजूश्री गर्ग        

  

Wednesday, November 11, 2020

 

पासे का खेल

'चौपड़' बना 'लूडो'

वही पुराना।


                       डॉ. मंजूश्री गर्ग

Thursday, November 5, 2020


धागे में पिरे

माला बन गये ये

मोती निराले।


                                     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, November 2, 2020


चंद्र श्रीहीन

सूरज सुषमामय

प्रातः बेला में।


                             डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, October 31, 2020

 

दो चाँद दिखे,

ब्लू मून कहलाये,

एक माह में।

               डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

 


Thursday, October 29, 2020

 


बड़ों का साया पेड़ों जैसा।

धूप पी के देते हमें छाँव।।

 

                                    डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, October 28, 2020


चमकेगी ही

विरोधों में प्रतिभा

जैसे दीपक।

                                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, October 26, 2020



मुठ्ठी भर धूप,

उछाल दो।

गम के बादलों पे,

गम भी मुस्कुरायेंगे।।


               डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, October 25, 2020

 एक कंकरी

अनगिन लहरें

शांत झील में।


                                        लक्ष्मी शंकर वाजपेयी

Thursday, October 22, 2020


नया संघर्ष

नई ऊँचाई पे ही

जन्म है लेता।


                                          डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, October 19, 2020

 

तुम आई हो।

उजाला ही उजाला।

मन-आँगन।

                                  डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, October 16, 2020

 


गुब्बारे


डॉ. मंजूश्री गर्ग

रंग-बिरंगे

प्यारे-प्यारे

मन भावन

गुब्बारे सारे.

लाल, गुलाबी

नीले, पीले

हरे, बैंगनी

कितने सारे.

बच्चों की हैं

मुस्कान औ

खिलौने प्यारे

गुब्बारे सारे.

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Thursday, October 15, 2020



जहर से जैसे वो अमृत निकाल देता है।

दरख्त धूप को साये में ढ़ाल देता है।।


                                       लक्ष्मीशंकर वाजपेयी 

Wednesday, October 14, 2020

 


हिन्दी काव्य में गंगा का वर्णन

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

भारतीय संस्कृति में गंगा, यमुना, सरस्वती, सिंधु, कावेरी, आदि पवित्र नदियों का विशेष महत्व है. प्रायः हर युग के कवियों ने किसी न किसी नदी का वर्णन अपने काव्य में किया है जैसे प्रस्तुत पंक्तियों में आदिकाल के कवि ने त्रिवेणी(गंगा,यमुना, सरस्वती) का वर्णन किया है-

 

प्रागराज सो तीरथ ध्यावौ। जहँ पर गंग मातु लहराय।

एक ओर से जमुना आई। दोनों मिलीं भुजा फैलाय।

सरस्वती नीचे से निकलीं। तिरबेनी सो तीर्थ कहाय।

X             x              x              x              x

सुमिर त्रिबेनी प्रागराज की। मज्जन करे पाप हो छार।

 

                                  जगनिक

प्रस्तुत पंक्तियों में भक्तिकाल के कवि ने गंगा जी के अवतरण की संक्षिप्त कथा का वर्णन किया है- अंशुमान और दिलीप के तप करने पर भी गंगा जी धरती पर नहीं आई. जब भगीरथ ने तप किया तब गंगा जी ने दर्शन दिये-

 

अंशुमान सुनि राज बिहाइ। गंगा हेतु कियो तप जाइ।

यही विधि दिलीप तप कीन्हो। पै गंगा जू बरनहिं दीन्हों।

बहुरि भगीरथ तप बहु कियौ। तब गंगा जू दरसन दियौ।

 

                          सूरदास

 

 

प्रस्तुत पंक्तियों में आधुनिक काल के कवि ने ग्रीष्म कालीन गंगा जी का वर्णन किया है-

 

सैकत शैया पर दुग्ध धवल,

शशि मुख से दीपित मृदु का तल,

लहरें उस पर कोमल कुंतल।

गौर अंगों पर सिहर-सिहर,

लहराता तार तरल सुंदर।

चंचल अंबर सा नीलांबर।

साड़ी की सिकुड़न-सी जिस पर,

शशि की रेशमी विभा से भर,

सिमटी है वर्तुल मृदुल लहर।

 

                      सुमित्रानंदन पंत

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Tuesday, October 13, 2020


हर एक बात को चुपचाप क्यूँ सुना जाये।

कभी तो हौसला करके नहीं कहा जाये।।

 

                                                निदा फाजली

Monday, October 12, 2020


आँगन में ये दीवारें क्यों उठ रही हैं बोलो

क्यों पड़ गयी दरारें घर-घर मैं पूछता हूँ।

                             -गुलशन मदान

 


 

  

Thursday, October 8, 2020

 

कचनार


डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

कचनार का वृक्ष सड़क किनारे या उपवनों में अधिकांशतः पाया जाता है। नवंबर से मार्च तक के महीनों में अपने गुलाबी व जामुनी रंगों के फूलों से लदा ये वृक्ष अपनी सुंदरता से सहज ही सबका मन मोह लेता है। 

सन् 1880 ई. में हांगकांग के ब्रिटिश गवर्नर सर् हेनरी ब्लेक(वनस्पतिशास्त्री) ने अपने घर के पास सुमद्र किनारे कचनार का वृक्ष पाया था। उन्हीं के सुझाये हुये नाम पर कचनार का वानस्पतिक नाम बहुनिया ब्लैकियाना पड़ गया। कचनार हांगकांग का राष्ट्रीय फूल है और इसे आर्किड ट्री के नाम से भी जाना जाता है। भारत में मुख्यतः कचनार के नाम से ही जाना जाता है। संस्कृत भाषा में कन्दला या कश्चनार कहते हैं। भारत में यह उत्तर से दक्षिण तक सभी जगह पाया जाता है।

 कचनार के पेड़ की लंबाई 20 फीट से 40 फीट तक होती है। कचनार अपनी पत्तियों के आकार के कारण सहज ही पहचान में आ जाता है। पत्तियाँ गोलाकार होती हैं और अग्रभाग से दो भागों में बँटी होती हैं। मध्य रेखा से आपस में जुड़ी होती हैं। इसकी पत्तियों की तुलना ऊँट के खुर से भी की जाती है। कचनार के गुलाबी रंग के फूल के पेड़ों में जब फूल आने शुरू होते हैं तो अधिकांशतः पत्तियाँ झड़ जाती हैं। जामुनी रंग के कचनार के पेड़ों में प्रायः फूलों के साथ पत्तियाँ भी रहती हैं। कचनार के फूलों में पाँच पँखुरियां होती हैं और फूलों से भीनी सुगंध आती है।

कचनार के पेड़ भूस्खलन को भी रोकते हैं। कचनार के फूल की कली देखने में भी सुंदर होती है और खाने में स्वादिष्ट भी। कचनार के वृक्ष अनेक औषधि के काम आते हैं व इससे गोंद भी निकलता है। कचनार की पत्तियाँ दुधारू पशुओं के लिये अच्छा आहार होती हैं।


Wednesday, October 7, 2020

 

स्वाद है!

सुगंध है!

साँसों की

लय है!

घर में ही

जीवन

नवरंग है।

             डॉ. मंजूश्री गर्ग


Monday, October 5, 2020


नेह की नमी

हँसी की धूप मिले

खिले जीवन।


                              डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, October 4, 2020

 

जिसके आँगन में अमीरी का शजर लगता है।

उनका हर ऐब जमाने को हुनर लगता है।।


                                                     अंजुम रहबर

Thursday, October 1, 2020

 


गोधूलि बेला

कृष्ण हाँकते गायें

बजायें वंशी।


                         डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, September 28, 2020


पत्थर दिल

टूटेंगें, बिखरेंगे

झुकेंगे नहीं।


                                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, September 22, 2020


आकाश छूने

चले यूकलिप्टस

धरती सोख।


                                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, September 17, 2020


वह नहीं नूतन कि जो प्राचीनता की जड़ हिला दे

भूल के इतिहास का आभास ही मन से मिटा दे।

जो पुरातन को नया कर दे मैं उसे नूतन कहूँगा। 

                                         बलवीर सिंह रंग

 

Sunday, September 13, 2020

 


नफरत की तपती धरती में

कहीं छिपे हैं बीज प्रेम के।

आओ नेह का मेह बरषायें

उगेगी हरियाली अपनेपन की।

 

                   डॉ. मंजूश्री गर्ग

 


Saturday, September 12, 2020

 


मस्त गगन में उड़ता पंछी

मत पिंजरे में कैद करो।

जीते जी मर जायेगा

गर पिंजरे में कैद हुआ।

 

                   डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, September 11, 2020

 


विक्रमी संवत्-हिन्दू नव-वर्ष

(अधिक मास विशेष)

डॉ. मंजूश्री गर्ग

विक्रम संवत् हिन्दू पंचांग में समय गणना की प्रणाली का नाम है. यह संवत् 57 ई.पू. आरम्भ हुआ था. इसके प्रणेता उज्जैन के राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य थे. बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रमी सम्वत् से ही शुरू हुआ. महीने का हिसाब सूर्य और चन्द्रमा की गति पर रखा जाता है. बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं. जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्राति होती है. पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है, जैसे-

महीनों के नाम    पूर्णिमा के दिन नक्षत्र, जिसमें चन्द्रमा होता है

1.चैत्र                    चित्रा, स्वाति

2.बैशाख                  विशाखा, अनुराधा

3. ज्येष्ठ                 ज्येष्ठा, मूला

4.आषाढ़                  पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, सतभिषा

5.श्रावण                  श्रवण, धनिष्ठा

6. भाद्रपद                पूर्वाभाद्र, उत्तराभाद्र

7. आश्विन, क्वार          अश्विन, रेवती, भरणी

8.कार्तिक                 कृतिका, रोहिणी                                         9.मार्गशीर्ष(अगहन)          मृगशिरा, उत्तरा

10. पौष(पूस)              पुनर्वसु, पुण्य

11. माघ                 मघा, अश्लेषा

12. फाल्गुन                   पूर्वाफाल्गुन, उत्तर फाल्गुन, हस्त

 

चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा 26.3 दिन में पूरी करता है. सौर वर्ष का मान 365 दिन, 15 घड़ी, 22 पल और 57 विपल है. चंद्र वर्ष का मान 354 दिन, 22 घड़ी, एक पल और 23 विपल है. इस प्रकार चंद्र वर्ष सौर वर्ष से 11 दिन 3 घाटी 48 पल छोटा है. इसीलिये हर तीसरे वर्ष विक्रमी संवत् में एक महीना जोड़ दिया जाता है, जिसे अधिक मास, पुरूषोत्तम मास या मल मास के नाम से जाना जाता है. अधिक मास शुक्ल पक्ष की पड़वा से शुरू होता है और कृष्ण पक्ष की अमावस तक माना जाता है. अधिक मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं होता, जैसे- गृह प्रवेश, नामकरण संस्कार, विवाह संस्कार, आदि. अधिक मास में कोई व्रत, त्यौहार भी नहीं मनाये जाते हैं. जिस वर्ष जिस महीने में अधिक मास होता है उसके कृष्ण पक्ष के व्रत व त्यौहार अधिक मास से पहले मनाये जाते हैं और शुक्ल पक्ष के व्रत व त्यौहार अधिक मास के बाद मनाये जाते हैं. इस वर्ष विक्रमी संवत् 2077, सन् 2020 ई. में  अधिक मास आश्विन(क्वार) का महीना है. अतः श्राद्ध पक्ष अधिक मास से पहले मनाया जा रहा है(2 सितंबर से 17 सितंबर तक) और नवरात्र अधिक मास के बाद 16 अक्टूबर से शुरू होंगे. अधिक मास में पूजा अर्चना, भगवत् भजन करने का विशेष महत्व है, इसलिये इसे पुरूषोत्तम मास भी कहते हैं. अधिक मास के कारण ही दीपावली का त्यौहार हर तीसरे वर्ष लगभग 20 दिन आगे हो जाता है.

हिन्दू धर्म के सभी व्रत और त्यौहार विक्रमी संवत् के कलैण्डर के अनुसार ही होते हैं.

आजकल अधिकांश ज्योतिषी हिन्दू नव वर्ष का प्रारम्भ चैत्र मास में अमावस के दूसरे दिन गुड़ी पड़वा से मानते हैं जबकि विक्रमी संवत् प्रारम्भ हुये आधा महीना बीत चुका होता है. उनका मानना है कि गुड़ी पड़वा बहुत शुभ दिन है- इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी और चैत्री नवरात्र भी इसी दिन से शुरू होते हैं. दोनों ही बातें सही हैं, लेकिन जब ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की तब ना हम थे ना तुम. ना पृथ्वी थी, ना चन्द्र और सूर्य. फिर कौन चन्द्र-सूर्य की गणना करता और कैसे. जब ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की तब तो ब्रह्मांड में पूर्ण अंधकार ही होगा. धीरे-धीरे करके एक-एक ज्योति पिंड प्रकाशित हुये होंगे.

फिर विक्रमी संवत् की शुरूआत तो उज्जैन के महाराजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने की थी, वो भी कितने शुभ दिन जब चारों ओर रंगों की धूम मची है. बच्चे-बूढ़े, अमीर-गरीब सभी सूखे-गीले रंगों से सरोबार हर्षोल्लास से होली का पर्व मना रहे हैं. प्रकृति ने भी जी भर कर रंग बिखेरे हैं. जहाँ जंगलों में टेसू के फूल खिल रहे हैं, वहीं उपवनों में गुलाब, गेंदा न जाने कितने प्रकार के रंग-बिरंगे फूल खिल रहे हैं. वृक्षों में होड़ लगी है खड़-खड़ पुराने वस्त्र बदल नये वस्त्र धारण करने की. आम के बागों में बौर की महक है और कोयल ने फिर से नव राग में कुहुकना शुरू कर दिया है------

नये साल ने दस्तक दी

हवाओं ने करवट ली

चाँद फिर लगा मुस्कुराने

सूरज ने फैलाईं नव किरणें

पक्षी नव राग में गायें

फूल नव सौरभ बरसायें।

     डॉ. मंजूश्री गर्ग

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