प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने काव्य-प्रयोजन पर
विचार करते हुये लिखा है-
एक तहँ तप
पुंजनि के फल ज्यों तुलसी अरू सूर गोसाईं,
एक तहँ बहु
संपति केशव भूषण ज्यों वरवीर बड़ाई।
एकनि को जस हीं
सों प्रयोजन है रसखानि रहीम की नाईँ,
दस कवित्तन की
चर्चा बूढ़ी वंतनि को सुख दै सब ठाई।
भिखारी दास
No comments:
Post a Comment