Wednesday, September 29, 2021
Monday, September 27, 2021
Friday, September 24, 2021
Thursday, September 23, 2021
Tuesday, September 21, 2021
Sunday, September 19, 2021
गंगा अवतरण की कथा
डॉ. मंजूश्री गर्ग
राजा हरिश्चन्द्र के वंश
में ही राजा सगर हुये जिन्होंने धर्मपूर्वक राज्य करते हुये, अन्य राजाओं को जीतकर
अपना राज्य बहुत बढ़ा लिया। उनके साठ हजार एक पुत्र थे। कुछ समय पश्चात् राजा सगर
ने सौ अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय किया। निन्यानवें यज्ञ तो भली-भाँति सम्पूर्ण
हो गये, परन्तु जब सौवाँ यज्ञ आरम्भ करके श्याम-कर्ण घोड़ा छोड़ा और अपने साठ हजार
पुत्रों को उसकी रक्षा के लिये साथ किया, तब इन्द्र ने अपने इन्द्रासन चले जाने के
भय से छल द्वारा घोड़े को पकड़कर कपिलमुनि के आश्रम में बाँध दिया और स्वयं
इन्द्रलोक चले गये। जब राजकुमारों को अपना घोड़ा कहीं दिखाई नहीं दिया तो उन्होंने
सारा वृतान्त राजा सगर को सुनाकर आज्ञा माँगी कि यदि आप आज्ञा दें तो हम पृथ्वी को
खोदकर घोड़ा ढ़ूँढ़ निकालें। राजा सगर ने आज्ञा दे दी, तब सगर पुत्रों ने पृथ्वी
को इस प्रकार खोदा कि भरत-खण्ड में सात छोटे-छोटे समुद्र बन गये। जब वे घोड़े को
ढ़ूँढ़ते हुये कपिलमुनि के आश्रम में पहुँचे, तो देखा कि कपिलमुनि आँख बंद करके
तपस्या कर रहे हैं और घोड़ा उनके पीछे बँधा है। राजकुमारों की आवाज सुनकर कपिलमुनि
की समाधि भंग हो गयी और मुनि ने राजकुमारों की ओर देखा, तो वे सब साठ हजार सगर
पुत्र उसी जगह जलकर भस्म हो गये।
जब राजा सगर को बहुत दिनों
तक अपने पुत्रों का कोई समाचार नहीं मिला तो राजा ने अपने पौत्र अंशुमान को अपने
चाचाओं और घोड़े का पता लगाने के लिये भेजा। अंशुमान उन्हें ढ़ूँढ़ता हुआ कपिलमुनि
के आश्रम पहुँचा, वहाँ उसने मुनि को प्रणाम कर उनकी बहुत भाँति से स्तुति की। तब
कपिलमुनि प्रसन्न होकर अंशुमान से बोले-“ हे सगर पौत्र! तू अपना घोड़ा ले जा,
लेकिन तेरे समस्त चाचा मेरी क्रोधाग्नि द्वारा भस्म हो चुके हैं। इसलिये जब गंगाजी
पृथ्वी पर आवेंगी, तभी उनका उद्धार हो सकेगा।“ यह सुनकर अंशुमान कपिलमुनि
को दण्डवत कर, श्याम कर्ण घोड़े को ले, पितामह राजा सगर के पास आये और सारा
वृतान्त सुनाया। पहले तो राजा सगर को बहुत दुःख हुआ, फिर ईश्वर-इच्छा जानकर धैर्य
धारण किया, सौंवाँ यज्ञ सम्पूर्ण कर राज्य अंशुमान को सौंप स्वयं वन को चले गये।
कुछ समय तक राज्य करने के
बाद राजा अंशुमान ने राज्य अपने पुत्र दिलीप को सौंप दिया और स्वयं वन में जाकर
अपने चाचाओं के उद्धार के हेतु पृथ्वी पर श्रीगंगाजी को अवतिरत करने के लिये
श्रीहरिजी का तप करने लगे, वहीं राजा अंशुमान को मुक्ति प्राप्त हो गयी।
तत्पश्चात् राजा दिलीप ने भी गंगा जी को पृथ्वी पर लाने के हेतु तप करके अपना शरीर
त्याग दिया, लेकिन गंगा जी तब भी पृथ्वी पर नहीं आयीं। राजा दिलीप के स्वर्गवास के
समय उनके पुत्र भगीरथ बाल्यावस्था में ही थे। मित्रों के साथ खेलते हुये भगीरथ ने
यह वृतान्त सुना कि अनके पिता और पितामह ने गंगा जी को पृथ्वी पर लाने के लिये तप
करते हुये अपना शरीर त्याग दिया है, तब उन्होंने प्रण किया कि जब तक मैं गंगाजी को
पृथ्वी पर लाने में सफल नहीं हो जाऊंगा राज सिंहासन पर आरूढ़ नहीं होऊँगा। यह निश्चय
कर तप करने के लिये वन में चले गये।
भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर गंगा जी ने उन्हें दर्शन देते हुये कहा- “हे पुत्र! तेरी क्या इच्छा है.” भगीरथ ने उनकी दण्डवत परिक्रमा करके उत्तर दिया- “हे माता! कपिलदेव की क्रोधाग्नि द्वारा मेरे साठ हजार पितामह जलकर भस्म हो गये हैं, इसलिये मेरी यह इच्छा है कि आप पृथ्वी पर पधार कर उनकी भस्म को अपने साथ बहाकर ले जायें, तो उन सबका उद्धार हो जाये।“ यह सुनकर गंगा जी बोलीं-
“हे भगीरथ! मुझे पृथ्वी पर आना
स्वीकार है, परन्तु मेरे आकाश से गिरने के वेग को न सह सकने के कारण पृथ्वी रसातल
को चली जायेगी। इसलिये तुम किसी ऐसे शक्तिशाली देवता की आराधना करो, जो मेरे वेग
को सह सके।“ तब भगीरथ ने महादेव जी को प्रसन्न करने के लिये तप किया। जब
शंकर जी ने प्रसन्न होकर भगीरथ को दर्शन दिये, तो भगीरथ ने उनसे प्रार्थना की कि- “हे कैलाश पति! आप कृपा कर गंगा जी को
अपने मस्तक पर धारण कीजिए जिससे मेरे पूर्वजों का उद्धार हो जाये।“ तब शंकर जी ने भगीरथ से
कहा- “हे भगीरथ! मुझे तुम्हारी बात स्वीकार है।“ जब गंगा जी पृथ्वी पर आने
लगीं तब शंकर जी ने उस जल को अपनी जटाओं में ही समा लिया। तत्पश्चात् भगीरथ ने
शंकर जी से पुनः विनती की, तब शंकर जी ने भगीरथ को एक रथ देते हुये कहा- “हे भगीरथ! तू इस रथ पर सवार होकर आगे-आगे
चल, तब गंगा जी तेरे पीछे-पीछे चलेंगी।“ यह कहकर शंकर जी ने अपने
सिर की जटाओं में से जल की एक छोटी धारा पृथ्वी पर गिरा दी। तब भगीरथ शंकर जी के
दिये हुये रथ पर बैठकर वहाँ चल दिये जहाँ उसके पूर्वजों की भस्म पड़ी हुई थी।
भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा जी ने उसके साठ हजार पूर्वजों का उद्धार कर दिया और
गंगा जी सागर में मिल गयीं। कपिलमुनि का आश्रम गंगा सागर महातीर्थ
का पुण्य स्थल बन गया, जहाँ प्रतिवर्ष मकर संक्राति के दिन महापर्व का
आयोजन होता है।
-------------------------------------------------------------
Saturday, September 18, 2021
Tuesday, September 14, 2021
Sunday, September 12, 2021
Thursday, September 9, 2021
पद्मभूषण से सम्मानित
हिन्दी साहित्यकार
पद्मभूषण सामान्यतः भारतीय नागरिकों को दिया जाने वाला सम्मान है जो जीवन के
विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि- कला, शिक्षा, उद्योग, साहित्य, विज्ञान, खेल,
चिकित्सा, समाज सेवा और सार्वजनिक जीवन आदि में विशिष्ट योगदान को मान्यता प्रदान
करने के लिये दिया जाता है. यह पुरस्कार सन् 1954 ई. से देना प्रारम्भ हुआ था.
पद्मभूषण भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरा सर्वोच्च सम्मान है. पद्मभूषण
सम्मान काँसे का बना होता है बीच में कमल का फूल होता है. ऊपर पद्म और नीचे भूषण
देवनागरी लिपि में लिखा होता है.
सन् 1954 ई. से सन् 2021 ई. तक पद्मभूषण से
सम्मानित हिन्दी साहित्यकार हैं-
1. श्री मैथिलीशरण गुप्त सन् 1954 ई.
2. श्रीमती महादेवी वर्मा सन् 1956 ई.
3. श्री हजारी प्रसाद द्विवेदी सन् 1957 ई.
4. श्री रामधारी सिंह दिनकर सन् 1959 ई.
5. श्री बाल कृष्ण नवीन सन् 1960 ई.
6. श्री शिवपूजन सहाय सन् 1960 ई.
7. श्री राधिका रमण सिंह सन् 1962 ई.
8. श्री रामकुमार वर्मा सन् 1963 ई.
9. श्री माखन लाल चतुर्वेदी सन् 1963 ई.
10.
श्री राहुल
सांस्कृत्यायन सन् 1963 ई.
11.
श्री वृन्दावन लाल
वर्मा सन् 1965 ई.
12.
श्री हरिभाऊ
उपाध्याय सन् 1966 ई.
13.
श्री रघुपति
सहाय(फिराक गोरखपुरी) सन् 1968 ई.
14.
श्री भगवती चरण
वर्मा सन् 1971 ई.
15.
श्री जैनेंद्र
कुमार सन् 1971 ई.
16.
श्री बनारसी दास
चतुर्वेदी सन् 1973 ई.
17.
डॉ. फादर कामिल
बुल्के सन् 1974 ई.
18.
डॉ. हरिवंशराय
बच्चन सन् 1976 ई.
19.
श्री अमृतलाल नागर सन् 1981 ई.
20.
श्री नारायण
चतुर्वेदी सन् 1984 ई.
21.
श्री भीष्म साहनी सन् 1998 ई.
22.
श्री शिवमंगल सिंह
सुमन सन् 1999 ई.
23.
श्री विद्या निवास
मिश्र सन् 1999 ई.
24.
श्री निर्मल वर्मा सन् 2002 ई.
25.
श्री गुलजार सन् 2004 ई.
26.
श्री विष्णु
प्रभाकर सन् 2004 ई.
27.
श्रीमती दिनेश
नंदिनी डालमिया सन् 2006 ई.
28.
श्री गोपालदास नीरज सन् 2007 ई.
29.
श्री लाल शुक्ल सन् 2008 ई.
30.
श्री कुँवर नारायण सन् 2009 ई.