आत्म-विश्वासः-
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
हर माली बीज बोता
उपवन उगाने को,
हर माली सिंचाई करता
उपवन रंगाने को,
हर माली कटाई करता
उपवन सजाने को, पर
बसन्त खिलने से पहले ही
कुहरा छा जाता,
भौंरों के आने से पहले ही
मकरंद बिखर जाता,
तितलियों के आने से पहले ही
रंग उड़ जाता.
मानों मकरंद नहीं बिखरता
माली की आशा है बिखरती.
मानों पंखुड़ियाँ नहीं टूटती
स्वप्न हैं टूट जाते.
मानों बगिया नहीं लुटती
माली ही है लुट जाता.
नहीं सफल हो पाती उसकी मेहनत,
नहीं सच हो पाती उसकी तमन्नायें.
मन की उमंग, मन में ही रहती.
फिर भी नहीं खत्म होता आत्मविश्वास
नव-आशा, नव-प्रेरणा लेकर जाता है,
फिर से बगिया उगाने को कर्म-पथ पर.
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