दो चाँद दिखे,
‘ब्लू मून’ कहलाये,
एक माह में।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
हिन्दी काव्य में गंगा का
वर्णन
डॉ. मंजूश्री गर्ग
भारतीय संस्कृति में गंगा,
यमुना, सरस्वती, सिंधु, कावेरी, आदि पवित्र नदियों का विशेष महत्व है. प्रायः हर
युग के कवियों ने किसी न किसी नदी का वर्णन अपने काव्य में किया है जैसे प्रस्तुत
पंक्तियों में आदिकाल के कवि ने त्रिवेणी(गंगा,यमुना, सरस्वती) का वर्णन किया है-
प्रागराज सो तीरथ ध्यावौ। जहँ पर गंग मातु लहराय।
एक ओर से जमुना आई। दोनों मिलीं भुजा फैलाय।
सरस्वती नीचे से निकलीं। तिरबेनी सो तीर्थ कहाय।
X x x x x
सुमिर त्रिबेनी प्रागराज की। मज्जन करे पाप हो छार।
जगनिक
प्रस्तुत पंक्तियों में भक्तिकाल
के कवि ने गंगा जी के अवतरण की संक्षिप्त कथा का वर्णन किया है- अंशुमान और दिलीप
के तप करने पर भी गंगा जी धरती पर नहीं आई. जब भगीरथ ने तप किया तब गंगा जी ने
दर्शन दिये-
अंशुमान सुनि राज बिहाइ। गंगा हेतु कियो तप जाइ।
यही विधि दिलीप तप कीन्हो। पै गंगा जू बरनहिं दीन्हों।
बहुरि भगीरथ तप बहु कियौ। तब गंगा जू दरसन दियौ।
सूरदास
प्रस्तुत पंक्तियों में
आधुनिक काल के कवि ने ग्रीष्म कालीन गंगा जी का वर्णन किया है-
सैकत शैया पर दुग्ध धवल,
शशि मुख से दीपित मृदु का तल,
लहरें उस पर कोमल कुंतल।
गौर अंगों पर सिहर-सिहर,
लहराता तार तरल सुंदर।
चंचल अंबर सा नीलांबर।
साड़ी की सिकुड़न-सी जिस पर,
शशि की रेशमी विभा से भर,
सिमटी है वर्तुल मृदुल लहर।
सुमित्रानंदन पंत
कचनार
डॉ. मंजूश्री गर्ग
कचनार का वृक्ष सड़क किनारे या उपवनों में अधिकांशतः पाया जाता है। नवंबर से मार्च तक के महीनों में अपने गुलाबी व जामुनी रंगों के फूलों से लदा ये वृक्ष अपनी सुंदरता से सहज ही सबका मन मोह लेता है।
सन् 1880 ई. में हांगकांग के ब्रिटिश गवर्नर सर् हेनरी
ब्लेक(वनस्पतिशास्त्री) ने अपने घर के पास सुमद्र किनारे कचनार का वृक्ष पाया था।
उन्हीं के सुझाये हुये नाम पर कचनार का वानस्पतिक नाम बहुनिया ब्लैकियाना पड़ गया।
कचनार हांगकांग का राष्ट्रीय फूल है और इसे आर्किड ट्री के नाम से भी जाना जाता
है। भारत में मुख्यतः कचनार के नाम से ही जाना जाता है। संस्कृत भाषा में कन्दला
या कश्चनार कहते हैं। भारत में यह उत्तर से दक्षिण तक सभी जगह पाया जाता है।
कचनार के पेड़ भूस्खलन को भी रोकते हैं। कचनार के फूल की
कली देखने में भी सुंदर होती है और खाने में स्वादिष्ट भी। कचनार के वृक्ष अनेक
औषधि के काम आते हैं व इससे गोंद भी निकलता है। कचनार की पत्तियाँ दुधारू पशुओं के
लिये अच्छा आहार होती हैं।