आधा चन्द्रमा है, आधी रात।
आधा जश्न बीते साल का, आधा नये साल का।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
वैजयंती माला
डॉ. मंजूश्री गर्ग
वैजयंती माला विष्णु भगवान
को बहुत प्रिय है और श्री कृष्ण की प्रिय पाँच वस्तुओं(गाय, बाँसुरी, मोरपंख,
माखन-मिश्री और वैजयंती माला) में से एक है। वैजयंती माला का शाब्दिक अर्थ है विजय
दिलाने वाली माला।
वैजयंती के पत्ते हरे रंग
के और एक मीटर तक लंबे होते हैं और दो इंच के लगभग चौड़े होते हैं। ये पत्ते सीधे
जमीन से निकलते हैं इनमें कोई तना या टहनी नहीं होती। वैजयंती के पौधे में कोई फूल
नहीं आता, एक बीज फली के साथ निकलता है। बीज में ही जुड़ा हुआ पराग होता है। ऊपर
से पराग तोड़कर बीज प्राप्त किया जाता है जो एक मोती के समान चमकीला होता है।
प्रारम्भ में यह हरे रंग का होता है पकने पर भूरे रंग का हो जाता है। वैजयंती बीज
कमल गट्टा(कमल का बीज) के आकार का होता है। वैजयंती का पौधा कैना-लिली(केलई) से
भिन्न होता है।
वैजयंती बीज की विशेषता है कि इसमें धागा डालने के लिये प्राकृतिक रूप से छेद बना होता है। वैजयंती माला को धारण करने के लिये सोमवार और शुक्रवार का दिन शुभ है
बच्चों को विदेस जाने के बाद भी अपने घर की,
अपने गाँव की याद आती रहती है. इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने श्रीकृष्ण के
माध्यम से की है-
ग्वाल संग जैबो
ब्रज, गैयन चरैबो ऐबो,
अब कहा दाहिने
ये नैन फरकत हैं।
मोतिन की माल
वारि डारौं गुंजमाल पर,
कुंजन की सुधि
आए हियो धारकत है।
गोबर का गारो
रघुनाथ कछु यातें भारो,
कहा भयो महलनि
मनि मरकत हैं।
मंदिर हैं मंदर
तें ऊँचे मेरे द्वारका के,
ब्रज के खरिक
तऊ हिये खरकत हैं।
रघुनाथ(कवि)
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ईश्वर के प्रति
अपनी रहस्यमयी भावना को अभिव्यक्त किया है-
मैं कब से
ढ़ूँढ़ रहा हूँ।
अपने प्रकाश की
रेखा।।
तम के तट पर
अंकित है।
निःसीम नियति
का लेखा।।
देने वाले को
अब तक।
मैं देख नहीं
पाया हूँ।।
पर पल भर सुख
भी देखा।
फिर पल भर दुःख
भी देखा।।
किस का आलोक
गगन से।
रवि शशि उडुगन
बिखराते।।
भगवती चरण वर्मा