दैहिक, दैविक भौतिक तापा।
रामराज नाहिं काहुहिं व्यापा।
नहिं दरिद्र कोई दुखी न दीना।
नहीं कोउ अबुध न लच्छन हीना।
सब निर्दंभ धर्मरत पूनी।
नर अरू नारी चतुर सब गुनी।
सब गुनाय पंडित सब ग्यानी।
सब कृतग्य नहिं कपट सयानी।
तुलसीदास
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