Friday, August 31, 2018



ना कोई आशा, ना आकांक्षा,
ना कोई चाहत मन में।
फिर भी कौन सी है प्यास?
जो बुझती ही नहीं।

                     डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Thursday, August 30, 2018



हाइकु

घूघँट उठा
देखी चंद्र कलायें
एक रात में।

आओ सनम!
पलक पाँवड़े हैं
बिछाये मैंने।

                     डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, August 29, 2018


सब कुछ कह दूँगी,
राज सारे खोल दूँगी।
लगता नहीं; क्योंकि?
सामने जब तुम होते हो
कुछ भी कहने की हालत में
तब हम नहीं होते।

                     डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Tuesday, August 28, 2018




प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने समाज की समसामयिक पर्यावरण की समस्या को अभिव्यक्त किया है-

मत छुओ इस झील को।
कंकड़ी मारो नहीं,
पत्तियाँ डारो नहीं,
फूल मत बोरो।
और कागज की तरी इसमें नहीं छोड़ो।

खेल में तुमको पुलक-उन्मेष होता है,
लहर बनने में सलिल को क्लेश होता है।

                                             रामधारी सिंह दिनकर

Monday, August 27, 2018




जब खुश नहीं होता
उदास होता हूँ
अपने अधिक पास होता हूँ
क्योंकि खुशी
अपने से परे के किसी सुख से जनमती है.

                   गुलशन माथुर

Sunday, August 26, 2018



डॉ0 नामवर सिंह


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 28 जुलाई सन् 1926 ई0
जन्म-तिथि- 1 मई सन् 1927 ई0( स्कूल में नामांकन के लिये)

डॉ0 नामवर सिंह हिन्दी के प्रसिद्ध आलोचक, शोधकार व निबन्धकार हैं, आप आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के शिष्य रहे हैं. डॉ0 नामवर सिंह अध्ययनशील व विचारक प्रकृति के हैं. आपने अपनी आलोचनायें हिन्दी में अपभ्रंश भाषा से प्रारंभ कर छायावाद, प्रगतिवाद व अति आधुनिक काल के समसामयिक साहित्य तक लिखी हैं. काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम0ए0 और पीएच0 डी0 की उपाधि प्राप्त करने के बाद अध्यापन कार्य किया. प्रारंभ में ब्रजभाषा में कवितायें लिखते थे, बाद में खड़ी बोली में लिखनी शुरू की. सन् 1940 ई0 में बनारस में अपने सहयोगी पारसनाथ मिश्र सेवक के साथ मिलकर नवयुवक साहित्यिक संघ की स्थापना की जिसमें हर सप्ताह साहित्यिक गोष्ठी होती थी. बाद में इस संस्था का नाम साहित्यिक संघ रह गया. आप प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुड़े रहे और आपने  साहित्यिक प्रगतिशाल आन्दोलन में भाग लिया.


डॉ0 नामवर सिंह जी के व्यक्तित्व के विकास में काशी की परम्परा और परिवेश की अहम भूमिका है. आपने सन् 1965 ई0 से सन् 1967 ई0 तक जनयुग(साप्ताहिक) और सन् 1967 ई0 से सन् 1990 ई0 तक आलोचना(त्रैमासिक) नामक दो हिन्दी पत्रिकाओं का सम्पादन किया. कविता के नये प्रतिमान पुस्तक में समालोचनात्मक निबन्ध हैं. इस पुस्तक के लिये आपको सन् 1971 ई0 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. आपके निबन्धों में व्याख्यान कला का पुट होने के कारण निबन्ध रोचक हो गये हैं.

डॉ0 नामवर सिंह दवारा लिखे गये शोध-ग्रंथ हैं-
1.     हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग- सन् 1952 ई0 में प्रकाशित
2.     पृथ्वीराज रासो की भाषा- सन् 1956 ई0 में प्रकाशित

डॉ0 नामवर सिंह द्वारा आलोचना पर लिखी पुस्तकें हैं-
1.     आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ- सन् 1954 ई0 में प्रकाशित
2.     छायावाद- सन् 1955 ई0 में प्रकाशित
3.     इतिहास और आलोचना- सन् 1957 ई0 में प्रकाशित
4.     कहानीः नयी कहानी- सन् 1964 ई0 में प्रकाशित
5.     कविता के नये प्रतिमान- सन् 1968 ई0 में प्रकाशित
6.     दूसरी परम्परा की खोज- सन् 1982 ई0 में प्रकाशित
7.     वाद-विवाद और संवाद- सन् 1989 ई0 में प्रकाशित

डॉ0 नामवर सिंह जी की कविता का उदाहरण-

तुम्हार प्यार बन सावन
बरसता याद के रसकन
कि पाकर मोतियों का धन
उमड़ पड़ते नयन निर्धन।

विरह की घाटियों में भी
मिलन के मेघ मंडराते।

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Saturday, August 25, 2018




ना धागा चाँदी का,
ना ही है सोने का।
ना ही नवरत्न जड़े,
फिर भी अनमोल राखी।
बहनों का प्यार है,
रेशम के धागों में।

                     डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Friday, August 24, 2018



तेरे मन ने जान ली, मेरे मन की बात,
क्या तुम्हें पाती लिक्खूँ, क्या करूँ मनुहार।

                     डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Thursday, August 23, 2018


सहारा तो लकड़ी का ही है,
मूठ चाँदी की हो या हो सोने की।

                     डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, August 22, 2018



हरिशंकर परसाई जी के जन्म-दिवस पर शत्-शत् नमन


हरिशंकर परसाई

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 22 अगस्त, सन् 1924 ई0
पुण्य-तिथि- 10 अगस्त, सन् 1995 ई0

हरिशंकर परसाई मध्य प्रदेश के रहने वाले थे. आपने व्यंग्य को हिन्दी साहित्य में एक विधा के रूप में मान्यता दिलाई. आपने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार एवम् शोषण पर करारे व्यंग्य लिखे. यद्यपि प्रारम्भ में कविता, कहानी, उपन्यास, लेख, आदि लिखे, लेकिन धीरे-धीरे व्यंग्य-विधा की ओर अधिक ध्यान दिया और एक व्यंग्यकार के रूप में प्रसिद्ध हुये. आपकी व्यंग्य रचनायें पाठक के मन में हास्य ही उत्पन्न नहीं करतीं वरन् सामाजिक विसंगतियों से रूबरू भी कराती हैं. आपने सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन मूल्यों का उपहास करते हुये सदैव विवेक सम्मत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाया.

हरिशंकर परसाई जी जबलपुर से प्रकाशित पत्र देशबन्धु में पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते थे. शुरू में हल्के-फुल्के मनोरंजन के प्रश्न ही पूछे जाते थे किन्तु धीरे-धीरे परसाई जी ने पाठकों को सामाजिक व राजनीति के गम्भीर विषयों की ओर प्रवृत्त किया. देश के कोने-कोने से जागरूक व उत्सुक पाठक परसाई जी से प्रश्न पूछते थे और परसाई जी प्रश्न की प्रकृति के अनुसार सूचनात्मक, विश्लेषणात्मक, तुलनात्मक, व्यंग्यात्मक शैलियों में उत्तर देते थे. आपको विकलांग श्रद्धा के दौर(लेख संग्रह) के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

व्यंग्य का उदाहरण-

सदाचार भला किसे प्रिय नहीं होता. सदाचार का तावीज बाँधते वे भी हैं जो सचमुच आचारी होते हैं और वे भी जो बाहर से एक होकर भी भीतर से सदा चार रहते हैं.

               हरिशंकर परसाई

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने सामाजिक विसंगतियों और राजनैतिक भ्रष्टाचार के विरोध में अपने मन में धधकती आग की अभिव्यक्ति की है-

बाँध बाती में ह्रदय की आग चुप जलता रहे जो
और तम से हारकर चुपचाप सिर धुनता रहे जो
जगत को उस दीप का सीमित निबल जीवन सुहाता
यह धधकता रूप मेरा विश्व में भय ही जगाता
प्रलय की ज्वाला लिये हूँ, दीप बन कैसे जलूँ मैं?

                                                हरिशंकर परसाई




Tuesday, August 21, 2018




आओ! सीपी-सम हथेली पे मेंहंदी रचा दूँ।
तुम मोती सम मुख उसमें सजा लेना।।

                            डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Monday, August 20, 2018


अटल हैं इरादे जिनके,
डिगते नहीं कदम उनके।

                            डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Sunday, August 19, 2018



आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के जन्म-दिवस पर शत्-शत् नमन

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 19 अगस्त, सन् 1907 ई0, उत्तर प्रदेश
पुण्य-तिथि- 19 मई, सन् 1979 ई0, दिल्ली

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के पिता श्री अनमोल द्विवेदी और माँ श्रीमती ज्योतिष्मती थीं. आपका परिवार ज्योतिष विद्या के लिये प्रसिद्ध था. सन् 1930 ई0 में आपने ज्योतिष विद्या में आचार्य की उपाधि प्राप्त की. इसी वर्ष शांति निकेतन में अध्यापन कार्य प्रारंभ किया. यहाँ गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर और आचार्य क्षितिमोहन सेन के प्रभाव से साहित्य का गहन अध्ययन किया और स्वतंत्र लेखन की ओर प्रवृत्त हुये. आप  हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी, बँगला और संस्कृत भाषाओं के भी विद्वान थे.

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का व्यक्तित्व प्रभावशाली और स्वभाव सरल था. आपने संस्कृति, इतिहास, ज्योतिष और साहित्य विषयों में निबंध लिखे. आपने अधिकांशतः विचारात्मक और आलोचनात्मक निबंध लिखे हैं. आपकी भाषा भाव और विषय के अनुरूप व्यवहारिक व परिमार्जित है. आलोचना के क्षेत्र में आपका महत्वपूर्ण स्थान है. आपने सूर, कबीर और तुलसीदास पर जो विद्वतापूर्ण आलोचनायें लिखीं वे हिन्दी में पहले नहीं लिखी गयीं. आपने सूर साहित्य, हिन्दी साहित्य की भूमिका, कबीर, लालित्य तत्व, कालिदास की लालित्य योजना, कुटज, हिन्दी साहित्य का उद्भव और विकास, आदि अनेक ग्रंथों की रचना की.

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने हिन्दी भाषा के ऐतिहासिक व्याकरण ग्रंथ की भी रचना की थी. आपके द्वारा लिखित प्रसिद्ध उपन्यास हैं- बाणभट्ट की आत्म कथा, चारू चंद्र लेख, अनामदास का पोथा और पुनर्नवा. बाणभट्ट की आत्म कथा एक ऐतिहासिक उपन्यास है- इसमें हर्षकालीन सभ्यता और संस्कृति का वर्णन है. इसमें लेखक ने अतीतकालीन चेतना-प्रवाह को वर्तमान जीवन धारा से जोड़ा है. पुनर्नवा में समुद्रगुप्त के समय को उपन्यास का विषय बनाया है. चारू चंद्र लेख में गहरवार नरेश जयचंद की पराजय के बाद का समय चित्रित हुआ है. ऐतिहासिक काल पर आधारित होने पर भी इनमें ऐतिहासिक तथ्यों का संग्रह नहीं है वरन् इतिहास की घटनाओं और तथ्यों की अपेक्षा साहित्यिक व सांस्कृतिक साम्रगी को कथानक का आधार बनाया है. अनामदास का पोथा में उपनिषदों में वर्णित कथा है. आपके उपन्यास आपकी मौलिक प्रतिभा व कल्पना द्वारा लिखे गये हैं.

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी को लखनऊ विश्वविद्यालय ने डी0 लिट् की उपाधि से सम्मानित किया था. आपको सन् 1957 ई0 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. सन् 1973 ई0 में आलोक पर्व(निबंध संग्रह) के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.





Saturday, August 18, 2018



नारी हो, सबसे करती हो प्यार,
स्वयं से भी सीखो करना प्यार।

नारी हो, सबका करती हो सम्मान,
स्वयं का भी सीखो करना सम्मान।

तभी परिवार, समाज, देश, विश्व
तुम्हें देंगे प्यार और सम्मान।

                            डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Friday, August 17, 2018



कुछ तो बात खास है सूखे गुलाब में,
जो आज भी महक है ज्यादा ताजा गुलाब से।

                            डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Thursday, August 16, 2018

भारत रत्न हिन्दी के महान कवि, हिन्दी भाषा को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलाने वाले राजनेता 

श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि-




Wednesday, August 15, 2018



बाबूजी की पुण्य-तिथि पर सादर नमन

स्मृति शेष

बाबूजी की चिड़िया कितनी निर्भय,
हथेली से चुगती भुट्टे के दाने।

                            डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Tuesday, August 14, 2018


72वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें


उड़े आकाश
गुब्बारे तिरंगे
गर्व हमारा।

                     डॉ0 मंजूश्री गर्ग

राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत कवितायें-


मन मोहनी प्रकृति की गोद में जो बसा है।
सुख स्वर्ग-सा जहाँ है वह देश कौन-सा है।

जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है।
जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है।

नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं।
सींचा हुआ सलोना वह देश कौन-सा है।

                          राम नरेश त्रिपाठी

सापेक्ष विश्व निर्मित है
कल्पना कला के लेखे।
यह भूमि दूसरा शशि है
कोई शशि से जा देखे।
                  जगदीश गुप्त