Tuesday, January 31, 2023


कैसा मौसम!

बारिशों के बाद भी

छाया है धुंध।


                            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, January 30, 2023


शामिल हम

तुम्हारी चाहतों में

क्या कम है ये!


                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, January 29, 2023


माघ महीना

बरसे बादल या

बरसे सोना!

हाँ! माघ के महीने(जनवरी और फरवरी) यदि बारिश होती है तो गेहूँ की फसल बहुत अच्छी होती है, गेहूँ की बालियों में दाना बड़ा हो जाता है. इसीलिये कहते हैं कि माघ महीने में बारिश होने से गेहूँ के खेतों में सोना बरसता है।


                     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, January 28, 2023


परम्परायें

 

परम्परायें बेड़ियाँ नहीं

पथ प्रदर्शक हैं हमारी

धरोहर हैं संस्कृति की।

बाधक गर बने प्रगति-पथ में

तोड़नी पड़ती हैं कभी-कभी।


                          डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, January 27, 2023


डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

जन्म-तिथि- 27 मई, सन्1894ई. राजनाँदगाँव, छत्तीसगढ़

पुण्य-तिथि- 28 दिसंबर सन् 1971ई. रायपुर, छत्तीसगढ़

 

डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल के प्रमुख रचनाकार, निबंधकार व पत्रकार थे। द्विवेदी युग की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती के बहुत समय तक सहायक संपादक व संपादक रहे और हिन्दी साहित्य की सेवा की। हिन्दी साहित्य के प्रमुख आन्दोलन आदर्शोन्मुख यथार्थवाद में बख्शी जी की अहम् भूमिका रही व बख्शी जी अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुड़े रहे।

 

डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी का जन्म छत्तीसगढ़ के राजनादगाँव के छोटे से कस्बे खैरागढ़ में एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। हाई स्कूल तक की शिक्षा खैरागढ़ में हुई थी और बनारस विश्व विद्यालय से बी. ए. किया था। बख्शी जी की प्रतिभा को सर्वप्रथम खैरागढ़ के इतिहासकार लाल प्रद्युम्न सिंह ने पहचाना था और बख्शी जी को साहित्य सृजन के लिये प्रेरित किया था। सन् 1911 ई. में जबलपुर से निकलने वाली हितकारिणी पत्रिका में बख्शी जी की प्रथम कहानी तारिणी प्रकाशित हुई। बख्शी जी का पहला निबन्ध सोना निकालने वाली चींटियाँ सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुआ।

   डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी ने सर्वप्रथम सन् 1916 ई. से सन् 1919 तक राजनाँद गाँव के स्टेट हाईस्कूल में संस्कृत शिक्षा के रूप में सेवा की। दूसरी बार बख्शी जी सन् 1929 से सन् 1949 तक खैरागढ़ विक्टोरिया हाईस्कूल में अंग्रेजी के शिक्षक रहे। तीसरी बार बख्शी जी सन् 1959 में दिग्विजय कॉलेज, राजनाँद गाँव में हिन्दी के प्रोफेसर बने और आजीवन वहीं कार्यरत रहे।

 

डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी जी विशेष रूप से निबंधकार के रूप में जाने जाते हैं लेकिन इन्होंने कवितायें, कहानियाँ, नाटक, उपन्यास, आत्मकथा, संस्मरण भी लिखे हैं-

उदाहरण-

कविता संकलन- अश्रुदल, शतदल, पंचपात्र, आदि।

नाटक- अन्नपूर्णा का मन्दिर, उन्मुक्ति का बन्धन

उपन्यास- कथाचक्र, भोला(बाल उपन्यास), वे दिन(बाल उपन्यास)

समालोचनात्मक निबंध- हिन्दी साहित्य विमर्श, विश्व साहित्य, हिन्दी कहानी साहित्य,हिन्दी उपन्यास साहित्य, प्रदीप(प्राचीन एवम् अर्वाचीन कविताओं का आलोचनात्मक अध्ययन

साहित्यिक व सांस्कृतिक निबंध- बिखरे पन्ने, मेरा देश

आत्मकथा- मेरी आत्मकथा

संस्मरण- जिन्हें नहीं भूलूँगा

डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी जी को सन् 1949 ई. में हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्य वाचस्पति(पीएच. डी) की डिग्री से अलंकृत किया गया और सन् 1969 ई. में सागर विश्व विद्यालय द्वारा डी. लिट् की उपाधि से विभूषित किया गया।

बख्शी जी की कविता का उदाहरण-

 

मातृ मूर्ति

क्या तुमने मेरी माता का देखा दिव्याकार

उसकी प्रभा देखकर विस्मय-मुग्ध हुआ संसार।

 

अति उन्नत ललाट पर हिमगिरि का है मुकुट विशाल,

पड़ा हुआ है वक्षस्थल पर जह्नसुता का हार।

 

हरित शस्य से श्यामल रहता है उसका परिधान,

विन्ध्या-कटि पर हुई मेखला देवी की जलधार।।

 

भव्य भाल पर शोभित होता सूर्य रश्मि सिंदूर,

पाद पद्म को प्रक्षालित है करता सिंधु अपार।

 

                                     डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी

 

 

Thursday, January 26, 2023


जो भी यहाँ पे

जन्मा. पला औ' बढ़ा

है हिन्दुस्तानी।


                        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, January 25, 2023


26 जनवरी, 2023 गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें


 


26 जनवरी, 2023 बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें


माँ सरस्वती हम सब तो सद्ज्ञान व सुबुद्धि देने की कृपा करें। 

Tuesday, January 24, 2023


मुमकिन नहीं।

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

 रहो उदास तुम,

खुश रहें हम,

मुमकिन नहीं।

पाला भी पड़े,

तुलसी भी ना सूखे,

मुमकिन नहीं।

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Monday, January 23, 2023


मातृ मूर्ति

 

क्या तुमने मेरी माता का देखा दिव्याकार

उसकी प्रभा देखकर विस्मय-मुग्ध हुआ संसार।

 

अति उन्नत ललाट पर हिमगिरि का है मुकुट विशाल,

पड़ा हुआ है वक्षस्थल पर जह्नसुता का हार।

 

हरित शस्य से श्यामल रहता है उसका परिधान,

विन्ध्या-कटि पर हुई मेखला देवी की जलधार।।

 

भव्य भाल पर शोभित होता सूर्य रश्मि सिंदूर,

पाद पद्म को प्रक्षालित है करता सिंधु अपार।


                                           डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी

Sunday, January 22, 2023


दोनों चुप हैं

प्रथम मिलन में

सहमे हुये।

                                      डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, January 21, 2023


गीत की माला में, शब्दों के मनके।

मनकों में भावों के रंग औ' विभावों की खुशबू।।


                             डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, January 20, 2023


सफेद मोर

संगमरमर सा

नाचते देखा।

                         डॉ. मंजूश्री गर्ग

        

Thursday, January 19, 2023


प्यार की छुअन जब-जब मिली,

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

स्नेहिल स्पर्श पा श्री राम का,

जड़ अहिल्या बनी फिर नारी।

 

अधरों की छुअन पा श्री कृष्ण की,

जड़ बाँसुरी बजी सप्तम स्वर में।

 

प्यार की छुअन जब-जब मिली,

नाच उठा मन-मयूर वन में।

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Wednesday, January 18, 2023


एक पल

 डॉ. मंजूश्री गर्ग

एक पल की उड़ान क्या होती है?

पिंजरे में कैद पक्षी से पूछो!

 

जल की शीतलता क्या होती है?

जल विहिन मछली से पूछो!

 

मिलन का एक पल क्या होता है?

विरह में डूबे प्रेमी से पूछो!

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Tuesday, January 17, 2023


इंसानियत की धरा में

     प्यार के बीज बो दो।

आज नहीं, तो कल

     मानवता के फूल खिलेंगें।। 


                            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, January 16, 2023


मान दिया, सम्मान दिया,

सर आँखों पे बैठाया तुम्हें।

मेहमान बन के आये थे

       ठग कर चले गये हमें।।   

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, January 15, 2023


हम सबने

सर्दी में सूरज से

आँख मिलाई।


                  डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, January 14, 2023


माघ महीना

प्रयागराज वास

संगम स्नान।


                  डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, January 13, 2023


आँधियों में उजड़े चमन, बसाती प्यार की बयारें।

आँधियाँ हों नफरत की, तो बसायेगा फिर कौन?


                                                         डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, January 12, 2023


 ठोकर नहीं कहती कि रोक दो बढ़ते कदम।

कहती है बढ़ते रहो आगे सँभल-सँभल कर।।


                         डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, January 11, 2023


पारखी नजरें--

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

हर गोल चीज चाँद नहीं होती।

हर पीली चीज सोना नहीं होती।

हर पत्थर नगीना नहीं होता।

परख ही लेती हैं पारखी नजरें,

जिसको जिसकी चाहत होती है। 

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Tuesday, January 10, 2023


10जनवरी, 2023, विश्व हिन्दी दिवस पर विश्व के सभी हिन्दी भाषी प्रेमियों को बहुत-बहुत शुभकामनायें


                                                                         


सभी विद्वानों व साहित्यकारों को शत्-शत् नमन, जिन्होंने हिन्दी भाषा के प्रचार व प्रसार के लिये विश्व स्तर पर अविस्मरणीय प्रयास किये।   


गुनगुनी सी धूप देख छत पे आ गये

ये नजारे शीत के मन लुभा गये।

बर्फ जमी पहाड़ियाँ, धुंध भरी घाटियाँ

दूर से ही देख कर मन लुभा गये।।

     

  डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, January 9, 2023


बिन थामे ही हाथ, हमेशा

थामे रहते हाथ हमारा।

कैसे कह दें! साथ नहीं हो,

पल-पल साथ निभाते हो।।


     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, January 8, 2023


दूर रहने से ना नजदीकियाँ कम होंगी।

आप बढ़ाये दूरियाँ नजदीकियाँ बढ़ जायेंगी।।


   डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Saturday, January 7, 2023


मंजिल पानी है गर

अवरोधों से डरना कैसा!

कौन है? जिसने ताप सहा नहीं

सूरज जैसा चमका जो भी।।


                 डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, January 6, 2023

 

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने गोपी-उद्धव संवाद का वर्णन किया है- गोपियों को लगता है कि कान्हा कूबरि के प्रेम में आसक्त हैं इसी कारण हमें भूल गये हैं. गोपियाँ ऊधो से कूबरि के पास ले जाने की विनती करती हैं ताकि वे भी कूबरि से प्रेम-मंत्र सीख सकें और उन्हें भी कान्हा का सामीप्य मिल सके.

ऊधौ! तहाँई चलौ लै हमें जहँ कूबरि कान्ह बसैं एक ठौरी।

देखिए दास अघाय अघाय तिहारे प्रसाद मनोहर जोरी।

कूबति सों कछु पाइए मंत्र, लगाइए कान्ह सों प्रीति की डोरी।

कूबरि भक्ति बढ़ाइए बंदि, चढ़ाइए चंदन वंदन रोरी।

                                       भिखारीदास


Thursday, January 5, 2023


नजरों के नजर से मिलते ही

छा गया प्रीत रंग ऐसे ही

जैसे आकाश समुद्र के मिलते ही

छा जाये नील रंग नजरों में।


           डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, January 4, 2023


प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने शिशिर ऋतु का वर्णन किया है-

सिसिर में ससि को सरूप वाले सविताउ,

घाम हू में चांदनी की दुति दमकति है।

सेनापति होत सीतलता है सहज गुनी,

रजनी की झाँई वासर में झलकति है।

                           सेनापति 

Tuesday, January 3, 2023


हकीकत में ना सही

ख्बाबों में ही सही।

पल भर जी लेते हैं,

मुस्कुरा लेते हैं पल भर।।


           डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, January 2, 2023

 

पांडेय बेचन शर्मा उग्र




डॉ. मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 1909 ई. (उत्तर प्रदेश)

पुण्य-तिथि- 1967 ई. (दिल्ली)

 

पांडेय बेचन शर्मा उग्रहिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं पत्रकार थे। इनके पिता का नाम वैद्यनाथ पांडेय था। ये सरयूपारीण ब्राहम्ण थे। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण इन्हें स्कूली शिक्षा नियमित रूप से न मिल सकी। इसी कारण पांडेय जी ने बचपन से ही राम-लीला में अभिनय किया था। ये बचपन से ही प्रतिभाशाली थे, अभिनय कला के साथ-साथ काव्य-प्रतिभा भी ईश्वर प्रदत्त थी। साथ ही पांडेय जी उग्र स्वभाव के भी थे जिसके कारण इनका उपनाम उग्र पड़ा। लाला भगवानदीन के सामीप्य में आने पर हिन्दी साहित्य के प्रति इनका रूझान बढ़ता गया। किशोरावस्था में ही प्रियप्रवास की शैली में ध्रुवचरित् प्रबंध काव्य की रचना की थी।

 

पांडेय बेचन शर्मा उग्र ने चॉकलेट, शैतान की मछली, इन्द्रधनुष. उसकी माँ, चाँदनी, क्रांतिकारी कहानियाँ, उग्र का रहस्य, पंजाब की महारानी, आदि कुल 97 कहानियाँ लिखीं। चंद हसीनों के खतूत, दिल्ली का दलाल, फागुन के दिन चार, जुहू, आदि उपन्यास लिखे। अपनी खबर आत्मकथा लिखी। कुछ विद्वान इसे हिन्दी साहित्य की प्रथम आत्मकथा मानते हैं, जबकि प्रथम आत्मकथा कवि बनारसी दास जैन ने 17वीं शताब्दी में दोहा, चौपाई और सवैया में लिखी थी। हाँ! हिन्दी गद्य साहित्य की प्रथम आत्मकथा हम अपनी खबर को मान सकते हैं।

 

पांडेय बेचन शर्मा उग्र ने हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में भी सच्चे पत्रकार का आदर्श प्रस्तुत किया था। काशी से प्रकाशित दैनिक पत्र ऊँटपटाँग शीर्षक से व्यंग्यात्मक लेख लिखते थे, इसमें इन्होंने अपना नाम अष्टावक्र रखा। फिर भूत नाम से हास्य-व्यंग्य प्रधान पत्र निकाला। गोरखपुर से प्रकाशित होने वाले स्वदेश पत्र में दशहरा अंक का संपादन किया। कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले मतवाला पत्र में काम किया। वीणा, विक्रम, संग्राम, हिन्दी पंच, आदि विविध पत्रों में संपादन का काम किया, लेकिन उग्र स्वभाव के कारण कहीं भी टिक नहीं पाये। पांडेय जी सामाजिक विषमताओं से आजीवन संघर्ष करते रहे।  

 


Sunday, January 1, 2023

हर किरण उजाली  हो ।

हर सुबह सुनहली हो।

हर दिन महके खुशियों से,

रात का साया भी न सपनों पे हो।


                           डॉ. मंजूश्री गर्ग