Saturday, December 31, 2022


आधा चन्द्रमा है, आधी रात।

आधा जश्न बीते साल का, आधा नये साल का।


    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

नये साल 2023 की हार्दिक शुभकामनायें



 

Friday, December 30, 2022


हमने जीना सीख लिया है,

झूठ बोलना सीख लिया है।

महफिल में परिधानों सा,

मुस्कान पहनना सीख लिया है।। 


                       डॉ.  मंजूश्री गर्ग

Thursday, December 29, 2022


सब सुख दायक नायिका-नायक जुगत अनूप,

राधा हरि आधार जस रस सिंगार सरूप।

                           देव 

Wednesday, December 28, 2022


सम्बन्धों की देहरी पर खिले प्यार के फूल।

रखना कदम आगे विश्वासों के साथ।।


                                   डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, December 27, 2022


सहज, निर्मल, निश्छल, बह रही प्रेम-धार।

मानों नदी के तटों-बीच, बह रही जल-धार।।


          डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, December 26, 2022


तेरे मन ने जान ली, मेरे मन की बात।

क्या तुम्हें पाती लिक्खूँ, क्या करूँ मनुहार।।


           डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, December 25, 2022

 

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने काव्य-प्रयोजन पर विचार करते हुये लिखा है-

 

एक तहँ तप पुंजनि के फल ज्यों तुलसी अरू सूर गोसाईं,

एक तहँ बहु संपति केशव भूषण ज्यों वरवीर बड़ाई।

एकनि को जस हीं सों प्रयोजन है रसखानि रहीम की नाईँ,

दस कवित्तन की चर्चा बूढ़ी वंतनि को सुख दै सब ठाई।

 

                                   भिखारी दास


Saturday, December 24, 2022

 

रीति काल में हिन्दी कविता में अलंकारों का बहुतायत से प्रयोग किया जाता था, इसी भावना को कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में अभिव्यक्त किया है-

जदपि सुजाति सुलच्छनी, सुबरन सरस सुवृत्त।

भूषन बिन न विराजहीं, कविता वनिता मित्त।।

 

                                 केशवदास


Friday, December 23, 2022


नाम मिटे तो ऐसे जैसे नदी सागर हो गयी।

यश ढ़ले तो ऐसे जैसे चाँद छिपे औ सूरज निकले।।


                         डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Thursday, December 22, 2022


आवाज में खनक यूँ ही नहीं आयी।

बरसों बाद साथी है मुस्कुराया।। 


                                   डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, December 21, 2022


वैजयंती माला


डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

वैजयंती माला विष्णु भगवान को बहुत प्रिय है और श्री कृष्ण की प्रिय पाँच वस्तुओं(गाय, बाँसुरी, मोरपंख, माखन-मिश्री और वैजयंती माला) में से एक है। वैजयंती माला का शाब्दिक अर्थ है विजय दिलाने वाली माला।

 

वैजयंती के पत्ते हरे रंग के और एक मीटर तक लंबे होते हैं और दो इंच के लगभग चौड़े होते हैं। ये पत्ते सीधे जमीन से निकलते हैं इनमें कोई तना या टहनी नहीं होती। वैजयंती के पौधे में कोई फूल नहीं आता, एक बीज फली के साथ निकलता है। बीज में ही जुड़ा हुआ पराग होता है। ऊपर से पराग तोड़कर बीज प्राप्त किया जाता है जो एक मोती के समान चमकीला होता है। प्रारम्भ में यह हरे रंग का होता है पकने पर भूरे रंग का हो जाता है। वैजयंती बीज कमल गट्टा(कमल का बीज) के आकार का होता है। वैजयंती का पौधा कैना-लिली(केलई) से भिन्न होता है।

 

वैजयंती बीज की विशेषता है कि इसमें धागा डालने के लिये प्राकृतिक रूप से छेद बना होता है। वैजयंती माला को धारण करने के लिये सोमवार और शुक्रवार का दिन शुभ है 


नदिया ही आयेगी, कब सागर आयेगा।

है मान उसमें भी, बिन बुलाये ना आयेगी।।


    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, December 20, 2022

पौष महीना

कोहरे में लिपटे

दिन औ' रात।


                 डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, December 19, 2022


अभी अपना चेहरा आँचल में छुपा लो तुम।

ख्वाबों में मिले हो हमसे ये राज छुपा लो तुम।।


                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, December 18, 2022


भीड़ में रहकर भी हम अकेले ही रहे।

क्योंकि तन्हाई में तुम साथ-साथ रहे।।


                  डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, December 16, 2022


 परम्परायें जब बन जाती हैं रूढ़ियाँ।

जकड़ लेती हैं मनुज को बेड़ियों सम।।


             डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Thursday, December 15, 2022


मैं जुगनू हूँ अपनी ही रोशनी से जगमगाता हूँ।

उधारी रोशनी नहीं ली सूरज से तारों की तरह।।


                     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, December 14, 2022


गीत

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

बहुत उदास है मन

पास आओ सनम.

 

प्यार की रूनझुन

गुमसुम है कब से

के नये सुर

साधो सनम.

 

मेंहदी की, महावर की

रंगत है फीकी

के नये रंग

भरो सनम.

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Tuesday, December 13, 2022


 

आज और कल में समय निकलता जा रहा।

मानों मुठ्ठी से रेत फिसलता जा रहा।।


                     डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, December 12, 2022


जिनको छूना है आकाश छू ही लेंगे।

कौन रोकेगा परिंदों की उड़ानों को।।


         डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, December 11, 2022


दिल के सौदे बेमोल हुआ करते हैं।

लेन-देन से तो व्यापार चलते हैं।।


           डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, December 10, 2022

 

दम लगाया हर एक कबूतर ने

वरना कोई उड़ा नहीं होता।

                               डॉ. महेन्द्र कुमार अग्रवाल


Friday, December 9, 2022


vअहसास हैं ये प्यार के----

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

अहसास हैं ये प्यार के

यूँ ही ना गँवा देना।

जब खिले फूल कोई आँगन में,

देख फूल को मुस्कुरा देना,

दिल को सुकून मिल जायेगा।

 

चाँदनी रात में बाहर आया करो

मन तुम्हारा बहल जायेगा।

देख चाँद को मुस्कुरा देना,

दिल को सुकून मिल जायेगा।

 


 

 

  

Thursday, December 8, 2022


दैहिक, दैविक भौतिक तापा।

रामराज नाहिं काहुहिं व्यापा।

नहिं दरिद्र कोई दुखी न दीना।

नहीं कोउ अबुध न लच्छन हीना।

सब निर्दंभ धर्मरत पूनी।

नर अरू नारी चतुर सब गुनी।

सब गुनाय पंडित सब ग्यानी।

सब कृतग्य नहिं कपट सयानी।

                         तुलसीदास



Wednesday, December 7, 2022


मीलों चले छाँव की चाह में.

छाँव मिली तो तन्हाई ही तन्हाई थी।


                      डॉ. मंजूश्री गर्ग  

Tuesday, December 6, 2022


जोहैं जहाँ मगु नंदकुमार तहाँ चलि चंद्रमुखी सुकुमार है।

मोतिन ही को कियो गहनो सब फूलि रही जनु कुंद की डार है।

भीतर ही जो लखी सो लखी अब बाहिर जाहिर होति न दार है।

जोन्ह सी जोन्हैं गई मिलि यों मिलि जाति ज्यों दूध में दूध की धार है।

                                                      सुखदेव मिश्र 

Monday, December 5, 2022


 

उदासी के किले में तुम कभी भी कैद मत होना।

हमारी याद आये जब तभी तुम मुस्करा लेना।।

                                   नित्यानंद तुषार

Sunday, December 4, 2022



बच्चों को विदेस जाने के बाद भी अपने घर की, अपने गाँव की याद आती रहती है. इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने श्रीकृष्ण के माध्यम से की है-

ग्वाल संग जैबो ब्रज, गैयन चरैबो ऐबो,

अब कहा दाहिने ये नैन फरकत हैं।

मोतिन की माल वारि डारौं गुंजमाल पर,

कुंजन की सुधि आए हियो धारकत है।

गोबर का गारो रघुनाथ कछु यातें भारो,

कहा भयो महलनि मनि मरकत हैं।

मंदिर हैं मंदर तें ऊँचे मेरे द्वारका के,

ब्रज के खरिक तऊ हिये खरकत हैं।

                                               रघुनाथ(कवि) 

Saturday, December 3, 2022


ये मेरे और गम के बीच में किस्सा है बरसों से

मैं उसको आजमाता हूँ वो मुझको आजमाता है।

                          लक्ष्मी शंकर वाजपेयी

  

Friday, December 2, 2022


रावरे रूप की रीति अनूप नयो-नयो लागत ज्यों-ज्यों निहारिये।

त्यों इन आँखिन बानि अनोखी अघानि कहू नहिं आनि तिहारिये।

                                         घनानन्द 

Thursday, December 1, 2022


जीवन खिले गुलाब सा

महके उपवन सारा

बिखरे तो महके

माटी का कण-कण।


                        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, November 30, 2022


मानव हूँ मैं,

ना ईश्वर बना तू,

मानव रहूँ।


                           डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, November 29, 2022


शिशिर ऋतु

अगहन महीना

बढ़ती सर्दी।


           डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, November 28, 2022


झील के तट पर खड़े थे इस तरह मैं और तुम

बिन छुये ही झील का जल थरथराने लग गया।

                             डॉ. कुँअर बेचैन 

Sunday, November 27, 2022


सब कुछ कह दूँगी

 

सब कुछ कह दूँगी,

राज सारे खोल दूँगी।

लगता नहीं; क्योंकि?

सामने जब तुम होते हो,

कुछ भी कहने की हालत में,

तब हम नहीं होते।


             डॉ. मंजूश्री गर्ग 


Saturday, November 26, 2022

 

जिंदगी बस

चार दिन की चाँदनी

दो दिन का बचपन

दो दिन जवानी

शेष ढ़लती शाम

है बस जिंदगी।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, November 25, 2022


तुम्हीं कान्हा हो, कन्हैया हो तुम।

तुम्हीं नन्दलाला, वासुदेव हो तुम।

तुम्हीं माखनचोर, चितचोर हो तुम।

तुम्हीं बाँसुरी वादक, सुदर्शन चक्रधारी हो तुम।

गोपों संग ग्वाला, गोपियों की प्रीत हो तुम।

राधा के मनमीत, द्वारकाधीश रूक्मिणी के।

 

                        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, November 24, 2022


 

तेरी जुल्फों के साये में शामें सुहानी हैं,

हैं रोशन रातें तेरी ही मुस्कानों से।

बज उठते हैं जब तेरी यादों के घुँघरू

जिंदगी कई सरगमें सुनाती है हमें।।

 

                          डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, November 23, 2022


प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ईश्वर के प्रति अपनी रहस्यमयी भावना को अभिव्यक्त किया है-

 

मैं कब से ढ़ूँढ़ रहा हूँ।

अपने प्रकाश की रेखा।।

 

तम के तट पर अंकित है।

निःसीम नियति का लेखा।।

 

देने वाले को अब तक।

मैं देख नहीं पाया हूँ।।

 

पर पल भर सुख भी देखा।

फिर पल भर दुःख भी देखा।।

 

किस का आलोक गगन से।

रवि शशि उडुगन बिखराते।।

               भगवती चरण वर्मा

 

 

Monday, November 21, 2022


मंजिल मिली,

सफर के हैं साथी,

बिछुड़ गये।


                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

 

प्रत्येक व्यक्ति को उम्र-भर अपने बचपन की बातें याद आती रहती हैं. इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवियत्री ने प्रस्तुत पंक्तियों में की है-

बार-बार आती है मुझको

मधुर याद बचपन तेरी,

आ जा बचपन, एक बार फिर

दे दो अपनी निर्मल शान्ति

व्याकुल व्यथा मिटाने वाली

वह अपनी प्राकृत विश्रांति।

                   सुभद्रा कुमारी चौहान

 

 


Sunday, November 20, 2022

 

तारे झिलमिलायें

चाँद मुस्कुराये।

रात में तुम आये

मन भी गुनगुनाये।।


          डॉ. मंजूश्री गर्ग


Saturday, November 19, 2022

 


प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने नायिका के सौन्दर्य का वर्णन किया है-

कुंदन का रंग फीको लगै, झलकै अति अंगन चारू बुराई,

साखिन में अलसानि चितौनी में मंजु विलसन की सरसाई।

को बिन मोल विकात नहीं, मतिराम लहै मुस्कानि मिठाई,

ज्यों-ज्यों निहारिये तेरे ह्वै नैननि, त्यों-त्यों खरी निकरे सी निकाई।

                                                      मतिराम

Friday, November 18, 2022


जिंदगी में छाँव बनकर आप आये हैं।

अब हमें धूप सुहानी लग रही है।।


                  डॉ. मंजूश्री गर्ग