Sunday, April 30, 2017


सुप्रभात


गीत

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

कुछ इनके लिये
कुछ उनके लिये
कुछ सबके लिये
हम तोहफे लाये हैं.

आओ( चिड़िया रानी आओ
मीठी तान में गीत सुनाओ
भुट्टे के दानों से तुम्हारा
मन बहलायेंगे.

आओ( नन्हीं गुड़िया आओ
मीठी-मीठी बोली में
तुम, एक कविता हमें सुनाओ
रंग-बिरंगी सौफों से तुम्हारा
मन बहलायेंगे.


















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सागर का कहर
देखा सबने
कब देखी
कराह उसकी।
कितना दिल
तड़पा होगा
जो यूँ आह
बही होगी।*

             डॉ0 मंजूश्री गर्ग

*26 दिसम्बर 2004 में सुनामी आने पर
गजल

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

यह अहसास ही बहुत है मेरे लिये
जहाँ में प्यार पलता है मेरे लिये.

पलना में झुलाया न जाने कितनी बार
पलना झुलाया आँगन में मेरे लिये.

प्यार की बाँसुरी बजायी न जाने कितनी बार
मधुर रागिनी सा प्यार बसाया मेरे लिये.

प्यार की धुन में उन्मुक्त हुये मन को
चाँदनी में नहलाया प्यार मेरे लिये.

धूप के साये में हम जल उठे कितनी बार
आ-आकर शामियाने लगाये मेरे लिये.


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Friday, April 28, 2017


खुद को बनाने से पहले
खुद को मिटाना जरूर था.
अपने आप अपनी तकदीर
बनाना आसान न था।

                     डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, April 26, 2017


फिर शकुन्तला छली गयी
एक नये दुष्यन्त से, फिर
शापग्रस्त बनी दुर्वासा-शाप से
किन्तु किसी सखि ने नहीं माँगा,
कोई वरदान दुर्वासा से
सखि की मुक्ति के लिये.क्योंकि!
वह स्वयं ग्रस्त थी दुर्वासा शाप से
और छली हुई दुष्यन्त से.

                             डॉ0 मंजूश्री गर्ग

कुछ ऐसे भी फूल हैं जहाँ में खिलते,
जिनके आँसू भी जाते हैं कुचले.

                           डॉ0 मंजूश्री गर्ग




सीमित दायरों में, बढ़ रहें वट वृक्ष.
विकास-पथ पर, ये नया कदम है.

                         डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जब 'बार्बी' सी 'डॉल' हर बच्चे के पास है
खुद बार्बी बनी घूमती हैं मम्मियाँ यहाँ.
'फ्रिज' से अरमान जम गये हर बच्चे के
थक गयी हैं निगाहें देखते हुये 'टी0वी0'.

                                        डॉ0 मंजूश्री गर्ग




जीवन कोई 'चौसर' का खेल नहीं
हर चौराहे पर नग्न निगाहें देखती हैं 'द्रौपदी'.

                                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Monday, April 24, 2017


आवाज में खनक यूँ ही नहीं आयी
बरसों बाद साथी है मुस्कुराया.

                               डॉ0 मंजूश्री गर्ग

समय पुकार रहा-------

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

समय पुकार रहा है तुमको
देखो! वीर जवानों!
कॉफी हाउस में बैठ-बैठ कर
यह मत भूलो वीरों,
तुमने ही आजाद किया है,
काट बेड़ियाँ माँ की.
तुमने ही माँ की तपन हरी
बूँद-बूँद रस देकर.

समय पुकार रहा है तुमको
देखो! वीर जवानों!
नेताओं के झंडे लेकर
नारों में मत भूलों वीरों;
देश-भक्ति के मुखौटे पहने
सैय्याद छिपे हैं भूमि में
नारों और जुलूसों के नशे में
मत गिरो मृत्यु-पड़ावों पर.

समय पुकार रहा है तुमको
देखो! वीर जवानों!
जिस भूमि की तपन हरी,
शरद् मधुर छाने वाली हैं.
बीज बो दो आज वहीं
बसंत शत-शत खिलाने को.
आने वाली बयार महकें,
कर तुम्हारे रस का पान.

समय पुकार रहा है तुमको
देखो! वीर जवानों!
अंधकार की कोठरियों पड़
क्यों अपने को गला रहे.
भावी-पीढ़ी के सृजन हारा
भावी-पीढ़ी के निर्देशक
भावी-पीढ़ी के पथ-प्रदर्शक
उनका पथ आलोकित करो.





चाँद की खोज में
बदली
इत-उत डोले
देख चाँदनी अपने में.

पर नहीं जानती वह बेचारी
चरण पड़ रहे गलत उसके
उसकी ही छाया
ढाँप रही चाँद को.

                        डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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Sunday, April 23, 2017


तेरी चाहतों ने मुझे,
           इस कदर चाहा.
सीधा-साधा इंसान था
             पत्थर बना दिया.

                            डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Saturday, April 22, 2017


मेरी नादानियों को
                   दोषी ना ठहराओ।
मेरी जिंदगी तुमसे शुरू
                         मेरी बुनियाद तुमसे ही।।

                                                डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जिंदगी की किताब

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जिंदगी है एक कोरी किताब
जिसकी पृष्ठ संख्या असीमित.

जिसका हर पृष्ठ रंगा समय ने-

कहीं बिखराये पुष्पों के गुच्छे
कहीं डाली काँटों की टहनी.

कोई दुःख की स्मृति में भूला
कोई सुख की स्मृति में भूला.

हर पल लिखती रही कलम
कभी ना थकता समय का हाथ.

किन्तु, अचानक खत्म होती उसकी स्याही
और छूट पड़ती कलम हाथ से.

ज्यों ही करता मौत हस्ताक्षर
बंद हो जाती गतिशील किताब.
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Friday, April 21, 2017


अतिथि का सत्कार हम किससे करें
भेंट में अंगार ही अंगार लाये हैं वो।

                                 डॉ0 मंजूश्री गर्ग