Friday, March 22, 2019



क.  शब्द-परिचय
“शब्द क्रमबद्ध ध्वनियों का ऐसा समूह है जिसका एक निश्चित अर्थ होता है और उसकी स्वतंत्र सत्ता होती है”.
भिन्न-भिन्न भाषाओं में एक ही वस्तु के लिये अलग-अलग शब्दों का प्रयोग होता है; जैसे- पानी के लिये हिंदी में जल’, तमिल में तन्नी’, उर्दू में आब’, अंग्रेजी में वाटर’. कभी-कभी एक ही शब्द दो भिन्न भाषाओं में अलग-अलग अर्थ रखते हैं; जैसे- कमशब्द हिंदी में न्यूनता के लिये आता है और अंग्रेजी में आनाक्रिया के लिये. शब्द के अर्थ हमें शब्द कोशों से प्राप्त होते हैं.
शब्दों की रचना के लिये वर्णों का निश्चित क्रम में होना आवश्यक है; जैसे- कलमऔर कमल’. दोनों शब्दों में ’, ‘’, ‘तीन ही वर्ण हैं किंतु स्थान परिवर्तन के कारण दोनों शब्दों का अर्थ भिन्न है. जहाँ कलमशब्द पेनका पर्याय है, वहीं कमलशब्द एक पुष्प का नाम है. कई बार वर्णों के स्थान परिवर्तन से न केवल अर्थ बदलता है, वरन शब्द निरर्थक भी हो जाते हैं; जैसे- कलमकी जगह मकल, लकम.
हिंदी भाषा की विशाल शब्द संपदा है, जिसके कारण आज हिंदी भाषा में सामान्य विषयों पर ही नहीं, वरन् वैज्ञानिक, गणितीय, तकनीकी, सांख्यिकी, आदि विषयों में भी पुस्तकें लिखी जा रही हैं. हिंदी भाषा की शब्द संपदा का अध्धयन हम निम्नलिखित विषयों को आधार बनाकर कर सकते हैं-


1.  रचना के आधार पर
2.  अर्थ के आधार पर
3.  व्याकरणिक विवेचन के आधार पर
4.  स्रोत/इतिहास के आधार पर
5.  प्रयोग के आधार पर

रचना के आधार पर-
क.  सामान्य शब्द
ख. उपसर्ग द्वारा निर्मित शब्द
ग.   प्रत्यय द्वारा निर्मित शब्द
घ.   संधि द्वारा निर्मित शब्द
ङ.    समास द्वारा निर्मित शब्द
च.   ध्वनि अनुकरण द्वारा निर्मित शब्द
क.  सामान्य शब्द-
सामान्य शब्द दो या दो से अधिक वर्णों से मिलकर बनते हैं और इनका एक निश्चित अर्थ होता है, इसलिए इन्हें रूढ़ शब्द भी कहते हैं; जैसे-जल’, ‘कमल’, आदि. कभी-कभी एक ही वर्ण शब्द के रूप में प्रयुक्त होता है और उसका एक निश्चित अर्थ होता है; जैसे- और ’. ‘’ ‘नहींके अर्थ में आता है और ’ ‘औरके लिये.
ख. उपसर्ग द्वारा निर्मित शब्द-
कुछ शब्द हमेशा किसी अन्य शब्द के प्रारंभ में जुड़कर आते हैं और उस शब्द को नया अर्थ प्रदान करते हैं, किंतु उनका प्रयोग स्वतंत्र इकाई के रूप में नहीं होताहै. ये उपसर्गकहलाते हैं. उपसर्गसे निर्मित शब्दों की चार दशाएँ हो सकती हैं-
  
1. शब्द का अर्थ ठीक विपरीत हो सकता है; जैसे ज्ञानशब्द में उपसर्ग लगकर अज्ञानशब्द बनता है जो  ज्ञान के ठीक विपरीत अर्थ अज्ञानताका अर्थ प्रकट करता है.
2. शब्द का अर्थ बदल सकता है; जैसे- हारशब्द में प्रउपसर्ग लगकर प्रहारशब्द बनता है, जिसका हारशब्द के अर्थ से कोई भी संबंध नहीं है. हारशब्द का एक अर्थ युद्ध या प्रतियोगिता में हारनेसे है, वहीं दूसरा अर्थ फूलों या मोतियों की मालासे है. वहीं प्रहारशब्द का अर्थ किसी जीव पर किसी आयुध से वारकरने से है.
3. शब्द का अर्थ तो वही रहे, लेकिन उसके अर्थ में विशिष्टता आ सकती है; जैसे- भ्रमणशब्द में परिउपसर्ग लगकर परिभ्रमणशब्द बनता है. भ्रमणशब्द जहाँ सामान्य घूमने के अर्थ में प्रयुक्त होता है वहीं परिभ्रमणशब्द किसी विशेष उद्देश्य से किये गये भ्रमण के लिये प्रयुक्त होता है.
4. शब्द के अर्थ में कोई परिवर्तन न हो; जैसे- शेषशब्द में अवउपसर्ग लगकर अवशेषशब्द बनता है. शेषऔर अवशेषदोनों शब्दों का समान ही अर्थ है.

हिंदी भाषा में मुख्यतः तीन प्रकार के उपसर्ग प्रचलित हैं-

अ.  संस्कृत उपसर्
आ.           हिंदी उपसर्ग
इ.    विदेशी उपसर्ग
अ.  संस्कृत उपसर्ग-
संस्कृत उपसर्गों का प्रयोग तत्सम शब्दों के साथ ही होता है अर्थात जो शब्द संस्कृत भाषा से हिंदी भाषा में शुद्ध रूप में आये हैं. जैसे-

उपसर्ग          अर्थ                शब्द     
अति           अधिक          अत्यंत, अत्युक्ति, अतिक्रमण
अव            पतन                अवनत, अवगत, अवलोकन
प्र         अधिक, ऊपर, आगे    प्रयोग, प्रस्थान, प्रमाण, प्रसिद्ध
सम       पूर्णतः संयोग         संकल्प, संग्रह, संस्कार
वि        भिन्न, विशेष         विवाद, विवेक, विशेष

आ.                       हिंदी उपसर्ग

हिंदी भाषा में अधिकांशतः संस्कृत उपसर्गों का प्रयोग होता है, किंतु कुछ अपने भी उपसर्ग हैं जिनका प्रयोग हिंदी में स्वयं निर्मित शब्दों के पूर्व किया जाता है; जैसे-
उपसर्ग              अर्थ                शब्द     
अध                आधा           अधखिला, अधपका, अधमरा
उन                 एक कम        उन्नीस, उनतीस, उनसठ
भर                 पूरा, ठीक       भरपेट, भरसक, भरमार
प्रति           विरोध, परिवर्तन       प्रतिकूल, प्रतिकार, प्रतिनिधि, प्रत्येक
पर                 दूसरा           पराधीन, परदेश
औ            निषेध, हीनता         औगुण, औसर

इ. विदेशी उपसर्ग
हिंदी भाषा में अरबी, फारसी, उर्दु, अंग्रेजी, आदि अनेक भाषाओं के शब्द प्रयोग में लाये जाते हैं, इन शब्दों की रचना में इन्हीं भाषा के उपसर्ग प्रयुक्त होते हैं; जैसे-
उपसर्ग              अर्थ                     शब्द          
ब(फारसी)       के साथ/से                     बखूबी, बदौलत
बे(फारसी)            बिना                बेईमान, बेतुका
ला(अरबी)            नहीं/अभाव           लाजबाब, लावारिस
हैड(अंग्रेजी)                प्रमुख               हैड मास्टर, हैड मिस्ट्रेस
खुश(उर्दु)                 अच्छा               खुशबू, खुशकिस्मत
हम(उर्दु)                  बराबर               हमवतन, हम उम्र

ग.   प्रत्यय द्वारा निर्मित शब्द-
कुछ शब्द हमेशा किसी अन्य शब्द के अंत में जुड़कर आते हैं और उस शब्द को नया अर्थ प्रदान करते हैं.उपसर्गकी भाँति इनका प्रयोग भी स्वतंत्र इकाई  के रूप में नहीं होता है, ये प्रत्यय कहलाते हैं.
उदाहरण- जलशब्द में प्रत्यय लगा देने से जलजशब्द बना. जलका अर्थ है पानी और का अर्थ है जन्म लेने वाला. जलजशब्द का अर्थ हुआ जल से उत्पन्न होने वाला. जलजशब्द जल से उत्पन्न किसी भी वस्तु के लिये प्रयुक्त नहीं होता, वरन कमलशब्द के लिये रूढ़ है.



प्रत्यय दो प्रकार के होते है-
1.  कृत प्रत्यय
2.  तद्धित प्रत्यय
1.  कृत प्रत्यय-
जो प्रत्यय धातुओं के अंत में लगते हैं, वे कृत प्रत्यय कहलाते हैं. कृत प्रत्यय के योग से बने शब्दों  को कृदंत कहते हैं; ‘लिखधातु में आवटप्रत्यय लगने से लिखावट शब्द बनता है.
कृत प्रत्यय पाँच प्रकार के होते हैं—
अ.  कर्तृवाचक कृदंत
आ.           कर्मवाचक कृदंत
इ.    करण वाचक कृदंत
ई.    भाव वाचक कृदंत
उ.    क्रिया वाचक कृदंत
अ.  कर्तृ वाचक कृदंत-
जिस प्रत्यय से बने कार्य करने वाले अर्थात कर्त्ता का बोध हो, वह कर्तृ वाचक कृदंत कहलाते हैं. जैसे- पढ़्नासामान्य क्रिया के साथ वालाप्रत्यय लगने से पढ़्ने वाला शब्द बना.
अन्य उदाहरण-
धातु              प्रत्यय               शब्द
पालना            हारा                पालनहारा
गय              अक                गायक
भिक्ष             उक                 भिक्षुक
खेल              आड़ी                खिलाड़ी    22.
आ.           कर्म वाचक कृदंत-
जिस प्रत्यय से बने शब्द से किसी कर्म का बोध हो, वह कर्म वाचक कृदंत कहलाते हैं गा धातु में आना प्रत्यय लगने से गानाशब्द बना.
अन्य उदाहरण-
धातु                     प्रत्यय                    शब्द     
सूँघ                     नी                      सूँघनी
पूज                     आ                      पूजा
बिछ                     औना                    बिछौना
ओढ़                     ना                      ओढ़्ना
इ.    करणवाचक कृदंत-
          जिस प्रत्यय से बने शब्द से क्रिया के साधन अर्थात करण का बोध हो, वह करण वाचक कृदंत कहलाते हैं; जैसे बेलधातु में प्रत्यय लगने से बेलनशब्द बनता है, जो रोटी बनाने का एक साधन है.
अन्य उदाहरण-
धातु                     प्रत्यय               शब्द     
झूल                     आ                 झूला
झाड़                     ऊ                  झाड़ू
23.
धौंक                     नी                 धौंकनी
सुमर                    नी                 सुमरनी
ई.    भाव वाचक कृदंत-
          जिस प्रत्यय से बने श्ब्द से भाव अर्थात क्रिया के व्यापार का बोध हो, वह भाव वाचक कृदंत कहलाता है; जैसे-मिलधातु में आपप्रत्यय लगने से मिलापशब्द बनता है जो आपस में मेल भाव का बोध कराता है.
अन्य उदाहरण-
धातु                प्रत्यय               शब्द     
चढ़                 आव                चढ़ाव
सज                आवट               सजावट
कम                आई                कमाई
थक                आवट               थकावट
उ.    क्रिया वाचक कृदंत-
जिस प्रत्यय से बने शब्द से क्रिया के होने का भाव प्रकट हो, वह क्रिया वाचक कृदंत कहलाते हैं. इसमें मूल धातु के साथ तालगाकर, बाद में हुआलगा देने से वर्तमानकालिक क्रिया वाचक कृदंत बनते हैं; जैसे- लिखता हुआमें लिखधातु के साथ ताप्रत्यय लगा है और बाद में हुआशब्द आया है. क्रिया वाचक कृदंत केवल पुल्लिंग और एक वचन में प्रयुक्त होता है.

2. तद्धित प्रत्यय-
जो प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम, या विशेषण के अंत में लगकर नये शब्द बनाते हैं, वे  तद्धित शब्द कहलाते हैं. जैसे- टोपीएक वस्तु का नाम है, इसमें वालाप्रत्यय लगकर टोपीवालाशब्द बनता है, यह तद्धित शब्द है.
तद्धित प्रत्यय आठ प्रकार के होते हैं-
क.  कर्तृ वाचक तद्धित
ख. भाव वाचक तद्धित
ग.   सम्बंध वाचक तद्धित
घ.   लघुता वाचक तद्धित
ङ.    गणना वाचक तद्धित
च.   सादृश्य वाचक तद्धित
छ.  गुण वाचक तद्धित
ज.  स्थान वाचक तद्धित
क.  कर्तृ वाचक तद्धित-
जब किसी संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दों के अंत में प्रत्यय लगकर ऐसे शब्द का निर्माण करते हैं, जिससे किसी कार्य के करने वाले का बोध हो, तो वे शब्द कर्तृ वाचक तद्धित कहलाते हैं; जैसे- गाड़ीशब्द में वालाप्रत्यय लगकर गाड़ीवालाशब्द बना, जो गाड़ी चलाने वाले के लिये प्रयुक्त होता है.
अन्य उदाहरण-

संज्ञा/विशेषण              प्रत्यय               शब्द 
सुख                इया                सुखिया
तेल                 ई                  तेली
सोना                आर                सुनार
दुकान               दार                 दुकानदार

ख. भाव वाचक तद्धित-
जब किसी संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण शब्दों के अंत में प्रत्यय लगकर ऐसे शब्द का निर्माण करते हैं, जिससे किसी भाव का बोध हो, तो वे शब्द भाव वाचक तद्धित कहलाते हैं. जैसे- अरूणशब्द में इमाप्रत्यय लगकर अरूणिमाशब्द बनता है, जो सूर्योदय के समय आकाश में छाई अरूणिमा(लालिमा) का भाव अभिव्यक्त करता है.
अन्य उदाहरण-

संज्ञा/सर्वनाम/विशेषण        प्रत्यय          शब्द     
कड़वा                    आहट          कड़वाहट
बूढ़ा                     पा             बुढ़ापा
गर्म                     ई             गर्मी
भला                     आई           भलाई
अपना                    पन            अपनापन

ग.    सम्बंध वाचक तद्धित-
जब किसी संज्ञा, विशेषण शब्दों के अंत में प्रत्यय लगकर बने शब्द किसी सबंध का बोध कराते हैं, तो वे सम्बंध वाचक तद्धित कहलाते हैं. जैसे-
26.

ससुरशब्द में आलप्रत्यय लगने से ससुरालशब्द बनता है. जो पति
और पत्नी का क्रमशः पत्नी और पति के घर से उसके सम्बंध का बोध कराता है.
अन्य उदाहरण-
संज्ञा                प्रत्यय               शब्द     
       नाना              हाल                ननिहाल
       भाई/भातृ           जा                 भतीजा

घ.   लघुता वाचक तद्धित-
जब किसी संज्ञा या विशेषण शब्दों के अंत में प्रत्यय लगकर बने शब्द, पूर्व शब्द के लघु रूप का बोध कराते हैं, तो वे लघुता वाचक तद्धित कहलाते हैं. जैसे- लोटाशब्द में इयाप्रत्यय लगकर लुटियाशब्द बनता है, जो लोटाके लघु रूप का बोध कराता है.
अन्य उदाहरण-
संज्ञा                प्रत्यय               शब्द 
खाट                इया                खटिया
कोठा                री                  कोठरी
ढ़ोलक               ई                  ढ़ोलकी
पाग                ड़ी                  पगड़ी

ड़. गणना वाचक तद्धित-
जब किसी संख्या वाचक विशेषण शब्द के अंत में प्रत्यय लगकर संख्या के  किसी विशेष क्रम या विशेष रूप का बोध कराते हैं, तो वे गणना वाचक प्रत्यय कहलाते हैं. जैसे- एकशब्द में हराप्रत्यय लगकर इकहराश्ब्द बनता है, जो किसी वस्तु की एक पर्त की गणना का बोध कराता है.
अन्य उदाहरण-
विशेषण              प्रत्यय               शब्द
तीन                हरा                 तिहरा
दो                  रा                  दूसरा
चार                 था                 चौथा
पाँच                वाँ                  पाँचवा
च.सादृश्य वाचक तद्धित-
जब किसी संज्ञा, विशेषण शब्द के अंत में प्रत्यय लगकर, पूर्व शब्द की विशेषता से समता का बोध कराते हैं, तब वे सादृश्य वाचक तद्धित कहलाते हैं. जैसे- पीलाशब्द में साप्रत्यय लगकर पीला साशब्द बनता है जो किसी ऐसी वस्तु का बोध कराता है जिसका रंग पीले रंग के समान हो.
अन्य उदाहरण-
विशेषण                  प्रत्यय               शब्द
नीला                    सा                 नीला सा
सोना                    हरा                 सुनहरा


छ.  गुण वाचक तद्धित-
जब किसी संज्ञा, विशेषण के अंत में प्रत्यय लगकर ऐसे शब्द बनते कहलाते हैं. जैसे- दयाशब्द में लुप्रत्यय लगने से दयालुशब्द बनता है जो किसी व्यक्ति के अंदर निहित दया के गुण का बोध कराता है.
अन्य उदाहरण-
संज्ञा/विशेषण              प्रत्यय          शब्द 
धन                 वान            धनवान
रंग                 ईला            रंगीला
विष                ऐल            बिषैला
वांछना              ईय            वांछनीय
ज.  स्थान वाचक तद्धित-
जब किसी संज्ञा शब्द के अंत में प्रत्यय लगकर विशेषण बनते हैं और स्थान विशेष का बोध कराते हैं, तो वे स्थान वाचक तद्धित कहलाते हैं.जैसे- पंजाबशब्द में प्रत्यय लगकर पंजाबीशब्द बनता है, जो पंजाब में रहने वाले व्यक्ति विशेष या अन्य किसी वस्तु का बोध कराता है.
अन्य उदाहरण-
संज्ञा                प्रत्यय               शब्द
          लखनऊ              वी                  लखनवी
          दिल्ली               वाला                दिल्ली वाला
            
विशेष-
1.कृत प्रत्यय और तद्धित प्रत्यय में मुख्य अंतर है-
कृत प्रत्यय धातु या क्रिया के अंत में जुड़कर शब्द बनाते हैं, जबकि तद्धित प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण में जुड़कर शब्द बनाते हैं.
2.और आनीजैसे कुछ महत्वपूर्ण प्रत्यय हैं, जो पुल्लिंग शब्दों के साथ लगकर उसे स्त्रीलिंग में परिवर्तित कर देते हैं.
जैसे-
चाचा‌+ई = चाची
सेठ+आनी = सेठानी

                                  क्रमशः





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