Sunday, April 30, 2017
गजल
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
यह अहसास ही बहुत है मेरे लिये
जहाँ में प्यार पलता है मेरे लिये.
पलना में झुलाया न जाने कितनी बार
पलना झुलाया आँगन में मेरे लिये.
प्यार की बाँसुरी बजायी न जाने कितनी बार
मधुर रागिनी सा प्यार बसाया मेरे लिये.
प्यार की धुन में उन्मुक्त हुये मन को
चाँदनी में नहलाया प्यार मेरे लिये.
धूप के साये में हम जल उठे कितनी बार
आ-आकर शामियाने लगाये मेरे लिये.
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Friday, April 28, 2017
Wednesday, April 26, 2017
Monday, April 24, 2017
समय पुकार रहा-------
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
समय पुकार रहा है तुमको
देखो! वीर जवानों!
‘कॉफी हाउस’ में बैठ-बैठ कर
यह मत भूलो वीरों,
तुमने ही आजाद किया है,
काट बेड़ियाँ माँ की.
तुमने ही माँ की तपन हरी
बूँद-बूँद रस देकर.
समय पुकार रहा है तुमको
देखो! वीर जवानों!
नेताओं के झंडे लेकर
नारों में मत भूलों वीरों;
देश-भक्ति के मुखौटे पहने
सैय्याद छिपे हैं भूमि में
नारों और जुलूसों के नशे में
मत गिरो मृत्यु-पड़ावों पर.
समय पुकार रहा है तुमको
देखो! वीर जवानों!
जिस भूमि की तपन हरी,
शरद् मधुर छाने वाली हैं.
बीज बो दो आज वहीं
बसंत शत-शत खिलाने को.
आने वाली बयार महकें,
कर तुम्हारे रस का पान.
समय पुकार रहा है तुमको
देखो! वीर जवानों!
अंधकार की कोठरियों पड़
क्यों अपने को गला रहे.
भावी-पीढ़ी के सृजन हारा
भावी-पीढ़ी के निर्देशक
भावी-पीढ़ी के पथ-प्रदर्शक
उनका पथ आलोकित करो.
Sunday, April 23, 2017
Saturday, April 22, 2017
जिंदगी की किताब
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
जिंदगी है एक कोरी किताब
जिसकी पृष्ठ संख्या असीमित.
जिसका हर पृष्ठ रंगा समय ने-
कहीं बिखराये पुष्पों के गुच्छे
कहीं डाली काँटों की टहनी.
कोई दुःख की स्मृति में भूला
कोई सुख की स्मृति में भूला.
हर पल लिखती रही कलम
कभी ना थकता समय का हाथ.
किन्तु, अचानक खत्म होती उसकी स्याही
और छूट पड़ती कलम हाथ से.
ज्यों ही करता मौत हस्ताक्षर
बंद हो जाती गतिशील किताब.
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