Monday, January 23, 2023


मातृ मूर्ति

 

क्या तुमने मेरी माता का देखा दिव्याकार

उसकी प्रभा देखकर विस्मय-मुग्ध हुआ संसार।

 

अति उन्नत ललाट पर हिमगिरि का है मुकुट विशाल,

पड़ा हुआ है वक्षस्थल पर जह्नसुता का हार।

 

हरित शस्य से श्यामल रहता है उसका परिधान,

विन्ध्या-कटि पर हुई मेखला देवी की जलधार।।

 

भव्य भाल पर शोभित होता सूर्य रश्मि सिंदूर,

पाद पद्म को प्रक्षालित है करता सिंधु अपार।


                                           डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी

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