Saturday, March 23, 2019




संधि द्वारा निर्मित शब्द-
कभी-कभी दो शब्द या पद मिलकर नया शब्द बनाते हैं. यह कार्य समासऔर संधिद्वारा होता है. समास में जहाँ दोनों पदों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता, केवल कथन में संक्षिप्तता आ जाती है, वहीं दो पदों की संधि के समय प्रथम पद के अंतिम वर्ण या स्वर और द्वितीय पद के प्रथम वर्ण में प्रायः परिवर्तन होकर एक नया शब्द बनता है; जैसे- विद्यापद और आलयपद की संधि से विद्यालयशब्द बनता है. इसमें दोनों पदों की संधि के समय आलयपद का स्वर का लोप हो गया है.
हिंदी में संधि द्वारा शब्द अधिकांशतः संस्कृत भाषा के नियमों के अनुसार ही बनते हैं, किंतु कुछ हिन्दी भाषा के संधि नियम अपने भी विकसित हुये हैं. इस तरह हिंदी भाषा के संधि नियमों को हम प्रमुख दो भागों में विभाजित कर सकते हैं-

अ.  संस्कृत भाषा के संधि नियमों द्वारा शब्द रचना
आ.        हिंदी भाषा के संधि नियमों द्वारा शब्द रचना
अ.  संस्कृत भाषा के संधि नियमों द्वारा शब्द रचना
संधि के भेद
स्वर संधि            वर्ण/व्यंजन संधि            विसर्ग संधि

विद्या+आलय=        सत+आचार=                   निः+अर्थक=
विद्यालय            सदाचार                  निरर्थक

                  
                   स्वर संधि-
दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार(परिवर्तन) को स्वर संधि कहते हैं. इस संधि के पाँच भेद हैं-
1.दीर्घ संधि
2.गुण संधि
3.वृद्धि संधि
4.यण संधि
5. अयादि संधि

1.दीर्घ संधि-
जब पहल्रे शब्द के अन्त में अ, , , , , ऊ स्वर आये और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में उसी स्वर के समान लघु या दीर्घ स्वर आये तो संधि द्वारा बने शब्द में एक शब्द का लोप हो जाता है और एक स्वर दीर्घ स्वर में परिवर्तित हो जाताहै. उदाहरण-
दीप+अवली = दीपावली      (अ+अ = आ)
रवि+इंद्र = रवींद्र           (इ+इ =ई)
महा+आत्मा = महात्मा      (आ+आ = आ)
सु+उक्ति = सूक्ति                   (उ+उ = ऊ)

2.गुण संधि-
जब प्रथम शब्द के अंत में अ या आ आये और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में इ, ई / उ, ऊ / ऋ स्वर आये, तो दोनों मिलकर क्रमशः ए / ओ / अर हो जाते हैं.
उदाहरण-
देव+इंद्र = देवेंद्र            (अ+इ = ए)
पर+उपकार = परोपकार      (अ+उ = ओ)
महा+उत्सव = महोत्सव      (आ+उ = ओ)
राज+ऋषि = राजर्षि         (अ+ऋ = अर)

3.वृद्धि संधि-
जब प्रथम शब्द के अंत में अ या आ स्वर आये और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में ए, ऐ / ओ, औ स्वर आयें, तो दोनों मिलकर ऐ / औ हो जाते हैं.
उदाहरण-
सदा+एव = सदैव           (आ+ए = ऐ)
वन+औषधि = वनौषधि      (अ+औ =औ)

4.यण संधि-
जब प्रथम शब्द के अंत में इ, ई / उ, ऊ / ऋ स्वर आये और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में कोई अन्य स्वर आये तो इ, ई / उ, ऊ / ऋ का क्रमशः य / व / र हो जाता है, तब यण संधि होती है.
उदाहरण-
यदि+अपि = यद्यपि        (इ+अ = य)
सु+आगत = स्वागत        (उ+आ = व)
पितृ+आज्ञा = पित्राज्ञा       (ऋ+आ = र)

5.अयादि संधि-
जब प्रथम शब्द के अंत में ए, , , औ स्वर हों और दूसरे शब्द के प्रारंभ में अन्य स्वर आते हों तो ए, , , औ का क्रमशः अय, आय, अव, आव हो जाता है, तब अयादि संधि होती है.
उदाहरण-
ने+अयन = नयन               (ए+अ = अय)
गै+अक = गायक                (ऐ+अ =आय)
पो+अन = पवन                 (ओ+अ = अव)
पौ+अक = पावक                (औ+अ = आव)

वर्ण/व्यंजन संधि
जब प्रथम शब्द के अंत में कोई व्यंजन हो और दूसरे शब्द के प्रारंभ में कोई स्वर या व्यंजन हो , तब उन दोनों शब्दों की संधि से निर्मित शब्द में जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं. स्वर संधि में जहाँ स्वर में परिवर्तन होता है, वहीं व्यंजन संधि में व्यंजन में परिवर्तन होता है. जैसे- शरतऔर चंद्रशब्द की संधि से शरच्चंद्रशब्द बनता है, इसमें पहले शब्द के अंतिम वर्ण का हो जाता है.
वर्ण सम्बंधी परिवर्तन के कुछ विशेष नियम हैं-

1.क वर्ग , च वर्ग , आदि के पहले वर्ण का तीसरे वर्ण में परिवर्तन-
जब प्रथम शब्द के अंत में किसी वर्ग(क, , , , प) का प्रथम वर्ण आये और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में कोई स्वर या वर्ण आये तो क,, , , प वर्ण का क्रमशः उसी वर्ग के तीसरे वर्ण(ग, , , , ब) में परिवर्तन हो जाता है.
उदाहरण-
वाक+दान = वाग्दान
सत+गति = सद्गति
षट+आनन = षडानन
जगत+ईश = जगदीश

2.क वर्ग, च वर्ग, आदि के पहले वर्ण का अनुनासिक वर्ण में परिवर्तन-
जब प्रथम शब्द के अंत में क,, , , , वर्ण हो और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में कोई अनुनासिक वर्ण हो, तो क, , , , प वर्ण का क्रमशः उसी वर्ग के पाँचवे वर्ण में परिवर्तन हो जाता है.
उदाहरण-
वाक+मय = वाङ्मय
जगत+नाथ = जगन्नाथ

3.त या द वर्ण का अन्य वर्ग के वर्ण में परिवर्तन-
जब पहले शब्द के अंत में त या द वर्ण आता है और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में च या छ वर्ण आता है तो संधि के समय त या द वर्ण का च हो जाता है. ऐसे ही त या द वर्ण के सामने ज या झ आने पर त या द का ज हो जाता है; ट या ठ आने पर त या द का ट हो जाता है; ड या ढ़ आने पर त या द का ङ हो जाता है और ल आने पर त या द का ल हो जाता है.
उदाहरण-
सत+जन = सज्जन
तत+लीन = तल्लीन

4.दोनों वर्णों में परिवर्तन-
जब प्रथम शब्द के अंत में त या द वर्ण आता है और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में
श वर्ण आता है तो त या द वर्ण च वर्ण में परिवर्तित हो जाता है और श वर्ण छ वर्ण में परिवर्तित हो जाता है.
उदाहरण-
उत्‌+श्वास = उच्छ्वास
उत्‌+श्रृंखल = उच्छृंखल
ऐसे ही यदि प्रथम शब्द के अंत में त या द वर्ण हो और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में ह वर्ण हो, तो त या द वर्ण द में परिवर्तित होता है और ह वर्ण ध में परिवर्तित हो जाता है.
उदाहरण-
उत+हार = उद्धार
पद+हति = पद्धति

5.म वर्ण में परिवर्तन-
जब प्रथम शब्द के अंत में म वर्ण हो और दूसरे शब्द के प्रारंभ में क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग में से कोई वर्ण हो तो म वर्ण का क्रमशः उसी वर्ग का पांचवाँ वर्ण हो जाता है; और कोई वर्ण होने पर म का अनुस्वार हो जाता है.
 उदाहरण-
सम+कल्प = सङकल्प
सम+तोष = सन्तोष
सम+बंध = सम्बंध
सम+चार = सञ्चार
सम+हार = संहार
सम+शय = संशय

6.न वर्ण में परिवर्तन-
जब प्रथम शब्द के अंत में ऋ, , ष वर्ण हों और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में न वर्ण हो तो न वर्ण ण वर्ण में परिवर्तित हो जाता है.                 उदाहरण-
ऋ+न = ऋण
तृष+ना = तृष्णा
विशेष-
व्यंजन संधि में अधिकांशतः प्रथम शब्द के अंत में वर्ण होता है और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में कोई स्वर या वर्ण होता है; किंतु कभी-कभी प्रथम शब्द के अंत में कोई स्वर होता है और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में कोई वर्ण होता है

ऐसी परिस्थिति में वर्ण परिवर्तन के दो नियम हैं-

अ.जब प्रथम शब्द के अंत में कोई स्वर हो और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में छ वर्ण हो तो छ से पहले च वर्ण जुड़ जाता है; जैसे-
आ+छादन = आच्छादन
परि+छेद = परिच्छेद

आ.जब प्रथम शब्द के अंत में अ, आ को छोड़कर अन्य कोई स्वर आये और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में स वर्ण आये तो स का ष हो जाता है; जैसे-
वि+सम = विषम
अभि+सेक = अभिषेक


विसर्ग संधि
जब प्रथम शब्द के अंत में विसर्ग(ः) हो और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में कोई स्वर या व्यंजन हो तो उन दोनों शब्दों की संधि से निर्मित शब्द में जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं. स्वर संधि में जहाँ स्वर में परिवर्तन होता है; व्यंजन संधि में जहाँ वर्ण में परिवर्तन होता है; वहीं विसर्ग संधि में विसर्ग में परिवर्तन होता है.
विसर्ग सम्बंधी परिवर्तन के कुछ विशेष नियम हैं-
1.विसर्ग का स, , ष वर्ण में परिवर्तन-
जब शब्द के अंत में विसर्ग और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में त या थ; च या छ; ट या ठ वर्ण हो तो विसर्ग का क्रमशः स, , ष वर्ण में परिवर्तन होता है.
उदाहरण-
मनः+ताप = मनस्ताप
निः+छल = निश्छल
निः+ठुर = निष्ठुर
2.विसर्ग का र वर्ण में परिवर्तन-
जब पहले शब्द के अंत में विसर्ग हो और विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर हो तथा दूसरे शब्द के प्रारम्भ में कोई स्वर हो या क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग प वर्ग में से किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पांचवाँ वर्ण हो या य, , , ह वर्ण हो तो विसर्ग र में परिवर्तित हो जाता है.
उदाहरण-
निः+उपाय = निरुपाय
निः+विकार = निर्विकार
निः+जन = निर्जन
निः+मल = निर्मल
दुः+जन = दुर्जन
3.विसर्ग का ष वर्ण में परिवर्तन-
जब पहले शब्द के अंत में विसर्ग और विसर्ग के पहले इ, उ स्वर हो और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में क, , , फ वर्ण हो तो विसर्ग ष वर्ण में परिवर्तित हो जाता है.
उदाहरण-
परिः+कार = परिष्कार
निः+फल = निष्फल
4.विसर्ग का ओ स्वर में परिवर्तन-
जब प्रथम शब्द में विसर्ग हो और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पांचवाँ वर्ण हो या य, , , , ह वर्ण हो तो विसर्ग ओ स्वर में परिवर्तित हो जाता है.
उदाहरण-
सरः+ज = सरोज
मनः+रथ = मनोरथ
5.विसर्ग में किसी परिवर्तन का ना होना-
जब प्रथम शब्द के अंत में विसर्ग हो और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में क, , , , , , ष हो तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता. केवल दोनों शब्दों को मिलाकर लिख देते हैं.
उदाहरण-
अंतः+करण = अंतःकरण
निः+शुल्क = निःशुल्क
6.विसर्ग का लोप होना-
विसर्ग संधि में दो अवस्थाओं में विसर्ग किसी वर्ण में परिवर्तित न होकर लुप्त हो जाता है. पहला जब प्रथम शब्द के अंत में विसर्ग और विसर्ग से पहले आ को छोड़कर कोई स्वर और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में र वर्ण हो. इस अवस्था में विसर्ग का लोप हो जाता है और लघु स्वर दीर्घ स्वर में परिवर्तित हो जाता है. दूसरा जब पहले शब्द के अंत में विसर्ग और विसर्ग से पहले अ स्वर हो और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में अ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है.
 उदाहरण-
निः+रस = नीरस
अतः+एव = अतएव
2.हिंदी भाषा के संधि नियमों द्वारा शब्द रचना-
क.महाप्राणीकरण-
जब पहले शब्द के अंत में कोई अल्पप्राण वर्ण(क, , , , , , , , , , , , , , म) हो और दूसरे शब्द के प्रारम्भ में ह वर्ण हो तो संधि के समय ह वर्ण का लोप हो जाता है और अल्पप्राण वर्ण महाप्राण वर्ण(ख, , , , , , , , , भ) में परिवर्तित हो जाता है.
उदाहरण-
जब+ही = जभी
अब+ही = अभी
ख.अल्पप्राणीकरण-
जब पहले शब्द के अंत में महाप्राण वर्ण हो और संधि के समय वो अल्पप्राण वर्ण में परिवर्तित होता है; जैसे-
ताख+पर = ताक पर
दूध+वाला = दूद वाला
ग.वर्ण का लोप-
कभी-कभी दो शब्दों की संधि में किसी एक वर्ण का लोप हो जाता है.
उदाहरण-
वहाँ+ही = वहीं
वह+ही = वही
किस+ही = किसी
नक+कटा = नकटा
घ.लघुकरण-
सामासिक पदों में पहले शब्द का दीर्घ स्वर प्रायः लघु हो जाता है. इसके दो रुप होते हैं- पहला- जब प्रथम शब्द के पहले वर्ण का दीर्घ स्वर लघु स्वर में परिवर्तित होता है. दूसरा- जब प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण का दीर्घ स्वर लघु स्वर में परिवर्तित होता है.
उदाहरण-
आम+चूर = अमचूर
हाथ+कंडा = हथकंडा
बहू+ऐं = बहुऐं
लड़का+पन = लड़कपन
ड़.सादृशीकरण-
जब प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण और दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण भिन्न होते हुये भी संधि द्वारा एक वर्ण में परिवर्तित हो जाते हैं.
उदाहरण-
पोत+दार = पोद्दार
च.स्वर परिवर्तन-
विशेष रुप से सामासिक पदों में प्रथम शब्द या दूसरे शब्द के किसी वर्ण का या दोनों शब्दों के वर्णों में स्वर परिवर्तित हो जाते हैं.
उदाहरण-
पानी+घाट = पनघट
घोड़ा+दौड़ = घुड़दौड़






 समास द्वारा निर्मित शब्द
समास का अर्थ है संक्षेप. जब दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर नया शब्द बनता है और उनके स्वरुप में कोई खास परिवर्तन नहीं होता, केवल संक्षिप्तता आती है तो उसे समास कहते हैं.
समास रचना में सामान्यता दो शब्द प्रमुख होते हैं. पहले पद को पूर्व पद और दूसरे पद को उत्तर पद कहते हैं. समास रचना से बना हुआ शब्द समस्तपद कहलाता है. समास के प्रयोग से भाषा में सटीकता व संक्षिप्तता आती है. जैसे- राजा का महलजैसे तीन पदों के स्थान पर राजमहलसमास का प्रयोग अधिक स्पष्ट और संक्षिप्त है.
सामान्यतः समास और संधि में कोई विशेष अंतर नहीं है क्योंकि शब्दों को जोड़ने में प्रायः संधि के नियम भी लागू हो जाते हैं; किंतु फिर भी समास और संधि दोनों में मामूली सा अंतर है. समास में पहले दोनों का संबंध सूचक शब्द लुप्त हो जाता है; फिर यदि संधि का नियम लागू होगा, तो संधि होगी वरना दोनों शब्दों को या तो मिलाकर लिखा जायेगा या फिर शब्दों के बीच में सामासिक चिह्न(-) लगा दिया जायेगा.
उदाहरण-
राम का अवतार = राम अवतार= रामावतार
भाई और बहन = भाई-बहन

समास में दो पदों (शब्दों) के संयोग की चार प्रमुख स्थितियाँ होती हैं.
समास
द्वंद           बहुव्रीहि         तत्पुरुष              अव्ययी भाव
(दोनों पद       (दोनों पद       (पहला पद गौण,      (पहला पद प्रधान
प्रधान)          अप्रधान)        दूसरा प्रधान)              दूसरा गौण)
भाई-बहन       त्रिनेत्र          देशभक्ति            प्रतिदिन
1.द्वंद समास-
द्वंद समास में दोनों पद प्रधान होते हैं, इसमें समास के बनाते समय दोनों पदों के बीच का सम्बंध सूचक शब्द लुप्त हो जाता है और बीच में सामासिक चिह्न लग जाता है.
उदाहरण-
राम और कृष्ण = राम-कृष्ण
गाना और बजाना = गाना-बजाना
2.बहुव्रीहि समास-
बहुव्रीहि समास में दोनों पद ही अप्रधान होते हैं किंतु दोनों पदों द्वारा निर्मित शब्द किसी विशेष अर्थ को अभिव्यक्त करते हैं, ये अर्थ रुढ़ होते हैं. अतः इन्हें यौगिक रुढ़ शब्द भी कहते हैं.
उदाहरण-
नीला है कंठ जिसका = नीलकंठ अर्थात शिव
लम्बा है उदर जिसका = लम्बोदर अर्थात गणेश
3.तत्पुरुष समास-
तत्पुरुष समास में दूसरा पद प्रधान होता है और पहला पद विशेषण, उपमासूचक या संख्यावाची विशेषण होता है, इसी आधार पर इसके दो भेद होते हैं.
क.कर्मधारय समास
ख.द्विगु समास
क.कर्मधारय समास-
कर्मधारय समास में दूसरा पद प्रधान होता है और पहला पद विशेषण या उपमासूचक होता है.
उदाहरण-
महा+पुरुष = महापुरुष
चंद्रमा के समान मुख = चंद्र्मुख
ख.द्विगु समास-
द्विगु समास में भी दूसरा पद प्रधान होता है और पहला पद संख्यावाची विशेषण होता है.
उदाहरण-
चार राहें = चौराहा
तीन माह = तिमाही
4.अव्ययी समास-
अव्ययी समास में पहला पद अव्यय शब्द होता है, समस्त पद में अव्ययी भाव रहता है.
उदाहरण-
यथा+समय = यथासमय      (समय के अनुसार)
अकेला+अकेला = अकेला-अकेला  (बिल्कुल अकेला)



                                क्रमशः

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