Wednesday, August 22, 2018



हरिशंकर परसाई जी के जन्म-दिवस पर शत्-शत् नमन


हरिशंकर परसाई

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 22 अगस्त, सन् 1924 ई0
पुण्य-तिथि- 10 अगस्त, सन् 1995 ई0

हरिशंकर परसाई मध्य प्रदेश के रहने वाले थे. आपने व्यंग्य को हिन्दी साहित्य में एक विधा के रूप में मान्यता दिलाई. आपने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार एवम् शोषण पर करारे व्यंग्य लिखे. यद्यपि प्रारम्भ में कविता, कहानी, उपन्यास, लेख, आदि लिखे, लेकिन धीरे-धीरे व्यंग्य-विधा की ओर अधिक ध्यान दिया और एक व्यंग्यकार के रूप में प्रसिद्ध हुये. आपकी व्यंग्य रचनायें पाठक के मन में हास्य ही उत्पन्न नहीं करतीं वरन् सामाजिक विसंगतियों से रूबरू भी कराती हैं. आपने सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन मूल्यों का उपहास करते हुये सदैव विवेक सम्मत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाया.

हरिशंकर परसाई जी जबलपुर से प्रकाशित पत्र देशबन्धु में पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते थे. शुरू में हल्के-फुल्के मनोरंजन के प्रश्न ही पूछे जाते थे किन्तु धीरे-धीरे परसाई जी ने पाठकों को सामाजिक व राजनीति के गम्भीर विषयों की ओर प्रवृत्त किया. देश के कोने-कोने से जागरूक व उत्सुक पाठक परसाई जी से प्रश्न पूछते थे और परसाई जी प्रश्न की प्रकृति के अनुसार सूचनात्मक, विश्लेषणात्मक, तुलनात्मक, व्यंग्यात्मक शैलियों में उत्तर देते थे. आपको विकलांग श्रद्धा के दौर(लेख संग्रह) के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

व्यंग्य का उदाहरण-

सदाचार भला किसे प्रिय नहीं होता. सदाचार का तावीज बाँधते वे भी हैं जो सचमुच आचारी होते हैं और वे भी जो बाहर से एक होकर भी भीतर से सदा चार रहते हैं.

               हरिशंकर परसाई

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने सामाजिक विसंगतियों और राजनैतिक भ्रष्टाचार के विरोध में अपने मन में धधकती आग की अभिव्यक्ति की है-

बाँध बाती में ह्रदय की आग चुप जलता रहे जो
और तम से हारकर चुपचाप सिर धुनता रहे जो
जगत को उस दीप का सीमित निबल जीवन सुहाता
यह धधकता रूप मेरा विश्व में भय ही जगाता
प्रलय की ज्वाला लिये हूँ, दीप बन कैसे जलूँ मैं?

                                                हरिशंकर परसाई




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