Saturday, March 31, 2018



शेष हैं अभी मधुमास के दिन
प्रिय! प्रीत के, मनुहार के दिन।
आओ! जी भर जी ले इन्हें, बनेंगे
यहीं सहारा जीवन की धूप में।

                                                डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Thursday, March 29, 2018



कर रही श्रृंगार प्रकृति सुन्दरी,
आयेंगे आज बसंत कुअँर।

नव वल्लरियों से सजा तोरण,
पीत पराग से आपूरित आँगन।

नव किसलयों से सजा वन,
नव सुमनों से सजा उपवन।

पक्षी के रागों में शहनाई की धुन,
कोयल की कुहू में माठी सी धुन।

                                                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग





Wednesday, March 28, 2018



मृदु मुस्कान मुख पे,
धनुष-बाण हाथ में,
बाल-छवि राम की,
सोहे दशरथ के आँगन।

                                        डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Monday, March 26, 2018



अनमोल रत्न हैं ये
यूँ ही ना लुटा देना।
कुछ फूल हैं जो झरे,
खुशी के पलों में।
कुछ आँसू हैं जो बहे,
गमों के पलों में।
रखना सँभाल के,
दिल की किताब में।

                                                    डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Sunday, March 25, 2018



प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने पति-पत्नी के प्रथम मिलन का बहुत ही मनोहारी वर्णन किया है- पत्नी प्रथम संकोचवश ना-ना करती है लेकिन धीरे-धीरे पति की बाँहों में अपने को समर्पित कर देती है-

धारी जब बाँही तब करी तुम नाहीं,
पायँ दियौ पलिकाही, नाहीं नाहीं कै सुहाई हौ।
बोलत मैं नाहीं, पट खोलत मैं नाहीं, कवि
दूलह उछाही लाख भाँतिन लहाई हौ
चुंबन में नाहीं परिरंभन में नाहीं, सब
आसन विलासन में नाहीं ठीक ठाई हौ।।
मेलि गलबाहीं, केलि कीन्हों चितचाहीं, यह
हाँते भली नाहीं सो कहाँ न सीखि आई हौ।
                                 दूलह











रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें


सरयू तीर
चैत्र शुक्ल नवमी
राम जन्मे।

सरयू तीर
चैत्र शुक्ल नवमी
भरत जन्मे।

सरयू तीर
चैत्र शुक्ल नवमी
लक्ष्मण जन्मे।

सरयू तीर
चैत्र शुक्ल नवमी
शत्रुघ्न जन्मे।

                     डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Friday, March 23, 2018



स्नेह बाती जुड़ी मन की लौ से,
पारा काजर दिल की प्याली में।
आजाँ आँखन में मिलन की रातों में,
बह गया सब विरह की रातों में।

                          डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, March 21, 2018


बड़े प्यार से फिर बुलाया है दुश्मनों की टोली ने,
लगता है नयी साजिश रची है हमारे खिलाफ।

                                                                              डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Tuesday, March 20, 2018


बसंत का वर्णन


प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने बसंत को कामदेव का बालक बताया है और सारी प्रकृति उसे दुलारने में लगी है-

डार द्रुम पलना, बिछौना नवपल्लव के,
सुमन झगुला सोहै तन छवि भारी दै।
पवन झुलावै केकी कीर बहरावै देव,
कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी दै।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतानि सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत, ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।

                       देव

Monday, March 19, 2018

हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

चलता सदा
दशरथ का रथ
दसों दिशायें।

जिंदगी कभी
ठुमकती औ कभी
है ठुनकती।

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Friday, March 16, 2018


नजरों के नजर से मिलते ही
छा गया प्रीत रंग, ऐसे ही
जैसे आकाश समुद्र के मिलते ही
छा जाये नील रंग नजरों में।

                                            डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Thursday, March 15, 2018




खुशबुओं के मेले में भटकते रहे हम,
मन में बसी खुशबू मिली कहीं नहीं।

                              डॉ0 मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, March 14, 2018



हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

चंद्र-मुख
सीपी में मोती सम
देखा है मैंने.

चंद्र-कलायें
एक रात में देखी
घूँघट उठा.

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Tuesday, March 13, 2018



हाइकु



डॉ0 मंजूश्री गर्ग

मनमोहक
कितने प्यारे रंग
शाम ढलते.

   
शाम हुई है!
खिलेगी चांदनी
रात होने दो.

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Monday, March 12, 2018


हाइकु


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

गुलाबी शोभा
कचनार का वृक्ष
लदा फूलों से.


चोट सहते
फलदायी पेड़ ही
पाते पत्थर.

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Sunday, March 11, 2018

हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

प्रेम के पल
लालिमा कपोलों की
बनी प्रहरी.

रंग दो प्रिये
क्वारे हैं ख्बाब अभी
बीते बरसों.


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Friday, March 9, 2018



जायसी की दूसरी अमर कृति कन्हावत

डॉ0 शिव सहाय पाठक ने अपने अथक परिश्रम से मलिक मोहम्मद जायसी की एक अमर कृति कन्हावत की खोज कर ली है. कन्हावत के प्रारम्भ में जायसी ने अपने अन्य काव्यों की भाँति ईश्वर स्तुति की है-
सम सरग और धरती साजा,
जग उपजै औ जाइ हिराता,
ताकर अस्तुति कीन्ह न जाइ,
कौनहि अस करौं बड़ाई.
पश्चात् कवि ने चारों मित्रों का उल्लेख किया है. शाहे तख्त के रूप में हुमायूँ की प्रशंसा की है. जायसी ने वेदव्यास का भी स्मरण किया है, श्रीमद् भागवत के विषय में अत्यन्त उल्लसित भाव से लिखा है-
प्रनवौं वेदव्यास के चरनां,
जिन्ह हरि चरित सविस्तर बरनां,
हरि अनंत हर् कथा अनंता,
गावहिं वेद भागवत, संता,
सुनउं, पढ़ेउ, भागवत पुराना,
पाएउं प्रेम पंथ संधाना,
अइसन प्रेम कहानी दूसर जग महं नाहिं।
तुरूकी, अरबी, फारसी- सब देखेउं अवगाहि।
मथुरा, मथुरा का चौदह खंड़ोंवाला कोट, खाई, कंस, वसुदेव, देवकी, कृष्ण जन्म, कृष्ण की बाल्यावस्था, विविध कृष्ण लीलाएं, कंस वध, गोपी, राधा, संयोग, वियोग, आदि सूत्रों को दृष्टिपथ में रखते हुये कवि ने कृष्ण जन्म से लेकर उनकी मृत्यु तक की कथा का बड़ा रसमय आख्यान किया है. पद्मावत की ही भाँति इस काव्य में पद-पद पर काव्य सौन्दर्य भरा हुआ है- रसमय स्थलों की तो इसमें भरमार है.
श्रेष्ठ विरह वर्णन-
रास-लीला वाला प्रसंग यहाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय है. कवि ने लिखा है कन्ह-प्रिया( राधा) ने अपनी आँखों की ओर से कान्ह को इंगित किया और वे विद्युत गति से नृत्यमान हो गये, वे ऐसी गति से नाच रहे थे कि सोलह सहस्र गोपियों को अनुभव हो रहा था, मानों कान्ह प्रत्येक के साथ नाच रहे हैं-
विजुरी की गति नाचै कान्हा.
कवि ने संपूर्ण सृष्टि को रास-नृत्य में नर्तित-रूप में देखा है-
नाचै धरती गगन वरहम्हंडा,
सात अकास-पतार अखंडा,
चांद रहा थिर, नाचहिं तारा.
सुधि-बुधि भुलि नचै संसारा,
नाचै अगिन, पवन, जल, खेहा,
बिजुरी राहि, कान्ह जनु मेहा,
X         x          x          x          x
जह महं रास कान्ह कै होई,
बिनु अनुगरह जान नहिं कोई.
राधा और गोपियों का विरह वर्णन कन्हावत के श्रेष्ठ स्थलों में से एक है. संपूर्ण सृष्टि कृष्ण के विरह में व्याकुल है. यह वियोग वर्णन नागमती के बारहमासे से किसी भी रूप में कम नहीं है.

कृष्ण और राधा के रूप सौंदर्य वर्णन वाले प्रसंग पद्मावती के नख-शिख की याद दिला देते हैं. यहाँ राधा वह महाचिति या कृष्ण की पराशक्ति है, जो सृष्टि के मूल में है.

आकार में कन्हावत लगभग पद्मावत के समान ही वृहद प्रबंध काव्य है. दोहा-चौपाई छंदों में कवि ने इसे लिखा है, इसमें कुल आठ सोरठा छंद भी मिलते हैं.

कन्हावत पद्मावत की ही भाँति हिन्दी का एक श्रेष्ठ महाकाव्य है.
सौजन्य- साप्ताहिक पत्रिका: धर्मयुग-अंक 30 मार्च से 5 अप्रैल 1978       


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