गीत
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
बसंत ऋतु है आई पिय
देखो कोयल गीत गाने लगी।
खेतों में सरसों सरसाई
बागों में बौराई अमराई
मन की बात जानो पिय
देखो चूनर लहराई।
धीरे-धीरे बात अधर पै आने लगी
देखो कोयल गीत गाने लगी।
फूलों ने खुशबूयें लुटाईं
तितली उड़ती ले अंगड़ाई
जो तुमको मदहोश कर दे पिय
ऐसी मेंहदी हमने रचाई।
धीरे-धीरे रात गहराने लगी
देखो कोयल गीत गाने लगी।
2.
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