हिन्दी साहित्य
Saturday, March 31, 2018
शेष हैं अभी मधुमास के दिन
प्रिय
!
प्रीत के, मनुहार के दिन।
आओ
!
जी भर जी ले इन्हें, बनेंगे
यहीं सहारा जीवन की धूप में।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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