Sunday, December 4, 2022



बच्चों को विदेस जाने के बाद भी अपने घर की, अपने गाँव की याद आती रहती है. इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने श्रीकृष्ण के माध्यम से की है-

ग्वाल संग जैबो ब्रज, गैयन चरैबो ऐबो,

अब कहा दाहिने ये नैन फरकत हैं।

मोतिन की माल वारि डारौं गुंजमाल पर,

कुंजन की सुधि आए हियो धारकत है।

गोबर का गारो रघुनाथ कछु यातें भारो,

कहा भयो महलनि मनि मरकत हैं।

मंदिर हैं मंदर तें ऊँचे मेरे द्वारका के,

ब्रज के खरिक तऊ हिये खरकत हैं।

                                               रघुनाथ(कवि) 

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