सब कुछ कह दूँगी,
राज सारे खोल दूँगी।
लगता नहीं; क्योंकि?
सामने जब तुम होते हो,
कुछ भी कहने की हालत में,
तब हम नहीं होते।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
लौट कर आना है फिर इस जमीन पर ही
फिर क्यों गुरूर करें हम परिंदे अपनी उड़ान पर।
सन्ध्या
पास होते हो तो तुम पास नहीं होते।
दूर होते हो तो और पास होते हो।।
तन्हा-तन्हा हम रो लेंगे, महफिल-महफिल गायेंगे,
जब तक आँसू पास रहेंगे, तब तक गीत सुनायेंगे।
निदा फाजली
रहो कहीं भी
हो के रहो मेरे
हर पल ही।
हिरणी जैसी
चंचल चितवन
उलझे मन।
25 मार्च, 2024 होली पर्व के साथ-साथ नव विक्रमी संवत् 2081 की हार्दिक शुभकामनायें
24 मार्च, 2024 पावन पर्व होली की हार्दिक शुभकामनायें
धरा ही नहीं,
आकाश पर सजे
होली के रंग।
हर जगह
तासीर है अलग
पानी पानी की।
काँपा मन या
अलगनी पे बैठी
उड़ी चिड़िया.
महका घर
खिली मधु-मालती
या खिला मन।
धूप में बारिश होते देखकर हैरत करने वाले,
शायद तूने मेरी हँसी को छूकर कभी नहीं देखा।
परवीन शाकिर
आँखों में पलने दो कुछ ख्बाब यूँ ही,
अश्क भी जरूरी हैं चमकने के लिये।
शालिनी गर्ग
पात्र बदले
विश्व रंगमंच पे
नाटक वही।
देखते ही उन्हें पलकें झुका लेते हैं,
नजर लग जाती है नजर भर देखने से।
नीरा नंदन
मुरादों की मंजिल के सपनों में खोये,
मुहब्बत की राहों में हम चल पड़े थे।
जरा दूर चल के जब आँखें खुली तो,
कड़ी धूप में हम अकेले खड़े थे।
सुदर्शन फाकिर
कान्हा का प्यार ------
राधा और ललिता दोनों
सखी थीं कान्हा की.
करती थीं प्यार कान्हा से।
पर, जानती थी ललिता
मैं चाहे कितना करूँ प्यार कान्हा से
कान्हा का प्यार राधा, सिर्फ राधा के लिये है।
वृक्ष ना देते
समय से पहले
धरा को फल।
आम्र-मंजरी
कामदेव के बाण
पंचवाणों में।
अंश हो तुम
विलग कैसे होंगे
दर्द हमसे।
तेरे मन ने जान ली, मेरे मन की बात।
क्या तुम्हें पाती लिक्खूँ, क्या करूँ मनुहार।।
उम्र के साथ
जिंदगी में तैरती
यादों की नावें।
उतरेगी ही
कलई कितनी हो
खुलेगी पोल।
8मार्च, 2024, महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें
शुभ विवाह
शिव-पार्वती संग
झूमे संसार।
सहज, निर्मल, निश्छल, बह रही प्रेम-धार।
मानों नदी के तटों-बीच, बह रही जल-धार।।
हवा का झोंका चला,
फूल का मन डोला।
धीरे से मुस्काया,
कि पवन चूम चला।।
उत्सुक नयन करें स्वागत।
दूर हो थकान पथ की।।
शायद यहाँ, शायद यहाँ, शायद यहाँ मिलोगे तुम।
जाने कब? जाने कब? जाने कब? मिलोगे तुम।।
कभी ओले, कभी बारिश,
कभी धनकती धूप।
रोमांच से भरा है,
मार्च का महीना।
रूनझुन सी पायल मौसम ने बाँधी।
थिरकने लगे हैं पाँव बसंत के।।
भीड़ में रहकर भी हम अकेले ही रहे।
क्योंकि तन्हाई में तुम साथ-साथ रहे।।