रीति काल में हिन्दी कविता में अलंकारों का बहुतायत से प्रयोग किया जाता था,
इसी भावना को कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में अभिव्यक्त किया है-
जदपि सुजाति
सुलच्छनी, सुबरन सरस सुवृत्त।
भूषन बिन न
विराजहीं, कविता वनिता मित्त।।
केशवदास
No comments:
Post a Comment