जोहैं जहाँ मगु नंदकुमार तहाँ चलि चंद्रमुखी सुकुमार है।
मोतिन ही को कियो गहनो सब फूलि रही जनु कुंद की डार है।
भीतर ही जो लखी सो लखी अब बाहिर जाहिर होति न दार है।
जोन्ह सी जोन्हैं गई मिलि यों मिलि जाति ज्यों दूध में दूध की धार है।
सुखदेव मिश्र
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