Sunday, March 31, 2019




मंजिल गर पा ली है,
रूके ना बढ़ते कदम।
मंजिलों से आगे हैं,
मंजिलें और भी।

                          डॉ. मंजूश्री गर्ग


Saturday, March 30, 2019



कर्मयोगी श्रीकृष्ण

कभी नंद की गायें चरायें,
कभी बजायें बाँसुरी वन में।
कभी सुदामा के पग धोयें,
कभी बने सारथि पार्थ के।
कर्मयोगी बनकर ही श्रीकृष्ण
देते संदेश कर्म करने का।

                       डॉ. मंजूश्री गर्ग


Friday, March 29, 2019



अपनी पहुँच विचारि कै, करतब करिए दौर।
तेते पाँव पसारिए, जेति लाँबि सौर।।


                                                                      वृंद

Thursday, March 28, 2019



तुम्हारे शहर का मौसम बहुत सुहाना है
खत में एक शाम भेज दो, यहाँ बहुत वीराना है।

                                 डॉ. मंजूश्री गर्ग




Wednesday, March 27, 2019



परम्परायें जब बन जाती हैं रूढ़ियाँ
जकड़ लेती हैं मनुज को बेड़ियों सम।

                                     डॉ. मंजूश्री गर्ग


Monday, March 25, 2019



3.व्याकरणिक विवेचन के आधार पर-
व्याकरणिक विवेचन के आधार पर शब्दों के दो भेद होते हैं-
क.  विकारी शब्द
ख. अविकारी शब्द
क.विकारी शब्द-
विकारीशब्द विकारशब्द से बना है, जिसका अर्थ है ;परिवर्तन’, ‘बदलाब’. ‘विकारशब्द में प्रत्यय लगकर विकारीशब्द बना है जिसका अर्थ है परिवर्तनशील’. इसीलिये विकारी शब्दऐसे शब्दों को कहते हैं जो व्याकरणिक आवश्यकता के अनुसार वाक्य में लिंग, वचन और कारकों के आधार पर अपना रुप परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया शब्द विकारी शब्द होते हैं; जैसे-
संज्ञा      लड़का -    लड़के, लड़कों.
सर्वनाम    मैं  -      मुझे, मेरा.
विशेषण    अच्छा -   अच्छे, अच्छों.
क्रिया      जाना -   जायेगा, जा रहा है.
ख.अविकारी शब्द-
अविकारीशब्द विकारी शब्द में उपसर्ग लगकर बना है, जो विकारीशब्द का विलोम शब्द है अर्थात अविकारी से अभिप्राय ऐसे शब्दों से है, जिनका किसी भी
परिस्थिति में रुप परिवर्तित नहीं होता. अविकारी शब्दों को अव्यय शब्द भी कहते हैं.
अव्यय शब्द-
अव्यय का शाब्दिक अर्थ है जिसका क्षय या नाश न हो, अविकारी. संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया के शब्द –वचन, लिंग, पुरुष, काल, कारक, आदि के अनुसार भिन्न-भिन्न रुप में मिलते हैं, किंतु कुछ शब्द अविकारी होते हैं अर्थात उनमें प्रति, यद्यपि, तथापि, आदि. ऐसे शब्द अव्यय कहलाते हैं.
अव्यय के पाँच प्रमुख भेद हैं-
क.  क्रिया विशेषण
ख. सम्बंध बोधक
ग.   समुच्चय बोधक
घ.    विस्मयादिबोधक
ङ.    निपात

क.क्रिया विशेषण-
क्रिया विशेषण क्रिया की विशेषता बताते हैं,
इनके चार भेद हैं-
अ.  रीतिवाचक क्रिया विशेषण:- धीरे-धीरे, ठीक-ठीक, ध्यानपूर्वक, आदि.
आ.           कालवाचक क्रिया विशेषण:- आज, अब, सुबह, प्रतिदिन, सदैव,आदि.
इ. परिमाण वाचक क्रिया विशेषण;- बहुत, जरा, थोड़ा, बिल्कुल, आदि.
ई. स्थान वाचक क्रिया विशेषण;- आगे, पीछे, यहाँ, इधर, ऊपर, आदि.

ख.सम्बंध बोधक अव्यय-
सम्बंध बोधक अव्यय पहले आये संज्ञा या सर्वनाम के सम्बंध को स्पष्ट करते हैं. जैसे-
मोहन के संग राधा भी थी.
प्रमुख सम्बंध बोधक अव्यय हैं- के बाहर, के आगे, के पहले, की वजह  से, के लिये, के वास्ते, के संग, के बिना, के अतिरिक्त, की अपेक्षा, की तुलना में, के बदले, के विपरीत, के विरुद्ध, के विषय में, आदि.
ग.समुच्चय बोधक अव्यय-
समुच्चय बोधक अव्यय दो शब्दों, दो पदबंधों या दो वाक्यों को आपस में संयोजित करते हैं. इनके प्रमुख प्रकार हैं-
अ.  और, तथा, एवम, न-------न.
आ.                       या, अथवा, या-----या, नहीं तो, अन्यथा, न कि----
इ.    पर, परंतु, किंतु, लेकिन, मगर, बल्कि-------
ई.    अतः, फलतः, इसलिये-------
उ.    यदि-----तो, यद्यपि--------तथापि.
ऊ.  क्योंकि, इसलिये-------कि, ताकि.
ऋ. कि, अर्थात, यानि------यानि.
घ .विस्मयादिबोधक अव्यय-
विस्मयादिबोधक अव्यय वे शब्द हैं जो विस्मय, हर्ष, शोक, व्यथा, घृणा आदि मनोभावों को उद्गार के रुप में प्रकट करते हैं. जैसे-
अरे, वाह, हाय, ओफ, शाबाश, हटो, हे, आदि.
ड़.निपात-
निपात ऐसे अव्यय हैं जो वाक्य में किसी शब्द या पद के बाद लगकर उसके अर्थ में विशेष प्रकार का बल(अवधारणा) देते हैं.
प्रमुख निपात निम्नलिखित हैं-
अ.  ही: मोहन ही जा रहा है.
आ.                       केवल: केवल मोहन जा रहा है. (केवल शब्द पहले आता है, बाद में नहीं.)
इ.    मात्र: शिक्षा मात्र मनुष्य को ऊँचा उठाती है.
ई.    भर: मैं उसे जानता भर हूँ.
उ.    भी: मोहन भी जा रहा है.
ऊ.  तक: तुम आये तक नहीं.
ऋ. तो: मोहन पढ़ता तो है, पर अच्छे अंक नहीं मिलते.


  4.स्रोत/इतिहास के आधार पर-
हिंदी भाषा का विकास संस्कृत भाषा से हुआ है. इसीलिये अधिकांश शब्द हिंदी भाषा और संस्कृत भाषा में समान हैं, किंतु कुछ शब्दों का रुप परिवर्तित भी हो गया है. समय-समय पर विदेशी भाषाओं(अरबी, फारसी, अंग्रेजी,आदि) का प्रभाव भी हिंदी भाषा पर पड़ा. कुछ शब्द ज्यों के त्यों हिंदी भाषा में अपना लिये गये और कुछ का रुप परिवर्तित हो गया. हिंदी भाषा पर देसी बोलियों का प्रभाव भी बहुतायत से पड़ा है. इस आधार पर शब्दों के निम्नलिखित भेद होते हैं-
क.  तत्सम शब्द
ख. तद्भव शब्द
ग.   देशी शब्द
घ.   विदेशी शब्द
ङ.    संकर शब्द
क.तत्सम शब्द-
जो शब्द संस्कृत भाषा से ज्यों के त्यों हिंदी भाषा में आये हैं और उनमें संस्कृत भाषा के प्रत्यय, उपसर्ग लगाकर नये शब्द बनाये गये हैं वे तत्सम शब्द कहलाते हैं.
उदाहरण-
पुष्प, पुस्तक, दूरदर्शन, नीर, ताम्बूल, आदि. 

संस्कृत भाषा के जो शब्द प्राकृत, अपभ्रंश, पुरानी हिंदी से गुजरने के कारण आज परिवर्तित रुप में हिंदी भाषा में मिल रहे हैं, उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं.
उदाहरण-
तत्सम से तद्भव रुप-
सप्त‌‌:-  सात
मुख:-  मुँह
मयूर:-  मोर
कुम्भकार:- कुम्हार
अंधकार:-   अंधेरा
ग.   देशी शब्द-
जो शब्द संस्कृत व्याकरण के आधार पर सिद्ध न किये जा सकें, वे देशी शब्द कहलाते हैं.
उदाहरण-
ओढ़ना, घाघरा, छोरा, तरकारी, गगरी, आदि.

 घ.विदेशी शब्द-

समय-समय पर विदेशी भाषाओं के शब्द भी हिंदी भाषा में सम्मिलित हुये हैं, इनमें प्रमुख हैं- अंग्रेजी, अरबी, फरसी, तुर्की, आदि.
उदाहरण-
अंग्रेजी शब्द- अपील, अफसर, रेल, नम्बर, रजिस्टर, नर्स, टाइप, टेलीफोन, कोर्ट, डॉक्टर, आदि.
अरबी शब्द- अखबार, अमीर, तरक्की, मुहावरा, मतलब, कसूर, इमारत, इलाज, किताब, ईमानदार, आदि.
फारसी शब्द- अदा, अफसोस, आईना, आमदनी, किशमिश, पैदावार, बीमार, गुलाब, चादर, आवाज, आदि.
तुर्की शब्द- तोप, कैंची, उर्दु, कुली, चाकू, चमचा, बहादुर, मुगल, अरमान आदि,
पुर्तगाली शब्द- अचार, कमीज, काजू, गमला, गोदाम, तम्बाकू, चाबी, नीलाम, आदि.
ङ संकर शब्द-
दो भिन्न भाषाओं से मिलकर बने शब्द संकर शब्द कहलाते हैं.
शब्द                              भाषायें
रेल यात्रा                           (अंग्रेजी+संस्कृत)
जेब खर्च                           (पुर्तगाली+फारसी)
जिलाधीश                      (अरबी+संस्कृत)
रेलगाड़ी                       (अंग्रेजी+हिंदी)
शादी ब्याह                     (फारसी+हिंदी)


5.प्रयोग के आधार पर-
कुछ शब्द हिंदी भाषा बोलने वाले प्रायः सभी व्यक्ति प्रयोग करते हैं, किंतु कुछ शब्दों का प्रयोग विषय-विशेष से सम्बंध रखने वाले व्यक्ति ही करते हैं.
प्रयोग के आधार पर शब्दों के प्रमुख तीन भेद होते हैं-
क.सामान्य शब्दावली के शब्द

ख.तकनीकी शब्दावली के शब्द
ग.अर्धतकनीकी शब्दावली के शब्द
क.सामान्य शब्दावली के शब्द-
सामान्य शब्दावली वह शब्दावली है जिसका प्रयोग हिंदी भाषा बोलने वाले प्रायः सभी व्यक्ति करते हैं. शरीर के अंगों के नाम, शारीरिक क्रियायें, खान-पान, रहन-सहन की वस्तुयें और क्रियायें, अति परिचित जीव और वनस्पति, पारिवारिक सम्बंध और अन्यान्य क्रियायें, सामान्य सामाजिक-राजनीतिक-धार्मिक जीवन के शब्द, बाजार-आवागमन-संचार के बहुप्रचलित साधन, व्यक्ति और प्रक्रियायें, आदि इसी कोटि में आते हैं; क्योंकि इनका प्रयोग छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े, साधारण-शिष्ट, अमीर-गरीब, शिक्षित-अशिक्षित सभी करते हैं.

उदाहरण-

माँ-बाप
हाथ-पैर
सूरज-चंद्रमा
फल-फूल
पक्षी-पशु

ख.तकनीकी शब्दावली के शब्द-
ज्ञान-विज्ञान के विविध क्षेत्रों के पारिभाषिक शब्द तकनीकी शब्द कहलते हैं. जिनका प्रयोग क्षेत्र विशेष से सम्बंधित व्यक्ति ही करते हैं. प्रशासन, बैंक, न्याय, चिकित्सा, प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में ऐसे शब्द बहुतायत में मिलते हैं; जैसे- आयोग, कनिष्ठ, पदोन्नति, सीमा शुल्क, जीवाणु प्रतिरोधक, आदि. वर्ग, त्रिज्या, रेखा, समकोण, आदि शब्द गणित विषय से सम्बंधित हैं. ऐसे ही संधि, समास, उपमा, रुपक, दोहा, रस, आदि शब्द साहित्य व्याकरण से सम्बंधित हैं.
ग.अर्धतकनीकी शब्दावली के शब्द-
अर्ध तकनीकी शब्दावली के अंतर्गत ऐसे शब्द आते हैं जिनका प्रयोग सामान्य व्यक्ति भी करता है और विषय से सम्बंधित विशेषज्ञ भी, किंतु अंतर यह होता है कि सामान्य व्यक्ति उन शब्दों का सामान्य अर्थ ही ग्रहण करता है जबकि विशेषज्ञ उसी शब्द का पारिभाषिक व सटीक अर्थ ग्रहण करता है. जैसे- किसी रचना को पढ़कर सामान्य व्यक्ति भी रस(आनंद) लेता है और साहित्यकार व साहित्यशास्त्री भी, किंतु दोनों में अंतर होता है. अर्धसैनिक बल(बी0एस0एफ0) बल(फोर्स) आम आदमी के बल से भिन्न है, यद्यपि दोनों में एक सीमा तक समानता है.

----------------------------
-----------

Sunday, March 24, 2019



च.ध्वनि अनुकरण द्वारा निर्मित शब्द-

प्रकृति के कण-कण में लय है, ध्वनि है. पत्ते भी हिलते हैं तो सरगम सी बजती है, नदी का जल कल-कल की ध्वनि करता है, झरनों का जल झर-झर कर बहता है. हर पशु-पक्षी की अपनी बोली है. इन्हीं ध्वनियों के अनुकरण से कुछ शब्द निर्मित होते हैं, जो ध्वनि अनुकरण से निर्मित शब्द कहलाते हैं.
उदाहरण-

वस्तु          ध्वनि
घड़ी            टिक-टिक
घंटी            टन टन
धनुष           टंकार
डमरु           डम डम
चूड़ियाँ          खन खन
पैसे            खन खन
झाँझर          झन झन


जीव बोली                ध्वनि
घोड़ा                     हिनहिनाना
गाय                     रँभाना
कोयल                   कुहू-कुहू
मुर्गा                     कुकड़ूँ-कूँ
चिड़िया                   चहचहाना
बच्चा                    किलकारना



2.अर्थ के आधार पर-
विविध प्रकार से निर्मित शब्दों के विविध अर्थ होते हैं. कभी एक शब्द का एक ही अर्थ होता है तो कभी एक ही शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, जिनका प्रयोग प्रसंग के अनुकूल अलग-अलग किया जाता है. कभी एक अर्थ के लिये अनेक शब्द होते हैं तो कभी लगभग एक से दिखने वाले दो शब्द सूक्ष्म अंतर के द्वारा विपरीत अर्थ रखते हैं. शब्दों के इन्हीं अर्थ रुपों को आधार बनाकर शब्दों के निम्नलिखित भेद किये गये हैं-

क.  एकार्थक शब्द
ख. अनेकार्थक शब्द
ग.   पर्यायवाची शब्द
घ.   विलोम शब्द
ङ.    समरुपी भिन्नार्थक शब्द
च.   अर्थ साम्य, किंतु मूल में सूक्ष्म अंतर वाले शब्द
छ.  शब्द-समूह वाचक शब्द
क.एकार्थक शब्द-
जिन शब्दों का अर्थ सभी परिस्थितियों में एक ही रहता है उन्हें एकार्थक शब्द कहते हैं.
उदाहरण-

शब्द                  अर्थ
अनुराग                प्रेम
छात्र                   विद्यार्थी
कृति                  रचना
तरुणी                 युवती
सम्राट                 राजा
ख.अनेकार्थक शब्द-
जब एक शब्द के भिन्न परिस्थितियों में भिन्न अर्थ निकलते हैं तो ऐसे शब्दों को अनेकार्थी शब्द कहते हैं. जैसे- नवशब्द के दो अर्थ हैं, ‘नौऔर नया’. जब नवशब्द ग्रहऔर रत्नशब्दों से पहले आता है तो नौकी संख्या का अर्थ देता है अर्थात नवग्रह’, ‘नवरत्नऔर जब नवशब्द वर्षऔर परिधानशब्द से पहले आता है, तो नयाशब्द का अर्थ देता है अर्थात नववर्ष’, नव परिधान’. ऐसे ही कलशब्द बीते हुये कल के लिये भी प्रयोग होता है और आने वाले कल के लिये भी, साथ ही मशीनके लिये भी प्रयुक्त होता है.

उदाहरण-
शब्द                  अनेक अर्थ
अम्बर                 वस्त्र, आकाश, कपास
अपेक्षा                 आवश्यकता,तुलना में, आशा के अर्थ में
अब्ज                  शंख, कमल, कपूर, चंद्रमा
अब्धि                 समुद्र, सरोवर
कनक                 सोना, धतूरा, गेहूँ
आम                  एक फल, सामान्य, मामूली
कुल                   सब, वंश

ग.पर्यायवाची शब्द-
एक ही अर्थ को प्रकट करने वाले एक से अधिक शब्द पर्यायवाची शब्द कहलाते हैं. अर्थ में समानता होते हुये भी पर्यायवाची शब्द हमेशा एक दूसरे का स्थान नहीं ले सकते; जैसे नदी के जलको जलही कहा जायेगा, उसका पर्यायवाची शब्द पानीनहीं; ऐसे ही सुबह के सूरज को ही अरुणकहा जायेगा, दोपहर या शाम के सूरज को नहीं. जबकि अरुणसूरज का पर्यायवाची शब्द है. पर्यायवाची शब्दों में से किसी एक का प्रसंगवश चयन करना अनिवार्य होता है.

उदाहरण-
शब्द                  पर्यायवाची शब्द
अमृत                 पीयूष, सुधा, अमिय, मधु, सोमरस
अरण्य                वन, कानन, विपिन, जंगल
अग्नि                 अनल, पावक, आग
आकाश           नभ, गगन, व्योम, अम्बर
पक्षी              विहंग, खग, पखेरु, परिंदा
किरण            रश्मि, कर, अंशु, मारिचि
गंगा              भागीरथी, जाह्नवी, सुर सरिता, त्रिपथगा
लक्ष्मी            कमला, रमा, पद्मा, श्री, हरिप्रिया
 घ.विलोम शब्द-
विलोम का शाब्दिक अर्थ है उल्टा या विपरीत, जो शब्द परस्पर प्रतिकूल या विपरीत अर्थ रखते हैं वे विलोम शब्द कहलाते हैं. कुछ शब्द उपसर्ग परिवर्तन से ही विपरीत अर्थ का बोध कराते हैं तो कुछ प्रत्यय परिवर्तन से. कुछ विलोम शब्दों के रुपों में सूक्ष्म अंतर होता है तो कुछरुपाकार में बिल्कुल ही भिन्न होते हैं.

 इसी आधार पर विलोम शब्दों के निम्नलिखित भेद हैं-

1.उपसर्ग परिवर्तन द्वारा निर्मित विलोम शब्द
2.उपसर्ग-प्रयोग द्वारा निर्मित विलोम शब्द
3.प्रत्यय-प्रयोग द्वारा निर्मित विलोम शब्द
4. भिन्न रुपाकार के विलोम शब्द
5.युग्मीय विलोम शब्द

1.उपसर्ग परिवर्तन द्वारा निर्मित शब्द-
शब्द              विलोम शब्द
अनुकूल           प्रतिकूल
सरस             नीरस
संयोग            वियोग
आदान            प्रदान
सुमति            कुमति


2.उपसर्ग-प्रयोग द्वारा निर्मित शब्द-
आशा                    निराशा
देश                      विदेश
गमन                    आगमन
आधार               निराधार
योग                वियोग
3.प्रत्यय-प्रयोग द्वारा निर्मित विलोम शब्द-
किशोर              किशोरी
नाना                नानी
चाचा                चाची
नर                 नारी
4,भिन्न रुपाकार के विलोम शब्द-
आय                व्यय
अंधकार              प्रकाश
उदय                अस्त
नूतन               पुरातन
57.
5.युग्मीय विलोम शब्द-
सुख-दुख
पाप-पुण्य
अपना-पराया
अब-तब
दिन-रात

 ड़. समरुपी भिन्नार्थक शब्द-
कुछ शब्द उच्चारण की दृष्टि से समान प्रतीत होते हैं, किंतु उनका अर्थ एक दूसरे से पूर्णतः भिन्न होता है; जैसे- अचलशब्द का अर्थ है पर्वत और अचलाका अर्थ है पृथ्वी’. ‘अचलऔर अचलाशब्द उच्चारण की दृष्टि से एक से लगते हैं किंतु दोनों के अर्थ ना तो एक समान हैं ना ही एक दूसरे के विपरीत हैं; वरन सर्वथा भिन्न हैं. ऐसे ही अनल’, ‘अनिलशब्द लगभग एक से लगते हैं लेकिन दोनों के अर्थ भिन्न हैं. अनलका अर्थ है अग्निऔर अनिलका वायु’.
उदाहरण-
तरणी(नौका)          तरुणी(युवती)
आदि(आरम्भ)         आदी(अभ्यस्त)
विषमय(जहरीला)       विस्मय(अचम्भा)
याम(प्रहर)            यामा(रात्रि)
सुत(पुत्र)             सूत(सारथि, कता हुआ धागा)

 च.अर्थ साम्य, किंतु मूल में सूक्ष्म अंतर वाले शब्द-
कुछ शब्द ऐसे होते हैं जो देखने और सुनने में समान अर्थ प्रकट करते हैं, पर उनमें परस्पर पर्याप्त अंतर होता है; जैसे अस्त्र’, ‘शस्त्रदोनों शब्दों का अर्थ हथियार है, किंतु दोनों में सूक्ष्म अंतर है. जहाँ अस्त्रफेंक कर चलाये जाने वाले हथियार को कहते हैं जैसे- 'तीर' वहीं शस्त्र हाथ में लेकर चलाये जाने वाले हथियार को कहते हैं जैसे- तलवार. कभी-कभी दो से अधिक शब्द लगभग एक सा अर्थ प्रकट करते हैं, किंतु उनमें सूक्ष्म अंतर होता है.
उदाहरण-
आलोचना            किसी वस्तु या विषय को समग्र रुप से देखकर ,
                   दोष देखना.
समालोचना           किसी वस्तु या विषय के गुण-दोष दोनों देखना.
समीक्षा              किसी वस्तु या विषय को सम्यक रुप से देखना
प्रसन्नता                 कार्य की सफलता पर मन का खिलना
हर्ष                 मन के खिलने के साथ-साथ रोमांचित भी होना
उल्लास              प्रसन्नता की तीव्रता में उठना
आनंद               अंतःकरण की सुखद अनुभूति

छ.शब्द-समूह वाचक शब्द-
जब एक ही शब्द से किसी शब्द-समूह का अर्थ निकले या उसका विस्तृत अर्थ प्रकट हो तो वह समूह वाचक शब्द कहलात है; जैसे- अजेयशब्द से अभिप्राय है जो जीता ना सके’. यहाँ पाँच शब्दों की जगह एक शब्द का प्रयोग हुआ है. संपादन और संक्षेपीकरण में इन शब्दों से बहुत सहायता मिलती है. इन से रचना में सुंदरता भी आती है.
उदाहरण-
शब्द-समूह                               वाचक शब्द
सब के अंतःकरण की बात जानने वाला        अंतर्यामी
जिस पद के लिये वेतन न लिया जाये        अवैतनिक
वृक्ष व लताओं से घिरा स्थान                कुंज
दूसरों की भलाई करने वाला                 परोपकारी
आकाश में उड़ने वाले पक्षी                  खग 

                  क्रमशः