Tuesday, June 30, 2015

वृत्त बनातीं
पानी में पानी से ही
पानी की बूँदें.

--डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Friday, June 26, 2015


बनते वृत्त
केंद्र में हम ही हैं
पाते चुभन.
-----------मंजू गर्ग

केंद्र में व्यक्ति ही रहता है और वृत्त बनते जाते हैं, परिवार, समाज, देश, विश्व के. इन्हें बंधन कहें या सुरक्षा 
कवच. इन्हीं से अस्तित्व है अपना और यही देते हैं चुभन.

Wednesday, June 17, 2015

भीगी यादें

(डॉ0 मंजू गर्ग)

सावन की
भीगी यादें
भीगा मन
भीगा तन
भीगे हम
भीगे तुम
और भीगा
जहाँ सारा.
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Tuesday, June 9, 2015

26 दिसम्बर, 2004

(डॉ0 मंजू गर्ग)

26 दिसम्बर, 2004
पलभर का पृथ्वी का हिलना
औ' ताश के पत्तों की तरह
सुमात्रा का बहना
देखते ही देखते
सुनामी का तांडव
छः देशों के तट पर
ढाता  रहा कहर.

दक्षिण एशिया का नक्शा ही
विश्व के मानचित्र में बदल गया.
यह शहरों या गावों का नहीं
द्वीपों की तबाही का दिन था
तटीय जिंदगी की नीरवता का दिन था.

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Sunday, June 7, 2015

पृथ्वीराज की कलम से

(डॉ0 मंजू गर्ग)

बैर बीज बो दिये परिवारों के बीच
नाना ने देकर सिंहासन दिल्ली का.
क्यों जयचंद देशद्रोही बनते, 'गर
मिलता उन्हें राजपद दिल्ली का.
क्यों आक्र्मणकारियों का वो साथ देते.
हर संभव प्रयास वो करते दिल्ली की रक्षा का
और मैं भी सहर्ष साथ देता उनका.
संयोगिता भी सहज प्राप्त होती मुझे
अजमेर ही बहुत था हम दोनों के लिये.
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