Sunday, April 30, 2017

गजल

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

यह अहसास ही बहुत है मेरे लिये
जहाँ में प्यार पलता है मेरे लिये.

पलना में झुलाया न जाने कितनी बार
पलना झुलाया आँगन में मेरे लिये.

प्यार की बाँसुरी बजायी न जाने कितनी बार
मधुर रागिनी सा प्यार बसाया मेरे लिये.

प्यार की धुन में उन्मुक्त हुये मन को
चाँदनी में नहलाया प्यार मेरे लिये.

धूप के साये में हम जल उठे कितनी बार
आ-आकर शामियाने लगाये मेरे लिये.


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