हिन्दी साहित्य
Monday, March 11, 2019
न जाने बीती कितनी बरसातें
बीते हैं पतझड़ कितने.
फिर भी हैं सुरक्षित
यादें तुम्हारी.
जब चाहें देती भिगो
सावन सा मुझे
औ
’
कभी खिला देती
मन में बसंत.
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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