Friday, May 28, 2021

 


अलौकिक प्रेम......

डॉ. मंजूश्री गर्ग

सिय-राम का प्रेम अलौकिक

धनुष-यज्ञ शाला में देख अधीर सिय को

नयनों से ही करते हैं आश्वस्त श्री राम।

क्षण भर में कर धनुष भंग, जानकी की ही नहीं,

हरते हैं पीड़ा जनक परिवार की श्री राम।

 

पर राम!

 

राम! सच-सच बतलाना

यदि तुमसे पहले कोई और

राजकुमार धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा लेता।

तो तुम क्या करते?

तुम तो पुष्प-वाटिका में धनुष-यज्ञ से पहले ही

सीता को ह्रदय समर्पित कर चुके थे।

सीता तो राजा जनक के प्रण से बँधी थीं;

विवाह उसी से होना था जो यज्ञशाला में रखे

प्राचीन शिवधनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायेगा।

राम सच-सच बतलाना

तो तुम क्या करते?

तुम कैसे सीता के प्रति अपना एकनिष्ठ प्रेम

निभाते।

 

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Tuesday, May 25, 2021



सब मिल साथ चलेंगे, बीहड़ वन में राह बनेगी।

अँधेरा होगा दूर, जीने की नयी राह मिलेगी।।


                                                  डॉ. मंजूश्री गर्ग 


Sunday, May 23, 2021


चंद्र श्रीहीन

सूरज सुषमामय

प्रातः बेला में।


                      डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, May 22, 2021



भीगे पंख

टूटे नीड़

गुमसुम पंछी

कैसी बारिश?


                डॉ.मंजूश्री गर्ग 

Friday, May 21, 2021


चाहे अनचाहे मोड़ों ने दिया जीवन को नया रूप।

जैसे सीधा- सपाट कागज कोई बन गया हो नाव।।


                                                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, May 18, 2021


मैं नजर से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाये।

न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढ़ल न जाये।।

 

                                               अनवर मिर्जापुरी

Friday, May 14, 2021

 


डॉ. रामकुमार वर्मा

 


डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

जन्म-तिथि- 15 सितंबर सन् 1905 ई. सागर(म. प्र.)

पुण्य-तिथि- 5 अक्टूबर सन् 1990 ई. प्रयाग(उ. प्र.)

 

डॉ. रामकुमार वर्मा हिन्दी साहित्य जगत में एकांकी सम्राटके नाम से जाने जाते हैं लेकिन आपका साहित्य में प्रवेश कविताओं की रचनाओं से हुआ था और आपने बहुत सुन्दर काव्य रचनायें की हैं जिनमें छायावाद और रहस्यवाद की झलक है. साथ ही आप आलोचक, समीक्षक व अध्यापक भी रहे.

 

डॉ. रामकुमार वर्मा के पिता लक्ष्मी प्रसाद वर्मा डिप्टी कलैक्टर थे और मां राजरानी देवी कवयित्री थीं. आपने प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही माँ द्वारा प्राप्त की. आप प्रतिभाशाली थे, हमेशा कक्षा में प्रथम आते थे. आपकी अभिनेता बनने की अभिलाषा थी, विद्यार्थी जीवन में नाटकों में अभिनय भी करते थे. सन् 1922 ई. में असहयोग आंदोलन शुरू होने पर आपने स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया. आपने प्रयाग विश्व विद्यालय से एम. ए. किया और नागपुर विश्व विद्यालय से हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास विषय पर शोध प्रबन्ध प्रस्तुत कर पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की. प्रयाग विश्व विद्यालय में कुछ वर्ष तक प्राध्यापक रहे, फिर अध्यक्ष रहे.

 

हिन्दी एकांकी को एक महत्वपूर्ण साहित्यिक विधा के स्तर पर पहुँचाने में डॉ. रामकुमार वर्मा का अविस्मरणीय योगदान है. आपके द्वारा रचित बादल की मृत्यु नामक एकांकी को हिन्दी का पहला आधुनिक शिल्पयुक्त एकांकी कहा गया है. सर्वप्रथम आपके एकांकियों में ही पश्चिमी रचना शिल्प का समग्र रूप से प्रयोग हुआ और आधुनिक हिन्दी एकांकी का स्पष्ट रूप सामने आया. आपके महत्वपूर्ण एकांकी संकलन हैं- पृथ्वीराज की आँखें(1936), रेशमी टाई(1941), विभूति(1947), रूप तरंग(1948), कौमुदी महोत्सव(1948), रजतरश्मि(1952), आदि. आपने मुख्यतः ऐतिहासिक व सामाजिक नाटक लिखे हैं. आपने संकलन-त्रय(स्थान, समय और घटना) का निर्वाह, रंग संकेत का समुचित विधान, कथानक के निरंतर विकास के रहते हुये, उत्सुकता का विधान करते हुये तीव्रता और क्रियात्मकता का संयोजन किया है. धीरे-धीरे अन्य कथाकार भी एकांकी लिखने लगे.

 

डॉ. रामकुमार वर्मा के प्रसिद्ध काव्य-संग्रह हैं- चित्ररेखा, वीर हम्मीर, चित्तौड़ की चिंता, अँजलि, अभिशाप, निशीथ, आदि. आपके काव्य में छायावादी काव्य के गुण पाये जाते हैं- भावनात्मकता, कल्पनात्मकता, रहस्यवाद, मानवीकरण, प्रकृति का वर्णन, आदि. चित्ररेखा काव्य-संग्रह पर आपको देव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. सन् 1962 ई. में आपको पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.

प्रस्तुत उदाहरण में प्रकृति का सुन्दर मानवीकृत रूप आपने वर्णित किया है-

 

 

इस सोते संसार बीच

जगकर, सजकर रजनी बाले!

कहाँ बेचने जाती हो,

ये गजरे तारों वाले?

मोल करेगा कौन,

सो रही हैं उत्सुक आँखें सारी

मत कुम्हलाने दो,

सूनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी।

निर्झर के निर्मल जल में,

ये गजरे हिला- हिला धोना।

लहर-लहर कर यदि चूमे तो,

किंचित विचलित मत होना।

होने दो प्रतिबिम्बित विचुम्बित,

लहरों में ही लहराना।

लो मेरे तारों के गजरे

निर्झर स्वर में यह गाना।

यदि प्रभात तक कोई आकर,

तुम से हाय! न मोल करे।

तो फूलों पर ओस रूप में

बिखरा देना सब गजरे।

 

     डॉ. रामकुमार वर्मा


Wednesday, May 12, 2021



हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम हैै।

जिस तरफ भी चल पड़ेंगें रास्ता हो जायेगा।।


                               बशीर बद्र 

Friday, May 7, 2021


हो तिमिर कितना भी गहरा,

हो रोशनी पर लाख पहरा,

सूर्य को उगना पड़ेगा,

फूल को खिलना पड़ेगा।

 

हो समय कितना भी भारी,

हमने ना उम्मीद हारी,

दर्द को झुकना पड़ेगा,

रंज को रूकना पड़ेगा।

 

सब थके हैं सब अकेले,

लेकिन फिर आएंगे मेले,

साथ ही लड़ना पड़ेगा,

साथ ही चलना पड़ेगा।

 

                 रामधारी सिंह दिनकर

 

  

Tuesday, May 4, 2021


राह अँधेरी है, दिखती नहीं राह है।

थामे रहना हाथ कान्हा, मंजिल दूर है।।


                                           डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, May 3, 2021


बौराये  आज

भाँग, धतूरा, आक

पाकर शिव।


                      डॉ. मंजूश्री गर्ग