Tuesday, April 30, 2019



तन तो ये साकेत है, और ह्रदय है राम।
श्वास-श्वास में गूँजता, पल-पल उसका नाम।।

                                  गोपाल दास नीरज




प्रगतिवाद
डॉ. मंजूश्री गर्ग
प्रगति का अर्थ ही है आगे बढ़ना. हर युग पिछले युग के समर्थन और विरोध के साथ ही नये युग का प्रारम्भ करता है. जो विचारधारा राजनीति मे साम्यवाद है, दर्शन में द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद है वही साहित्य में प्रगतिवाद है.
  
द्विवेदी युग की इतिवृत्तात्मकता, उपदेशात्मकता और स्थूलता के प्रति विद्रोह के फलस्वरूप छायावाद का जन्म हुआ और छायावाद की सूक्ष्मता, कल्पनात्मकता, व्यक्तिवादिता और समाज-विमुखता की प्रतिक्रिया में एक नयी साहित्यिक काव्य-धारा का जन्म हुआ. यह काव्यधारा प्रगतिवाद के नाम से विख्यात हुई. इसका आधार जीवन का यथार्थ और वस्तुवादी दृष्टिकोण रहा.

प्राचीन से नवीन की ओर, आदर्श से यथार्थ की ओर, पूँजीवाद से समाजवाद की ओर, रूढ़ियों से स्वच्छंद जीवन की ओर, उच्च वर्ग से निम्न वर्ग की ओर, शांति से क्रांति की ओर बढ़ना. इन विशेषताओं ने जब एक आंदोलन के रूप में साहित्य में प्रवेश किया तो कविता ही नहीं साहित्य की अन्य विधाओं(कहानी, उपन्यास, नाटक) में भी प्रवेश किया और प्रगतिवाद एक आंदोलन के रूप में साहित्य में उभरा.

सर्वप्रथम यूरोप में प्रगतिशील मंच की स्थापना हुई और लंदन में ही भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई. यूरोप में बसे भारतीय युवकों के मन में यह विचार आया कि जब तक भारतीय अपने अन्धविश्वास और रूढ़िवादिता की जड़ता से नहीं उबरेंगे तब तक पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त नहीं हो सकते. अतः भारतीय लेखक वर्ग का कर्तव्य है कि भारतीय समाज को संकीर्ण मनोविचार से उबार कर प्रगति पथ पर आरूढ़ करें. भारत में सन् 1936 ई. में लखनऊ में मुंशी प्रेमचंद की अध्यक्षता में
प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई. हिन्दी साहित्य में प्रगतिवाद की धारा न केवल हिन्दी काव्य में बही वरन् कथा साहित्य में भी प्रचुर मात्रा में बही.

छायावाद के प्रमुख स्तम्भ सुमित्रानन्दन पंत और सूर्यकान्त त्रिपाठी ने भी प्रगतिवादी काव्य को समर्थ और सक्षम बनाने में अपना सहयोग दिया. बालकृष्ण शर्मा नवीन, मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, रामधारी सिंह दिनकर, आदि राष्ट्रीय व सांस्कृतिक धारा के कवियों नें भी प्रगतिवाद से सम्बन्धित कविताओं की रचना की. रामेश्वर शुक्ल अंचल, भारत भूषण अग्रवाल, शिवमंगल सिंह सुमन,आदि कवियों ने श्रृंगारिक कविताओं के साथ-साथ प्रगति-चेतना पर आधारित कवितायें लिखीं. साम्यवादी विचारधारा से प्रेरित कवियों- केदारनाथ अग्रवाल, रांगेय राघव, रामविलास शर्मा, गजाननमाधव मुक्तिबोध, नागार्जुन, त्रिलोचन, आदि ने प्रारम्भ  से ही प्रगतिवादी कविताओं की रचना की और हिन्दी काव्य को नयी दिशा दी.

कथा साहित्य में कहानी, उपन्यास, नाटक, आदि सभी विधाओं में प्रगतिवाद के रंग देखने को मिलने लगे. प्रेमचन्दोत्तर युग में मार्क्सवाद के प्रभाव से कहानीकार कहानियों में समाज में व्याप्त जीवन्त समस्याओं को अभिव्यक्त करने लगे. आधुनिक कथाकार अपनी अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने के लिये बिम्ब और प्रतीकों का भी प्रयोग करने लगे. प्रगतिवादी युग के प्रमुख कहानीकार हैं- मोहन राकेश, कमलेश्वर, अमृतराय, फणीश्वरनाथ रेणु, निर्मल वर्मा, मन्नू भंडारी, शैलेश मटियानी, उषा प्रियंवदा, कृष्णा सोबती, श्रीकांत वर्मा, शेखर जोशी, आदि.

मार्क्सवादी(प्रगतिवाद) विचारधारा से प्रभावित होकर समाज के माध्यमवर्गीय जीवन से प्रभावित होकर उपन्यास लिखे जाने लगे. मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास भी लिखे गये. आंचलिक विषयों को भी उपन्यासों का विषय बनाया गया. इस समय के प्रमुख उपन्यासकार हैं- नागार्जुन, धर्मवीर भारती, श्रीलाल शुक्ल, फणीश्वरनाथ रेणु, राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर, कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी, उदयशंकर भट्ट, शिवप्रसाद सिंह, आदि.

नाटककार भी प्रगतिवाद के प्रभाव स्वरूप अपने आस-पास की समस्याओं और चुनौतियों को नये-नये प्रयोगों के माध्यम से नाटकों में अभिव्यक्त करने लगे. एब्सर्ड(विसंगत) नाटक भी लिखे जाने लगे. इस समय के प्रमुख नाटककार हैं- उपेन्द्रनाथ अश्क, मोहन राकेश, जगदीशचन्द्र माथुर, बिष्णु प्रभाकर, सुरेन्द्र वर्मा, आदि.

इस प्रकार प्रगतिवाद ने हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं(कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक) को प्रभावित किया और मार्क्सवादी विचारधारा के साथ-साथ समाज में जन जागरूकता का कार्य भी किया.

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Monday, April 29, 2019




आँखों में आँसू, नमी है बनी।
यादों के पौधे, सूखेंगे नहीं।

                          डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, April 28, 2019



प्रातः भी अनुकूल है, संध्या भी अनुकूल।
सच्ची प्रीती निबाहते, सूर्यमुखी के फूल।।

                                        कुँअर बेचैन

Friday, April 26, 2019



दंग रह जाते हैं गुल, चम्पा-चमेली या गुलाब।
जब धरा पर तारकों सम, देखते बेला खिले।।

                                                               कल्पना रमानी

Thursday, April 25, 2019



बेला महके बाग में, सौरभ सबको देत।
भेद ना जाने वो यहाँ, बाँटे स्वयं न लेत।।

                                                                ज्योतिर्मयी पंत

Wednesday, April 24, 2019




रूप-विज्ञान

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जब कोई सार्थक शब्द वाक्य में प्रयोग होने के योग्य हो जाता है, तो उसे पद कहते हैं. पद को रूप भी कहा जाता है. इन्हीं रूपों के वैज्ञानिक विश्लेषण को रूप-विज्ञान (Morphology) कहा जाता है.

पद
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अर्थ तत्व                                         सम्बन्ध तत्व

सभी भाषाओं की रूप धारा अपनी-अपनी होती है. अर्थ तत्व और सम्बन्ध तत्व के परस्पर सम्बन्ध को बताने वाले कुछ रूप निम्नलिखित हैं—

1.     स्वतन्त्र शब्द-
स्वतन्त्र शब्द अर्थ तत्व और सम्बन्ध तत्व से जुड़े न होकर पृथक होते है. जैसे- हिन्दी में ने, को, से, आदि और अंग्रेजी में in, to, on, आदि.

    2.प्रत्यय रूप-
     क. आदि प्रत्यय रूप- (Prifix)

आदि प्रत्यय रूप शब्द के आरम्भ में लगते हैं.हिन्दी में इन्हें उपसर्ग भी कहते हैं. जैसे-हिन्दी में उप, अध, आदि और अंग्रेजी में de, re, un, आदि.

     ख. मध्य प्रत्यय रूप-(Infix)

मध्य प्रत्यय रूप शब्द के मध्य में आता है. जैसे- मुंड़ा भाषा में दल शब्द है जिसका अर्थ है मारना. मध्य में प्रत्यय लगने से दपल शब्द बना जिसका अर्थ है परस्पर मारना.

ग. अन्त प्रत्यय रूप-( Suffix)

अन्त प्रत्यय रूप शब्द के अन्त में आता है. जैसे- हिन्दी के ना, ती, ता, ते, आदि और अंग्रेजी के ly, ness, tion, आदि.

3.आन्तरिक परिवर्तन रूप-
अर्थ तत्व में विद्यमान ध्वनि या ध्वनि गुण के परिवर्तन को आन्तरिक परिवर्तन कहते हैं. जैसे- संस्कृत में अभ्यंतर शब्द से आभ्यंतर शब्द और अंग्रेजी में sing, sang, sung, इसी प्रकार के रूप हैं.

4.अभावात्मक शब्द-
अर्थ तत्व में किसी प्रकार का परिवर्तन न होने पर भी सम्बन्ध तत्व का बोध होता है जैसे- हिंदी में राम घर जाता है वाक्य में राम और घर में कोई अन्तर नहीं है फिर भी राम कर्त्ता है और घर कर्म. ऐसे ही अंग्रेजी में sheep शब्द एकवचन और बहुवचन दोनों के लिये प्रयुक्त होता है.

5. शब्द स्थान रूप-
वाक्य में शब्द के स्थान से ही सम्बन्ध तत्व का बोध होता है जैसे-
1.     John killed a man.
A man killed John.

2. मैं कॉलेज जाता हूँ.
कॉलेज अच्छा स्थान है.

भाषा विज्ञान व्याकरणिक रूपों का ऐतिहासिक विवेचन और वर्णात्मक विश्लेषण करता है. एक से अधिक भाषाओं की तुलना करते समय रूपों का तुलनात्मक अध्ययन भी किया जाता है.




Tuesday, April 23, 2019



मिले मित्र जो कलियुग में, मन में दीजे मान।
जिसने पीड़ा कम करी, उसको अपना जान।।

                                     कुलभूषण व्यास



Monday, April 22, 2019




दिन धमाके
रात चाँदनी।
कैसे कह दें
दिन सुहाने।
                      डॉ. मंजूश्री गर्ग



Sunday, April 21, 2019



महुआ, जामुन, आम का, बौराए जब बौर।
वन में किंशुक फूल तब, खिलते बन सिरमौर।।

                          जय जय राम आनंद

Saturday, April 20, 2019



तट ने पूछा दूर से, टापू क्या है बात.
जाती लहरें दे गयीं, चुम्बन की सौगात।।

                                  किशोर पारिक

Friday, April 19, 2019



आँखें कहें, अपलक देखता रहूँ
कान कहें, मौन हो सुनता रहूँ।
तुम्हीं कहो! प्रिय रागिनी! कैसे?
तुमसे अपने मन की बात कहूँ।

                          डॉ. मंजूश्री गर्ग


Thursday, April 18, 2019



हीरा पन्ना दिल हुआ, तन जैसे पुखराज।
नैना नीलम दे रहे, नवरतनी अंदाज।।

                            किशोर पारिक

Wednesday, April 17, 2019



माना कि, रात को तारे नहीं गिनते,
पर, क्या तुम्हें प्यार नहीं करते?
तुम पास रहो या दूर रहो,
नजरों में तुम ही तुम रहते हो।

                                   डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, April 16, 2019



पर हैं पर उड़ने की अभिलाषा मन में,
पिंजरे से तकते हैं परिंदे आकाश को।

                       डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, April 15, 2019


सवालात सी दीवार उठती सब ओर से
जिंदगी जब भी नया मोड़ लेती है.


                                                     डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, April 14, 2019



बीज-बीज वटवृक्ष है, बूँद-बूँद में सिंधु।
सीप-सीप के ह्रदय में, मोती के अनुबंध।।

                            यतीन्द्र राही



बूँद गिरी आकाश से, चली सिंधु की ओर।
एक आदि का सूत्र है, एक अंत का छोर।।

                                                                    यतीन्द्र राही


Saturday, April 13, 2019




राम नवमी की हार्दिक शुभकामनायें



नील कमल की नीलिमा
पीताभ आभा पीताम्बर की।
रघुवंश प्रिय, धीर, वीर श्री राम
शत-शत कोटि नमन तुम्हें।

                                   डॉ. मंजूश्री गर्ग

Thursday, April 11, 2019




माँ बैष्णों देवी को शत-शत नमन


माँ बैष्णों देवी
त्रिकूट पर्वत पर
सदा विराजें।

               डॉ. मंजूश्री गर्ग



प्रीत की रूनझुन सी पायल बँधी जिंदगी से,
मुस्कुराने लगी सुबह, गुनगुनाने लगी रात।

                                   डॉ. मंजूश्री गर्ग




Tuesday, April 9, 2019




आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास

(सन् 1850 ई. से अब तक)

डॉ. मंजूश्री गर्ग

आधुनिक काल के आरंभ के समय तक हिन्दी कविता के लिये ब्रजभाषा ही उपयुक्त मानी जाती रही, क्योंकि हिन्दी खड़ी बोली को हिन्दी साहित्य की भाषा के रूप में प्रतिष्ठापित करने वाले कवि व लेखक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी भी हिन्दी कविता के लिये ब्रजभाषा के पक्षधर रहे. किन्तु आधुनिक काल में कुछ समय पश्चात् ही हिन्दी खड़ी बोली हिन्दी कविता का माध्यम बनी. सांस्कृतिक नव जागरण और राष्ट्रीय चेतना ने आधुनिक हिन्दी कविता को जन्म दिया. इस धारा में अतीत के गौरव की सुगंध और राष्ट्रीय भावना उद्वेलन राष्ट्रीय पुनर्जागरण की कविताओं में सिद्ध हुआ. मैथिलीशरण गुप्त के काव्य भारत-भारती(काव्य-संग्रह) ने हमारे राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलनकारियों के मन में जोश भरा और सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना को गौरवशाली प्रेरणा प्रदान की. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के कठोर अनुशासन में हिन्दी खड़ी बोली का परिमार्जन हुआ. अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध, माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन, सुभद्राकुमारी चौहान, रामधारी सिंह दिनकर, सोहनलाल द्विवेदी, आदि कवियों ने इस धारा से जुड़कर देशप्रेम की भावनाओं को सशक्त अभिव्यक्ति दी और अपने प्राचीन सांस्कृतिक गौरव की ओर देशवासियों का ध्यान आकर्षित किया.

18 फरवरी, 1922 में स्वतंत्रता आंदोलन के समय बिलासपुर जेल में माखनलाल चतुर्वेदी जी ने देशप्रेम के विलक्षण अनुराग से प्रेरित पुष्प की अभिलाषा कविता की रचना की-

चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूथाँ जाऊँ।
चाह नहीं प्रेमी माला में, बिंध प्यारी को ललचाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जायें वीर अनेक।

सन् 1920 ई. के आस-पास छायावाद काव्यधारा का उदय हुआ. इस भावधारा का आरंभ मुकुटधर पांडेय की कविता कुररी के प्रति से माना जाता है जो सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई. छायावाद के प्रथम सशक्त हस्ताक्षर रहे श्रीधर पाठक. श्रीधर पाठक द्वारा रचित एकांतवास योगी खड़ी बोली का प्रथम खण्ड काव्य है. आधुनिक काल में यह समय स्वच्छंतावादी कविता का माना जाता है. स्वच्छंतावादी कविता में प्रकृति चित्रण के अतिरिक्त समाज सुधार और देशप्रेम की भावनाओं की भी अभिव्यक्ति हुई है. इस काल के कवियों ने रूढ़िगत काव्य विषय और उपमानों को छोड़ दिया. काव्य भाषा में लाक्षणिक प्रयोगों की प्रधानता व कविता में प्रतीकात्मक तत्वों की प्रधानता बढ़ने लगी. व्यैक्तिकता, जिज्ञासा, प्रकृति का मानवीकरण, नारी का विविध रूपों में चित्रण छायावादी कविता की प्रमुख विशेषतायें हैं. छायावादी कवियों में जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है. प्रसाद जी रचित कामायनी(महाकाव्य) छायावाद की अनुपम रचना है. निराला जी की रचना राम की शक्तिपूजा एक अच्ची प्रबंधात्मक रचना है. प्रकृति के प्रति नवीन दृष्टिकोण जिज्ञासा व रहस्य के कारण छायावाद के साथ रहस्यवाद का नाम भी जुड़ा. प्रसाद जी, पंत जी, महादेवी वर्मा का नाम रहस्यवाद से विशेष रूप से जुड़ा है.

सन् 1936 ई. के आस-पास कविता में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक शोषण से मुक्ति का स्वर विशेष रूप अभिव्यक्त होने लगा. इस नवीन भावधारा को प्रगतिवाद के नाम से जाना जाता है. प्रारंभ में पंत जी व निराला जी ने प्रगतिवादी कविता को स्वर दिया. हरिवंशराय बच्चन, नरेंद्र शर्मा, रामेश्वर शुक्ल अंचल, भगवती चरण वर्मा, गोपाल सिंह नेपाली, शिवमंगल सिंह सुमन ने प्रगतिधर्मी रचनायें रचीं. इसी कड़ी को आगे गोपालदास नीरज, रामावतार त्यागी, रामानंद दोषी, रमानाथ अवस्थी, वीरेन्द्र मिश्र, गजानन माधव मुक्तिबोध, केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन, त्रिलोचन, आदि कवियों ने आगे बढ़ाया. सन् 1936 ई. में हरिवंशराय बच्चन की मधुशाला प्रकाशित हुई, कुछ समय तक हालावाद काव्यधारा का भी जोर रहा.

सन् 1943 ई. में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय ने तार सप्तक नाम से एक कविता संग्रह संपादित किया, इसमें सात कवियों(गजानन माधव मुक्तिबोध, रामविलास शर्मा, नेमिचन्द्र जैन, भारतभूषण अग्रवाल, गिरिजाकुमार माथुर, प्रभाकर माचवे, अज्ञेय) की रचनायें हैं. इन रचनाओं में भाव, विचार, प्रक्रिया, छंद, प्रतीक, अलंकार, आदि सभी धरातल पर नये-नये प्रयोग किये गये हैं. इसीलिये इस युग को प्रयोगवाद नाम दिया गया. उपर्युक्त कवियों के अतिरिक्त प्रयोगवादी कवियों में शमशेर बहादुर सिंह, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, नरेश मेहता, आदि के नाम भी उल्लेखनीय हैं. इन कवियों की रचनाओं में बौध्दिक चिंतन की प्रधानता है. यह कविता व्यक्तिवाद, कलावाद के कारण चर्चा में रहीं. मध्यवर्गीय व्यक्तियों की मानसिक कुंठाओं और अपने अंतर्मुखी होने के कारण अधिकांश कवितायें साधारण पाठक की समझ में नहीं आती थीं.

सन् 1947 ई. के बाद प्रयोगवाद का विकास नयी कविता के नाम से जाना जाता है. नया वातावरण और नयी जीवन लहर ने आत्मान्वेषण की प्रेरणा दी. कविता में ईमानदारी और अनुभूति की प्रमाणिकता का आग्रह मान्य हुआ. कविताओं में बिम्ब और प्रतीकों का कुशलतापूर्वक शिल्पन होने लगा. इस समय के प्रमुख कवि हैं- धर्मवीर भारती, शमशेर बहादुर सिंह, कुँवर नारायण, नरेश मेहता, केदारनाथ सिंह, सर्वेश्वरदयाल सक्सैना, श्रीकांत वर्मा, आदि.

प्रयोगवादी कविता के बाद कविता में दो प्रवृत्तियाँ विशेष रूप से देखने को मिलती हैं-एक जनोन्मुखी कविता और दूसरी व्यक्तिवादी कविता. जनोन्मुखी धारा के कवियों में सुदामा पाण्डेय धूमिल और व्यक्तिवादी या अंर्तमुखी धारा के कवियों में श्रीकांत वर्मा का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है. गजानन माधव मुक्तिबोध ने जनोन्मुखी और व्यक्तिवादी दोनों धारणाओं से जुड़ी कविताओं की रचना की. इसी बीच कविताओं का एक वर्ग वह भी आया जो कविता के परंपरित रूपों को पूरी तरह अस्वीकार करने के कारण अकविता नाम से विख्यात हुआ.

अकविता के बाद समकालीन कविता एक नया नाम आया. इस समय हिंदी कविता के क्षेत्र में जिन विशिष्ट कवियों ने योगदान दिया है उनमें भवानी प्रसाद मिश्र, नागार्जुन, धूमिल, रघुवीर सहाय, त्रिलोचन शास्त्री, शमशेर बहादुर सिंह, धर्मवीर भारती, केदारनाथ सिंह, नरेश मेहता, सर्वेश्वरदयाल सक्सैना, दुष्यंत कुमार, ज्ञानेंद्र पति, राजेश जोशी, लीलाधर जगूड़ी, विनोद कुमार शुक्ल, सोमदत्त, आदि विशेष उल्लेखनीय हैं. अनुभवों की खोजपरक साधना हिन्दी कविता के उज्जवल भविष्य का संकेत देती है.

नयी कविता, अकविता की रसहीनता , अति बौद्धिकता, दुरूहता के कारण नवगीत का जन्म हुआ जो भाव प्रवण होने के साथ-साथ सरस भी थे और समकालीन मनोभावों को अभिव्यक्त करने में सक्षम भी थे. नवगीत के रचनाकारों में डॉ. कुअँर बेचैन, गोपालदास नीरज, रामावतार त्यागी के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.

सन् 1975 में देश में आपातकाल लागू होने पर प्रेस पर पाबंदी ही लग गई. इस समय साहित्यकारों व कवियों को ऐसी विधा की आवश्यकता महसूस हुई जो संक्षेप में व्यंग्यात्मक ढ़ंग से अपनी बात आम आदमी तक पहुँचा सके. इसीलिये अस्सी और नब्बे के दशक में गजल विधा का विकास तीव्रगति से हुआ. हिन्दी गजलों में समसामयिक, राजनैतिक और सामाजिक विद्रूपता का चित्रण बहुत ही सहज और व्यंगयात्मक ढ़ंग से हुआ. हिन्दी गजलकारों में डॉ. कुअँर बेचैन, गोपालदास नीरज, रामावतार त्यागी, सूर्यभानु गुप्त,शिवओम अम्बर, गिरिराजशरण अग्रवाल, पुरूषोत्तम प्रतीक, जहीर कुरैशी, चन्द्रसेन विराट, ज्ञानप्रकाश विवेक, अदम गोंडवी, आदि कवियों के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.

गजल विधा के समानांतर अधिकांशतः भक्तिकाल व रीतिकाल में कहे जाने वाली विधा दोहा कहने की परम्परा भी हिन्दी काव्य साहित्य में पुऩः विकसित हो रही है. गजल व दोहा के साथ ही इक्कीसवीं सदी के प्रारम्भ से हिन्दी में जापानी विधा हाइकु में भी काव्य रचना हो रही है. हाइकु विधा गजल और दोहे के समान संक्षिप्त है. यह वर्णात्मक छंद है. इस प्रकार हिंदी कविता निरंतर विकास की ओर अग्रसर है.




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