Saturday, October 31, 2020

 

दो चाँद दिखे,

ब्लू मून कहलाये,

एक माह में।

               डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

 


Thursday, October 29, 2020

 


बड़ों का साया पेड़ों जैसा।

धूप पी के देते हमें छाँव।।

 

                                    डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, October 28, 2020


चमकेगी ही

विरोधों में प्रतिभा

जैसे दीपक।

                                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, October 26, 2020



मुठ्ठी भर धूप,

उछाल दो।

गम के बादलों पे,

गम भी मुस्कुरायेंगे।।


               डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, October 25, 2020

 एक कंकरी

अनगिन लहरें

शांत झील में।


                                        लक्ष्मी शंकर वाजपेयी

Thursday, October 22, 2020


नया संघर्ष

नई ऊँचाई पे ही

जन्म है लेता।


                                          डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, October 19, 2020

 

तुम आई हो।

उजाला ही उजाला।

मन-आँगन।

                                  डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, October 16, 2020

 


गुब्बारे


डॉ. मंजूश्री गर्ग

रंग-बिरंगे

प्यारे-प्यारे

मन भावन

गुब्बारे सारे.

लाल, गुलाबी

नीले, पीले

हरे, बैंगनी

कितने सारे.

बच्चों की हैं

मुस्कान औ

खिलौने प्यारे

गुब्बारे सारे.

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Thursday, October 15, 2020



जहर से जैसे वो अमृत निकाल देता है।

दरख्त धूप को साये में ढ़ाल देता है।।


                                       लक्ष्मीशंकर वाजपेयी 

Wednesday, October 14, 2020

 


हिन्दी काव्य में गंगा का वर्णन

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

भारतीय संस्कृति में गंगा, यमुना, सरस्वती, सिंधु, कावेरी, आदि पवित्र नदियों का विशेष महत्व है. प्रायः हर युग के कवियों ने किसी न किसी नदी का वर्णन अपने काव्य में किया है जैसे प्रस्तुत पंक्तियों में आदिकाल के कवि ने त्रिवेणी(गंगा,यमुना, सरस्वती) का वर्णन किया है-

 

प्रागराज सो तीरथ ध्यावौ। जहँ पर गंग मातु लहराय।

एक ओर से जमुना आई। दोनों मिलीं भुजा फैलाय।

सरस्वती नीचे से निकलीं। तिरबेनी सो तीर्थ कहाय।

X             x              x              x              x

सुमिर त्रिबेनी प्रागराज की। मज्जन करे पाप हो छार।

 

                                  जगनिक

प्रस्तुत पंक्तियों में भक्तिकाल के कवि ने गंगा जी के अवतरण की संक्षिप्त कथा का वर्णन किया है- अंशुमान और दिलीप के तप करने पर भी गंगा जी धरती पर नहीं आई. जब भगीरथ ने तप किया तब गंगा जी ने दर्शन दिये-

 

अंशुमान सुनि राज बिहाइ। गंगा हेतु कियो तप जाइ।

यही विधि दिलीप तप कीन्हो। पै गंगा जू बरनहिं दीन्हों।

बहुरि भगीरथ तप बहु कियौ। तब गंगा जू दरसन दियौ।

 

                          सूरदास

 

 

प्रस्तुत पंक्तियों में आधुनिक काल के कवि ने ग्रीष्म कालीन गंगा जी का वर्णन किया है-

 

सैकत शैया पर दुग्ध धवल,

शशि मुख से दीपित मृदु का तल,

लहरें उस पर कोमल कुंतल।

गौर अंगों पर सिहर-सिहर,

लहराता तार तरल सुंदर।

चंचल अंबर सा नीलांबर।

साड़ी की सिकुड़न-सी जिस पर,

शशि की रेशमी विभा से भर,

सिमटी है वर्तुल मृदुल लहर।

 

                      सुमित्रानंदन पंत

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Tuesday, October 13, 2020


हर एक बात को चुपचाप क्यूँ सुना जाये।

कभी तो हौसला करके नहीं कहा जाये।।

 

                                                निदा फाजली

Monday, October 12, 2020


आँगन में ये दीवारें क्यों उठ रही हैं बोलो

क्यों पड़ गयी दरारें घर-घर मैं पूछता हूँ।

                             -गुलशन मदान

 


 

  

Thursday, October 8, 2020

 

कचनार


डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

कचनार का वृक्ष सड़क किनारे या उपवनों में अधिकांशतः पाया जाता है। नवंबर से मार्च तक के महीनों में अपने गुलाबी व जामुनी रंगों के फूलों से लदा ये वृक्ष अपनी सुंदरता से सहज ही सबका मन मोह लेता है। 

सन् 1880 ई. में हांगकांग के ब्रिटिश गवर्नर सर् हेनरी ब्लेक(वनस्पतिशास्त्री) ने अपने घर के पास सुमद्र किनारे कचनार का वृक्ष पाया था। उन्हीं के सुझाये हुये नाम पर कचनार का वानस्पतिक नाम बहुनिया ब्लैकियाना पड़ गया। कचनार हांगकांग का राष्ट्रीय फूल है और इसे आर्किड ट्री के नाम से भी जाना जाता है। भारत में मुख्यतः कचनार के नाम से ही जाना जाता है। संस्कृत भाषा में कन्दला या कश्चनार कहते हैं। भारत में यह उत्तर से दक्षिण तक सभी जगह पाया जाता है।

 कचनार के पेड़ की लंबाई 20 फीट से 40 फीट तक होती है। कचनार अपनी पत्तियों के आकार के कारण सहज ही पहचान में आ जाता है। पत्तियाँ गोलाकार होती हैं और अग्रभाग से दो भागों में बँटी होती हैं। मध्य रेखा से आपस में जुड़ी होती हैं। इसकी पत्तियों की तुलना ऊँट के खुर से भी की जाती है। कचनार के गुलाबी रंग के फूल के पेड़ों में जब फूल आने शुरू होते हैं तो अधिकांशतः पत्तियाँ झड़ जाती हैं। जामुनी रंग के कचनार के पेड़ों में प्रायः फूलों के साथ पत्तियाँ भी रहती हैं। कचनार के फूलों में पाँच पँखुरियां होती हैं और फूलों से भीनी सुगंध आती है।

कचनार के पेड़ भूस्खलन को भी रोकते हैं। कचनार के फूल की कली देखने में भी सुंदर होती है और खाने में स्वादिष्ट भी। कचनार के वृक्ष अनेक औषधि के काम आते हैं व इससे गोंद भी निकलता है। कचनार की पत्तियाँ दुधारू पशुओं के लिये अच्छा आहार होती हैं।


Wednesday, October 7, 2020

 

स्वाद है!

सुगंध है!

साँसों की

लय है!

घर में ही

जीवन

नवरंग है।

             डॉ. मंजूश्री गर्ग


Monday, October 5, 2020


नेह की नमी

हँसी की धूप मिले

खिले जीवन।


                              डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, October 4, 2020

 

जिसके आँगन में अमीरी का शजर लगता है।

उनका हर ऐब जमाने को हुनर लगता है।।


                                                     अंजुम रहबर

Thursday, October 1, 2020

 


गोधूलि बेला

कृष्ण हाँकते गायें

बजायें वंशी।


                         डॉ. मंजूश्री गर्ग