Friday, April 7, 2017


गीत

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

अरमानों की सेज सजाई है
चले आओ, चले आओ।

गेंदे से नहीं, बेले से नहीं
महकती साँसों की
खुशबू से सजाई है
चले आओ, चले आओ।

तन शिथिल हो रहा,
फिर भी मन में
आने की आस जगाई है
चले आओ, चले आओ।

नयन दीप खड़े द्वार पे
तुम्हारे स्वागत को
ये ज्योत जगाई है
चले आओ, चले आओ।

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