हिन्दी साहित्य
Friday, August 24, 2018
तेरे मन ने जान ली, मेरे मन की बात,
क्या तुम्हें पाती लिक्खूँ, क्या करूँ मनुहार।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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