आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के जन्म-दिवस पर शत्-शत् नमन
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि- 19 अगस्त, सन् 1907 ई0, उत्तर प्रदेश
पुण्य-तिथि- 19 मई, सन् 1979 ई0, दिल्ली
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी
के पिता श्री अनमोल द्विवेदी और माँ श्रीमती ज्योतिष्मती थीं. आपका परिवार ज्योतिष
विद्या के लिये प्रसिद्ध था. सन् 1930 ई0 में आपने ज्योतिष विद्या में आचार्य की
उपाधि प्राप्त की. इसी वर्ष शांति निकेतन में अध्यापन कार्य प्रारंभ किया. यहाँ
गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर और आचार्य क्षितिमोहन सेन के प्रभाव से साहित्य का गहन
अध्ययन किया और स्वतंत्र लेखन की ओर प्रवृत्त हुये. आप हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी, बँगला और संस्कृत
भाषाओं के भी विद्वान थे.
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी
का व्यक्तित्व प्रभावशाली और स्वभाव सरल था. आपने संस्कृति, इतिहास, ज्योतिष और
साहित्य विषयों में निबंध लिखे. आपने अधिकांशतः विचारात्मक और आलोचनात्मक निबंध
लिखे हैं. आपकी भाषा भाव और विषय के अनुरूप व्यवहारिक व परिमार्जित है. आलोचना के
क्षेत्र में आपका महत्वपूर्ण स्थान है. आपने सूर, कबीर और तुलसीदास पर जो
विद्वतापूर्ण आलोचनायें लिखीं वे हिन्दी में पहले नहीं लिखी गयीं. आपने सूर
साहित्य, हिन्दी साहित्य की भूमिका, कबीर, लालित्य तत्व, कालिदास की लालित्य
योजना, कुटज, हिन्दी साहित्य का उद्भव और विकास, आदि अनेक ग्रंथों की रचना की.
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी
ने हिन्दी भाषा के ऐतिहासिक व्याकरण ग्रंथ की भी रचना की थी. आपके द्वारा
लिखित प्रसिद्ध उपन्यास हैं- बाणभट्ट की आत्म कथा, चारू चंद्र लेख, अनामदास का
पोथा और पुनर्नवा. बाणभट्ट की आत्म कथा एक ऐतिहासिक उपन्यास है-
इसमें हर्षकालीन सभ्यता और संस्कृति का वर्णन है. इसमें लेखक ने अतीतकालीन
चेतना-प्रवाह को वर्तमान जीवन धारा से जोड़ा है. पुनर्नवा में समुद्रगुप्त
के समय को उपन्यास का विषय बनाया है. चारू चंद्र लेख में गहरवार नरेश जयचंद
की पराजय के बाद का समय चित्रित हुआ है. ऐतिहासिक काल पर आधारित होने पर भी इनमें
ऐतिहासिक तथ्यों का संग्रह नहीं है वरन् इतिहास की घटनाओं और तथ्यों की अपेक्षा
साहित्यिक व सांस्कृतिक साम्रगी को कथानक का आधार बनाया है. अनामदास का पोथा
में उपनिषदों में वर्णित कथा है. आपके उपन्यास आपकी मौलिक प्रतिभा व कल्पना द्वारा
लिखे गये हैं.
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी
को लखनऊ विश्वविद्यालय ने डी0 लिट् की उपाधि से सम्मानित किया था. आपको सन् 1957
ई0 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. सन् 1973 ई0 में आलोक पर्व(निबंध
संग्रह) के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
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