गीत
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
अरमानों की सेज सजाई है
चले आओ, चले आओ।
गेंदे से नहीं, बेले से नहीं
महकती साँसों की
खुशबू से सजाई है
चले आओ, चले आओ।
तन शिथिल हो रहा,
फिर भी मन में
आने की आस जगाई है
चले आओ, चले आओ।
नयन दीप खड़े द्वार पे
तुम्हारे स्वागत को
ये ज्योत जगाई है
चले आओ, चले आओ।
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