हिन्दी साहित्य
Wednesday, April 5, 2017
सप्तपदी भी नहीं
ना ही सात वचन
ना ही कन्यादान
फिर भी है बेला विदाई की।
साथ ना छोड़ना मेरा
नदी की भाँति
वन-प्रांतर छोड़ आयी हूँ
समा लो मुझे अपनी बाहों में।
ड़ॉ0 मंजूश्री गर्ग
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