प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने शिशिर ऋतु का वर्णन किया है-
सिसिर में ससि को सरूप वाले सविताउ,
घाम हू में चांदनी की दुति दमकति है।
सेनापति होत सीतलता है सहज गुनी,
रजनी की झाँई वासर में झलकति है।
सेनापति
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