मातृ मूर्ति
क्या तुमने मेरी माता का देखा दिव्याकार
उसकी प्रभा देखकर विस्मय-मुग्ध हुआ संसार।
अति उन्नत ललाट पर हिमगिरि का है मुकुट विशाल,
पड़ा हुआ है वक्षस्थल पर जह्नसुता का हार।
हरित शस्य से श्यामल रहता है उसका परिधान,
विन्ध्या-कटि पर हुई मेखला देवी की जलधार।।
भव्य भाल पर शोभित होता सूर्य रश्मि सिंदूर,
पाद पद्म को प्रक्षालित है करता सिंधु अपार।
डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी
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