हिन्दी साहित्य
Friday, April 19, 2019
आँखें कहें, अपलक देखता रहूँ
कान कहें, मौन हो सुनता रहूँ।
तुम्हीं कहो
!
प्रिय रागिनी
!
कैसे
?
तुमसे अपने मन की बात कहूँ।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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