Saturday, September 30, 2023

हाइकु

डॉ. मंजूश्री गर्ग

पास हो प्रिया

प्रियतम का प्यार

बढ़ता सदा।

1.


दूर हो प्रिय

प्रियतमा का प्यार

बढ़ता और।

2.


 

Friday, September 29, 2023


शांत, निश्छल बहती हवायें,

ना दिन हैं लम्बे, ना ही रातें।

ना गर्मी के दिन, ना ही सर्दी के,

सुहाना सा मौसम है शरद का।

 

                       डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, September 28, 2023


तुमसे मिल

जिंदगी मीठी हुई

नीम सरीखी।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, September 27, 2023


मीठा जल भी

सागर में मिल के

खारा ही खारा।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, September 26, 2023


सहज, निर्मल, निश्छल, बह रही प्रेम-धार।

मानों नदी के तटों-बीच, बह रही जल-धार।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, September 25, 2023


होंगी निबद्ध

सागर की बाहों में

लघु लहरें।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, September 24, 2023


महके घर

धूप, चंदन सम

तेरे आने से।


                                  डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, September 23, 2023




राधाजी के जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें

उजली रातें

भादों मास अष्टमी

राधाजी जन्मी।

1.

रेशम डोरी

चंदन का पलना

झूलें हैं राधा।

2.

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, September 22, 2023


हिना बिना ही

रच गयी हथेली

तेरे प्यार में।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, September 21, 2023


पुरस्कार हों

सम्मानित हमसे

तभी है यश।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, September 20, 2023


'पीतल' धातु

ताँबा, जस्ता मिल

बनती पीली।


                      डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, September 19, 2023


गीत की माला में, शब्दों के मनके।

मनकों में भावों के रंग और विभावों की खुशबू।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, September 18, 2023



19 सितम्बर 2023 गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें

 

मोदक प्रिय श्री गणेशजी

मोद से भरें घर-आँगन।

 

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

 


श्री कृष्ण-राधा प्रेम-प्रसंग

डॉ. मंजूश्री गर्ग

श्री कृष्ण जब लगभग पाँच वर्ष के थे, तो उनके माता-पिता यशोदा और नंद बाबा कंस के अत्याचारों से तंग आकर अन्य गोप-गोपिकाओं के साथ गोकुल छोड़कर वृंदावन में आ बसे. वृंदावन में बहुत ही सुंदर वन थे, छोटी-छोटी गलियाँ थीं, पास ही यमुना नदी बहती थी. वृंदावन के पास ही बरसाने गाँव था, जहाँ बृषभानु और कीर्ति की पुत्री राधारानी रहती थी. राधारानी प्रायः अपनी सखियों के संग खेलने के लिये वृंदावन आती थी. श्री कृष्ण की नटखट शरारतें; जैसे---माखन चोरी, मटकी फोड़ना, आदि आस-पास के गाँवों में चर्चा के विषय बने हुये थे. राधा के मन में भी कान्हा को देखने की जिज्ञासा थी.

     एक बार श्रीकृष्ण पीताम्बर पहने, पटुका कमर में बाँधे, मोर-मुकुट धारण किये यमुना तट पर अपने सखाओं के साथ खेल रहे थे. तभी राधारानी जिनकी आयु लगभग आठ बरस की होगी, अपनी सखियों के साथ यमुना तट पर स्नान करने आयीं. श्री कृष्ण और राधा की परस्पर आँखें मिलीं और दोनों एक दूसरे को देखते ही रहे. दोनों के हृदय में एक दूसरे के प्रति प्रीति जाग उठी. तब बाँके बिहारी ने हँसकर राधा से उनका नाम पूछा----हे सुंदरी! तुम कौन हो, तुम्हारा नाम क्या है और किसकी पुत्री हो? तुम्हें पहले तो यहाँ नहीं देखा.तब श्री कृष्ण के प्रेम भरे प्रश्नों को सुनकर राधारानी ने उत्तर दिया, ‘ मैं वृषभानु-कीर्ति की पुत्री राधा हूँ, पास के गाँव बरसाने में रहती हूँ और प्रायः अपनी सखियों के साथ यहाँ आया करती हूँ. मैंने बहुत दिनों से नंदजी के बेटे के बारे में सुन रक्खा था कि वे बड़े ही नटखट हैं, माखन चुराते हैं तो लगता है वो तुम्हीं हो.तब श्री कृष्ण ने हँसते हुये कहा, ‘परंतु मैंने तुम्हारा तो कुछ सामान चोरी नहीं किया. आओ! हमसे मित्रता कर लो, दोनों साथ-साथ खेलेंगे.राधारानी अंतःकरण में श्री कृष्ण की बातों से मोहित हो रही थीं, उन्होंने श्री कृष्ण से कहा, ‘अब देर हो रही है, हमें घर वापस जाना है. तुम सायं हमारे यहाँ गाय दुहने आ जाना.जब श्री कृष्ण राधा के यहाँ गाय दुहने गये तो वहाँ एकांत में राधा और कृष्ण ने प्रेमपूर्वक बातें की. दिन-प्रतिदिन राधा और कृष्ण किसी ना किसी बहाने एक-दूसरे से मिलने लगे. कभी वृंदावन में तो कभी बरसाने में. दोनों की परस्पर प्रीति देखकर सभी ब्रजवासी बहुत सुख पाते थे.

    जब श्री कृष्ण मुरली बजाते थे , तो राधा मंत्र-मुग्ध सी मुरली की धुन में खो जाती थीं. कभी-कभी राधा को लगता था कि कान्हा मुझसे ज्यादा बाँसुरी से प्रेम करते हैं. लेकिन यदि कुछ समय कान्हा बाँसुरी नहीं बजाते थे तो राधा बेचैन हो जाती थीं. सावन के महीने में ब्रज में जगह-जगह झूले पड़ जाते थे. जहाँ राधा-कृष्ण प्रेम- पूर्वक झूला झूलते थे. सखियाँ उन्हें झूला झूलाने में आनंद का अनुभव करती थीं. कभी कृष्ण स्वयं फूल तोड़्कर राधा का फूलों से श्रंगार करते, कभी राधा अन्य सखियों के साथ मिल कान्हा का सखी रूप में श्रंगार करतीं. एक बार श्री कृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात को महारासका आयोजन किया और अन्य गोपियों के साथ कृष्ण और राधा ने महारास में आनंद मग्न होकर नृत्य किया.

  एक बार श्री कृष्ण अन्य गोपियों के साथ राधा को अपने घर ले गये. नंद बाबा और यशोदा राधा से मिलकर बहुत प्रसन्न हुये. विदा करते समय यशोदा ने राधा को उपहार भी दिये. ऐसे ही एक बार जब श्री कृष्ण राधा के घर गये तो बृषभानु और कीर्ति ने उनका हार्दिक स्वागत किया और भेंट आदि देकर विदा किया. वास्तव में राधा और कृष्ण के माता-पिता ही नहीं, वरन सभी ब्रजवासी हृदय से चाहते थे कि कृष्ण और राधा की जोड़ी बहुत ही मनोरम है. दोनों का विवाह एक-दूसरे से होना ही चाहिये. किंतु विधाता को कुछ और खेल खेलना था.

   एक दिन कंस ने अक्रूर के द्वारा बलराम और श्री कृष्ण को मथुरा बुलाया. कृष्ण और बलराम का मथुरा जाने का समाचार सुनकर नंद-यशोदा ही नहीं, सब गोपियाँ व ग्वाले विरह सागर में डूब गये. गोपियों ने श्री कृष्ण को रोकने के बहुत प्रयत्न किये, लेकिन श्री कृष्ण कहाँ रूकने वाले थे उन्हें तो आगे अनेक लीलायें करनी थी. तब सब गोपियों ने मिलकर राधा से कहा, “राधा रानी! तुम यदि श्री कृष्ण को रोकोगी, तो वो अवश्य रूक जायेंगे. तुम्हारी बात तो नहीं टाल सकते.” तब राधा ने कहा, “श्री कृष्ण का कर्मक्षेत्र बहुत बड़ा है. मैं उनके कर्मक्षेत्र की बाधा नहीं शक्ति हूँ. वो जहाँ भी रहें मुझसे अलग नहीं हो सकते. मेरे रोम-रोम में श्री कृष्ण बसे हैं, जब भी दर्पण देखती हूँ तो नयनों में श्री कृष्ण की ही मूरत दिखाई देती है. चाँद की चाँदनी तो सारी पृथ्वी पर फैलती है, हमारा आँचल जितना बड़ा होता है उतनी ही हमें मिलती है. इसी तरह श्री कृष्ण का प्रेम फलक बहुत विस्तृत है, हमारे आँचल में जितना आना था आ गया.” इस तरह राधा ने न तो श्री कृष्ण को गोपियों की तरह रोका, न टोका, बस एक टक श्री कृष्ण के रथ को जाता हुआ देखती रहीं. तब श्री कृष्ण ने अक्रूर से रथ रोकने के लिये कहा और राधा से मिलने आये. श्री कृष्ण का मन भी राधा से दूर जाने पर विचलित हो रहा था. दोनों के गले रूँधे हुये थे. श्री कृष्ण और राधा एक-दूसरे से कुछ भी नहीं कह पाये बस एक दूसरे को निहारते रहे; फिर जाते समय श्री कृष्ण ने अपनी मुरली राधा को दे दी. राधा ने मुरली अपने हृदय से लगा ली.

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Sunday, September 17, 2023


विश्वकर्मा दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें

विश्वकर्मा जी



डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

विश्वकर्मा जी सृजन, निर्माण, वास्तुकला, औजार, शिल्पकला, मूर्ति कला एवम् वाहनों सहित समस्त सांसारिक वस्तुओं के अधिष्ठात्र देवता हैं।

 

हिन्दी धर्म में विश्वकर्मा को निर्माण एवम् सृजन का देवता माना जाता है। प्रत्येक वर्ष 17 सितम्बर को विश्वकर्मा दिवस मनाया जाता है। अधिकांशतः औद्योगिक इकाइयों में इस दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है। बंगाल में दुर्गा पूजा के अवसर पर भी विश्वकर्मा जी की मूर्ति स्थापित होती है। पंडाल में बीच में दुर्गा जी की मूर्ति होती है उनके दोनों तरफ सरस्वती जी, लक्ष्मी जी, गणेश जी और विश्वकर्मा जी की मूर्तियाँ होती हैं। कहीं-कहीं विश्वकर्मा दिवस पर भी विश्वकर्मा जी की मूर्ति स्थापित करके पूजा अर्चना की जाती है।

 

महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र वृहस्पति की बहन भुवना(जो ब्रह्म विद्या जानने वाली थी) का विवाह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास से हुआ और उन्होंने सम्पूर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता विश्वकर्मा को जन्म दिया। सतयुग में विश्वकर्मा जी ने इन्द्र की नगरी स्वर्ग पुरी को बनाया। त्रेता युग में विश्वकर्मा जी ने लंका में स्वर्ण महल बनाया। द्वापर युग में विश्वकर्मा जी ने द्वारकापुरी का निर्माण किया। कलियुग के प्रारम्भ के 50 वर्ष पूर्व हस्तिनापुर और इन्द्रप्रस्थ का निर्माण किया। विश्वकर्मा जी ने ही जगन्नाथपुरी में जगन्नाथ मन्दिर व मन्दिर में स्थित विशाल मूर्तियों(कृष्ण, सुभद्रा व बलराम) का निर्माण किया।

 

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आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को जन्म-दिन

की

बहुत-बहुत शुभकामनायें

ईश्वर से प्रार्थना है कि आप दीर्घायु हों

और

हमारे देश भारत व भारतवासियों

को

निरन्तर प्रगति-पथ पर अग्रसर करायें 


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Friday, September 15, 2023


सब कह दे

चेहरा है आईना

लाख छुपायें।


                 डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, September 14, 2023


 

14 सितम्बर, 2023 हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

आज के ही दिन 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी भाषा को भारत के संविधान

में

राष्ट्र भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।

 

अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।

पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।

 

                भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

 

 

Wednesday, September 13, 2023


छत्र सा सजे

शेषनाग का फन

विष्णु जी पर।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, September 12, 2023


नचिकेता की कथा-------डॉ. मंजूश्री गर्ग

नचिकेता प्रसिद्ध ऋषि वाजऋवस के पुत्र थे. एक बार वाजऋवस ने एक अनोखा अनुष्ठान किया, जिसमें अपनी सारी धन-संपत्ति दीन-दुखियों व ब्राह्मण-पुरोहितों को दान कर दी. जब वे अपनी सारी संपत्ति बाँटने में व्यस्त थे, तो बालक नचिकेता ने मन में सोचा कि अवश्य पिताजी ने मुझे भी दान कर दिया है. तब उसके मन में जिज्ञासा जाग्रत हुई कि पिताजी ने दान में मुझे किसे दिया है. उसने अपने पिता से पूछा, “पिताजी, आपने मुझे किसको दान कर दिया है.”

वाजऋवस ने कोई उत्तर नहीं दिया. नचिकेता के बार-बार पूछने पर वाजऋवस ने झुँझला कर कहा, “यमराज को.” यह सुनकर नचिकेता सहित आसपास खड़े जन स्तब्ध रह गये. कहने के बाद वाजऋवस को धक्का सा लगा. नचिकेता सोचने लगा कि, “मैंने ऐसा क्या किया कि पिता को मेरी मृत्यु की कामना करनी पड़ी. अवश्य ही यही मेरा प्रारब्ध है कि यमराज से मेरी भेंट हो.

सभी के मना करने पर भी नचिकेता यमराज से मिलने यमलोक चला गया, किंतु उस समय वहाँ यमराज नहीं थे. तीन दिन, तीन रातें बिना कुछ खाये-पिये वह यमराज की प्रतीक्षा करता रहा. जब यमराज लौटे तो बालक के अपूर्व साहस और दृढ़ निश्चय को देखकर बहुत प्रसन्न हुये. यमराज ने नचिकेता से तीन वर माँगने को कहा.

नचिकेता ने पहला वर माँगा, “मेरे यहाँ आने से मेरे पिता बहुत चिंतित और दुःखी होंगे. उनकी चिंता दूर हो और उनके मन को शांति मिले.”

यमराज ने कहा, “तथास्तु.”

नचिकेता ने दूसरा वर माँगा, “स्वर्ग की प्राप्ति कैसे होती है. स्वर्ग जहाँ न बुढ़ापे का भय है, न मृत्यु का.”

यमराज ने प्रसन्नता पूर्वक स्वर्ग प्राप्ति के साधन बता दिये.

नचिकेता ने तीसरा वर माँगा, “यमराज! मुझे मृत्यु का भेद बताइये. बताइये मृत्यु के बाद क्या होता है और मनुष्य अमर कैसे हो सकता है.”

यमराज दुविधा में पड़ गये, क्योंकि ये बड़े गुप्त रहस्य की बात थी;जिनके बारे में ब्रह्म और यमराज ही जानते थे.

यमराज ने नचिकेता से कुछ और माँगने को कहा---धन, सत्ता अथवा राज्य. किंतु नचिकेता पर किसा भी प्रलोभन का असर नहीं हुआ. यमराज हैरान थे कि इतने छोटे से बालक को ऐसी गूढ़ बातें जानने की कितनी जिज्ञासा है. अंत में यमराज को नचिकेता के प्रश्नों के उत्तर देने ही पड़े. उन्होंने मनुष्य के सच्चे रूप , यानि आत्मा को समझने की कठिनाईयाँ बतायीं.

यमराज ने नचिकेता से कहा, “यदि तुम आत्मा को भली प्रकार समझने में सफल हो जाओ तो तुम देखोगे कि मृत्यु एक छल मात्र है; क्योंकि मनुष्य का सच्चा रूप तो आत्मा है, जो कभी नहीं मरती. मरता तो केवल शरीर है.

 

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भीड़ में रहकर भी हम अकेले ही रहे।

क्योंकि तन्हाई में तुम साथ-साथ रहे।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, September 11, 2023


जरूर तेरी आवा-जाही रही  होगी,

यूँ ही नहीं महकती हैं दिल की क्यारियाँ।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, September 10, 2023

 

मैं जुगनू हूँ अपनी ही, रोशनी से जगमगाता हूँ।

उधारी रोशनी नहीं ली, सूरज से तारों की तरह।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग


Saturday, September 9, 2023

 

इंसानियत की धरा में,

प्यार के बीज बो दो।

आज नहीं तो कल,

मानवता के फूल खिलेंगे।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, September 8, 2023


9 सितम्बर, 2023 राजा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी की जयंती

  



खड़ी बोली हिन्दी को हिन्दी गद्य साहित्य

के रूप प्रतिष्ठित करने वाले

प्रसिद्ध साहित्यकार

श्री भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

को

शत्-शत् नमन



कर्मयोगी श्रीकृष्ण

 

कभी नंद की गायें चरायें,

कभी बजायें बाँसुरी वन में।

कभी सुदामा के पग धोयें,

कभी बने सारथि पार्थ के।

कर्मयोगी बनकर ही श्रीकृष्ण

देते संदेश कर्म करने का। 

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                        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Thursday, September 7, 2023


अपनों के साथ।

 

 काँटों भरी डाल खुश है,

      फूलों के साथ।

अँधेरी रात खुश है,

      तारों के साथ।

सूनी पहाड़ी खुश है,

      निर्झर के साथ।

भीगी जिंदगी खुश है,

      अपनों के साथ।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

Wednesday, September 6, 2023


7 सितम्बर, 2023 कृष्ण-जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें


कान्हा झूलें गोकुल में,

झूलावें मिल गोपियाँ।

मुस्कावें यशोदा औ' रोहिणी मैय्या,

कान्हा संग झूलें दाऊ भैय्या।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 


    उलझनें जिंदगी में किसकी कम हैं।

बस समझने औ सुलझाने के तरीके अलग-अलग हैं।

 

                                            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, September 5, 2023


उलझे ही रहे हम।

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

उलझे रहे, उलझे रहे,

उलझे ही रहे हम।

कभी बालों में, कभी बातों में,

कभी यादों में, कभी ख्बाबों में।

उलझे ही रहे हम।

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शिक्षक दिवस



5 सितंबर, 2023 सर्वपल्ली राधाकृष्णनन् की जयंती पर

सर्वपल्ली राधाकृष्णनन् जी को शत्-शत् नमन

सभी शिक्षकों को हार्दिक शुभकामनायें 

Monday, September 4, 2023


चाल बकुल की चलत है बहुरि कहावै हंस।

ते मुक्ता कैसे चुगे, पड़े काल के फंस।।


            कबीर दास 

Sunday, September 3, 2023


एक पल

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

एक पल की उड़ान क्या होती है?

पिंजरे में कैद पक्षी से पूछो!

 

जल की शीतलता क्या होती है?

जल विहिन मछली से पूछो!

 

मिलन का एक पल क्या होता है?

विरह में डूबे प्रेमी से पूछो!

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Saturday, September 2, 2023


उन्मुक्त गगन के पंछी हो तुम, क्यों पिंजरे में तुम्हें कैद करें।

प्यार हमारा सच्चा है तो, बिन डोर खिंचे चले आओगे।

 

                                            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, September 1, 2023


मेरा उसका जीवन इतना

वो इक युग है मैं इक पल हूँ।


                 अंसार कम्बरी 

 

कभी देखीं हैं! ढ़लती शाम की रंगीनियाँ।

नहीं! तो कभी देखना बरसात में शाम को आकाश तले।

 

                        डॉ. मंजूश्री गर्ग