बिन थामे ही हाथ, हमेशा
थामे रहते हाथ हमारा।
कैसे कह दें! साथ नहीं हो,
पल-पल साथ निभाते हो।।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
पपइया
डॉ. मंजूश्री गर्ग
बाग के कोनों में
देख उगा
‘पपइया’
बाल-मन मुस्काया.
निकाल कर उसे
मिट्टी से
धोया, घिसा
बाजा बनाया.
जब मन में आया
‘पपइया’ बजाया.
नहीं सोच पाया
तब उसका मन
जुड़ा रहता ये ‘पपइया’
कुछ बरस यदि मिट्टी से
एक दिन
बड़ा बनता रसाल-वृक्ष
और
बसंत बहार में
बौरों से लद जाता.
पत्तों में छुप के
कोयल कूकती
गर्मी के आते ही
डाली-डाली
आमों से लद जाती.
क्योंकि मैं बीज हूँ
(डॉ. मंजूश्री गर्ग)
क्योंकि मैं बीज हूँ
शिखर पर रहकर भी
कठोर आवरण में रहता हूँ.
समय आने पर, कहीं दूर
भूमि में बो दिया जाऊँगा
अंकुरित होने के लिये.
पुरातनता के संस्कार लिये
नयी हवा, पानी, मिट्टी में पनपने के लिये.
उजाला मुझे तब भी नहीं मिलेगा
जो मुझसे उष्मा पाकर
आयेंगे बाहर, वो अंकुर होंगे.
पल्लव होंगे, तने होंगे, फूल होंगे
और होंगे फल, लेकिन जब मेरा प्रतिरुप
बीज आयेगा; तो फिर वही कठोर आवरण में------------
15 अगस्त, 2022 आजादी के अमृत महोत्सव पर
हम नमन सभी को करते हैं
प्रथम नमन भारत की मिट्टी को जिसमें पलकर बड़े हुये।
द्वितीय नमन भारत के वीरों को जिन्होंने देश की रक्षा की।
तृतीय नमन भारत के किसानों को जिन्होंने देश को अन्न दिया।
चतुर्थ नमन भारत के वैज्ञानिकों को जिन्होंने नये आविष्कार किये।
पंचम नमन भारत के शिक्षकों को जिन्होंने हमें शिक्षित किया।
षष्टम् नमन भारत के कवियों को जिन्होंने य़शगान किया।
सप्तम् नमन भारत के नेताओं को जिन्होंने देश को मान दिलाया।
नमन हर भारत के जन को जिन्होंने देश हित में कुछ काम किया।
विश्व पटल पर भारत का परचम लहराकर, मान बढ़ाया।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
नारी तो एक फूल..........
नारी तो एक फूल है
सौरभ बिखेरना है उसे।
चाहे
जिस रंग में खिले।
चाहे
जिस ढ़ंग में ढ़ले।
चाहे
उगे कमल सी
चाहे
पले गुलाब सी।
चाहे ले सौम्यता
बेला औ’ चमेली सी
चाहे ले उच्श्रृंखलता
गुलमोहर औ’ अमलतास सी।
चाहे
निर्बल गुलमेंहदी सी
चाहे
सबल गैंदे सी
चाहे
झरे हरसिंगार सी
चाहे
सजे मालती सी।
मुस्कान बिखेरना है उसे
नारी तो एक फूल है।
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प्राकृतिक चिकित्सा
डॉ. मंजूश्री गर्ग
हमारा शरीर पंच भौतिक तत्वों से बना है- जल,
वायु, अग्नि, आकाश, पृथ्वी. इन पाँचों
तत्वों के संतुलन से ही व्यक्ति का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य स्वस्थ रहता है.
प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति अलग होती है और अलग-अलग समय पर इन तत्वों का प्रभाव
भी अलग-अलग होता है. व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिये अपनी प्रकृति को समझना
चाहिये, उसी के अनुसार अपने खाने-पीने का ध्यान रखना चाहिये. जैसे-
जल- प्रायः हमारे शरीर में 70% पानी की मात्रा होती है
किन्तु प्रत्येक व्यक्ति में कम-ज्यादा भी होती है. कभी हमें पानी की अधिक आवश्यकता
होती है और कभी कम. अपनी प्रकृति को समझकर ही पानी का उपयोग करना चाहिये.
वायु- वायु का सेवन हम प्रत्येक
पल श्वास के माध्यम से करते ही रहते हैं. हर समय संभव ना भी हो, तो दिन में कुछ
मिनट या घंटे हमें शुद्ध ताजा हवा में टहलना या बैठना अवश्य चाहिये.
अग्नि- प्रत्येक व्यक्ति में अग्नि
होती है, इसके बिना व्यक्ति जी नहीं सकता. इसीलिये मृत व्यक्ति का शरीर ठंडा होता
है. आवश्यकतानुसार अग्नि(तेज) का सेवन करना चाहिये. चाहें वो शुद्ध सूर्य की
किरणों से प्राप्त हो या भोज्य पदार्थों के माध्यम से.
आकाश- आकाश को शून्य भी कहते हैं.
हमें दिन में कुछ मिनट ध्यान अवश्य करना चाहिये जिससे हमारा मन-मस्तिष्क शून्य हो
जाता है अर्थात् पुरानी बातों से हट जाता है. शून्य पटल पर ही स्वस्थ विचारों का
आगमन होता है.
पृथ्वी- पृथ्वी का सबसे बड़ा गुण
गुरूत्वाकर्ष है. जिस व्यक्ति के पैर धरती पर टिके रहते हैं, वही अगला कदम
सोच-समझकर उठाता है और धरती के महत्व को समझता है.
अपने इन्हीं पाँचों तत्वों को समझना और उनके
अनुसार आचार-विचार करना प्राकृतिक चिकित्सा का मूल मंत्र है.