हिन्दी साहित्य
Monday, August 13, 2018
वो झूलों की पेंगे,
वो सखियों का संग,
वो बरखा की फुहारें,
याद बहुत आती हैं,
वो बचपन की तीजें।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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