Wednesday, August 31, 2022


बिन थामे ही हाथ, हमेशा

थामे रहते हाथ हमारा।

कैसे कह दें! साथ नहीं हो,

पल-पल साथ निभाते हो।।


                             डॉ. मंजूश्री गर्ग 


हवा में नमी सी छाने लगी,

धीरे-धीरे शरद ऋतु आने लगी।

मेघों ने मुँह मोड़ लिया,

अगले बरस आने का वादा किया।


                    डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, August 30, 2022


31 अगस्त, 2022, श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें


सजे हिंडोले

झुलावें ऋद्धि-सिद्धि

झूलें गणेश।

                 डॉ. मंजूश्री गर्ग 


 पपइया

 डॉ. मंजूश्री गर्ग

बाग के कोनों में

देख उगा

पपइया

बाल-मन मुस्काया.

 

निकाल कर उसे

मिट्टी से

धोया, घिसा

बाजा बनाया.

जब मन में आया

पपइया बजाया.

 

नहीं सोच पाया

तब उसका मन

जुड़ा रहता ये पपइया

कुछ बरस यदि मिट्टी से

एक दिन

बड़ा बनता रसाल-वृक्ष

और

बसंत बहार में

बौरों से लद जाता.

 

पत्तों में छुप के

कोयल कूकती

गर्मी के आते ही

डाली-डाली

आमों से लद जाती.

 

 

  

Monday, August 29, 2022

 जब हम तुम मिलेंगे......

जरूरी तो नहीं

जब!

हम तुम मिलें

गगन नीला ही हो,

हवा मंद-मंद ही बहे।

पर,

जब हम तुम मिलेंगे

मौसम जरूर सुहाना होगा।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग






Sunday, August 28, 2022


बोनसाई

 

 बरगद हो या पीपल

आम हो या जामुन।

बढ़ रहे घर-आँगन

जितना चाहें हम।

जैसे तराशें ख्बाब

बोनसाई से हम।


                      डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, August 26, 2022


हाल क्या कहिये

बदलते मौसम का।

चढ़ता-उतरता है पारा

सेंसेक्स की तरह।।


           डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, August 25, 2022


चमकते हैं जो, सितारे वही नहीं बड़े।

दूर बहुत दूर हैं, सितारे बड़े-बड़े।।


              डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Tuesday, August 23, 2022

 

क्योंकि मैं बीज हूँ

(डॉ. मंजूश्री गर्ग)

क्योंकि मैं बीज हूँ

शिखर पर रहकर भी

कठोर आवरण में रहता हूँ.

समय आने पर, कहीं दूर

भूमि में बो दिया जाऊँगा

अंकुरित होने के लिये.

पुरातनता के संस्कार लिये

नयी हवा, पानी, मिट्टी में पनपने के लिये.

 

उजाला मुझे तब भी नहीं मिलेगा

जो मुझसे उष्मा पाकर

आयेंगे बाहर, वो अंकुर होंगे.

पल्लव होंगे, तने होंगे, फूल होंगे

और होंगे फल, लेकिन जब मेरा प्रतिरुप

बीज आयेगा; तो फिर वही कठोर आवरण में------------

 



 

 

 

 

 

 

 

 

 

बड़े प्यार से फिर बुलाया है दुश्मनों की टोली ने,

लगता है नयी साजिश रची है हमारे खिलाफ।।


             डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

 

 

  

Monday, August 22, 2022

 

संसार-भर के उपद्रवो का मूल व्यंग्य है। ह्रदय में जितना यह घुसता है, उतना कटार नहीं। वाक्-संयम विश्वमैत्री की पहली सीढ़ी है।

                                    जयशंकर प्रसाद

 

बच्चों का ह्रदय कोमल थाला(गमला) है, चाहे इसमें कँटीली झाड़ी लगा दो, चाहे फूलों के पौधे।

                                                                जयशंकर प्रसाद

Sunday, August 21, 2022



रात-भर जलता रहा दिया, लड़ता रहा अँधेरों से।

सौंप कर हमें उजालों के हाथ बढ़ गया दिया।।


                          डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, August 20, 2022



शाम का सूरज चाहे जितने रंग बिखेरे।

स्वर्णिम आभा सुबह का सूरज ही है देता।।


डॉ. मंजूश्री गर्ग






 

Friday, August 19, 2022


नाम बदला, भेष बदला,

बदल ना पाये मृदु मुस्कान।

कान्हा! तेरा सब कुछ झूठा,

झूठा नहीं है तेरा प्यार।


       डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

Thursday, August 18, 2022


कृष्ण-जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें


कर्मयोगी श्रीकृष्ण

 


कभी नंद की गायें चरायें,

कभी बजायें बाँसुरी वन में।

कभी सुदामा के पग धोयें,

कभी बने सारथि पार्थ के।

कर्मयोगी बनकर ही श्रीकृष्ण

देते संदेश कर्म करने का।


         डॉ. मंजूश्री गर्ग

  


गिरने ना देना आँसू कोई,

मन-द्वारे पे सजी अल्पना।।


             डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Wednesday, August 17, 2022

 

बाबूजी थे

सीधे-सच्चे

खोटे युग में खरे रहे वे

x     x      x    x    x

बरगद थे वे

झेले पतझर

फिर भी, साधो, हरे हरे वे।

                   कुमार रवीन्द्र


Tuesday, August 16, 2022


 नाम मिटे तो ऐसे जैसे नदी सागर हो गयी।

यश ढ़ले तो ऐसे जैसे चाँद छिपे औ सूरज निकले।।


                             डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Monday, August 15, 2022


स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवम् शुभकामनायें



नारंगी, सफेद और हरा

तीन रंग में रंगा है भारत।

हर्ष, उत्साह और उमंग

छा रही जन-जन के मन में।


          डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, August 14, 2022


15 अगस्त, 2022 आजादी के अमृत महोत्सव पर

हम नमन सभी को करते हैं


प्रथम नमन भारत की मिट्टी को जिसमें पलकर बड़े हुये।

द्वितीय नमन भारत के वीरों को जिन्होंने देश की रक्षा की।

तृतीय नमन भारत के किसानों को जिन्होंने देश को अन्न दिया।

चतुर्थ नमन भारत के वैज्ञानिकों को जिन्होंने नये आविष्कार किये।

पंचम नमन भारत के शिक्षकों को जिन्होंने हमें शिक्षित किया।

षष्टम् नमन भारत के कवियों को जिन्होंने य़शगान किया।

सप्तम् नमन भारत के नेताओं को जिन्होंने देश को मान दिलाया।

नमन हर भारत के जन को जिन्होंने देश हित में कुछ काम किया।

विश्व पटल पर भारत का परचम लहराकर, मान बढ़ाया।


                   डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, August 13, 2022


आओ! मिलकर तिरंगा लहरायें हर घर पे।
आजादी का अमृत महोत्सव मनायें।।

                      डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

Friday, August 12, 2022


सम्बन्धों की देहरी पर खिले प्यार के फूल।

रखना कदम आगे विश्वासों के साथ।।


                     डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Wednesday, August 10, 2022



11 अगस्त, 2022, रक्षा बन्धन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनायें


     डॉ. मंजूश्री गर्ग
 


उत्सुक नयन करें स्वागत।

दूर हो थकान पथ की।।


             डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Tuesday, August 9, 2022


राष्ट्रमंडल खेल,2022 में विजयी भारतीय खिलाड़ियों को हार्दिक बधाई व उज्जवल भविष्य के लिये शुभकामनायें


मंजिलगर पा ली है, रूके ना बढ़ते कदम।

मंजिलों से आगे हैं, मंजिलें और भी।।


                      डॉ. मंजूश्री गर्ग

   

Monday, August 8, 2022


साईं सब संसार में मतलब का व्यवहार।

जब लगी पैसा गाँठ में तब लगी ताको यार।

                               गिरधर 

Sunday, August 7, 2022


एक बूँदः

 

सागर से चुराकर अपना अस्तित्व

वाष्प बन रख लिया बादल रूप।

 

सूरज से चुराकर उसकी किरणें

इन्द्रधनुषी रंग में रंगा तन-मन।

 

तपती धरती को देख मन तड़पा

अश्रु लड़ी में पिर आयी धरती पर।

 

किन्तु सीपी में गिरी, बनी एक मोती

एक बूँद नन्हीं सी, प्यारी सी।


         डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, August 6, 2022

 

नारी तो एक फूल..........

 

नारी तो एक फूल है

सौरभ बिखेरना है उसे।

 

            चाहे जिस रंग में खिले।

            चाहे जिस ढ़ंग में ढ़ले।

            चाहे उगे कमल सी

            चाहे पले गुलाब सी।

 

चाहे ले सौम्यता

बेला औ चमेली सी

चाहे ले उच्श्रृंखलता

गुलमोहर औअमलतास सी।

 

            चाहे निर्बल गुलमेंहदी सी

            चाहे सबल गैंदे सी

            चाहे झरे हरसिंगार सी

            चाहे सजे मालती सी।

 

मुस्कान बिखेरना है उसे

नारी तो एक फूल है।

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Friday, August 5, 2022

 

प्राकृतिक चिकित्सा

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

हमारा शरीर पंच भौतिक तत्वों से बना है- जल, वायु, अग्नि, आकाश, पृथ्वी. इन  पाँचों तत्वों के संतुलन से ही व्यक्ति का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य स्वस्थ रहता है. प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति अलग होती है और अलग-अलग समय पर इन तत्वों का प्रभाव भी अलग-अलग होता है. व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिये अपनी प्रकृति को समझना चाहिये, उसी के अनुसार अपने खाने-पीने का ध्यान रखना चाहिये. जैसे-

जल-  प्रायः हमारे शरीर में 70% पानी की मात्रा होती है किन्तु प्रत्येक व्यक्ति में कम-ज्यादा भी होती है. कभी हमें पानी की अधिक आवश्यकता होती है और कभी कम. अपनी प्रकृति को समझकर ही पानी का उपयोग करना चाहिये.

वायु- वायु का सेवन हम प्रत्येक पल श्वास के माध्यम से करते ही रहते हैं. हर समय संभव ना भी हो, तो दिन में कुछ मिनट या घंटे हमें शुद्ध ताजा हवा में टहलना या बैठना अवश्य चाहिये.

अग्नि- प्रत्येक व्यक्ति में अग्नि होती है, इसके बिना व्यक्ति जी नहीं सकता. इसीलिये मृत व्यक्ति का शरीर ठंडा होता है. आवश्यकतानुसार अग्नि(तेज) का सेवन करना चाहिये. चाहें वो शुद्ध सूर्य की किरणों से प्राप्त हो या भोज्य पदार्थों के माध्यम से.

आकाश- आकाश को शून्य भी कहते हैं. हमें दिन में कुछ मिनट ध्यान अवश्य करना चाहिये जिससे हमारा मन-मस्तिष्क शून्य हो जाता है अर्थात् पुरानी बातों से हट जाता है. शून्य पटल पर ही स्वस्थ विचारों का आगमन होता है.

पृथ्वी- पृथ्वी का सबसे बड़ा गुण गुरूत्वाकर्ष है. जिस व्यक्ति के पैर धरती पर टिके रहते हैं, वही अगला कदम सोच-समझकर उठाता है और धरती के महत्व को समझता है.

अपने इन्हीं पाँचों तत्वों को समझना और उनके अनुसार आचार-विचार करना प्राकृतिक चिकित्सा का मूल मंत्र है.

 

 

Thursday, August 4, 2022


राजै रसमै री तैसी बरखा समै री चढ़ी,

चंचला नचै री चकचौंध कौंध वारै री।

व्रती व्रत हारै हिए परत फुहारैं,

कछु छीरैं कछु धारैं जलधार जलधारैं री।

भनत कविंद कुंजभौन पौन सौरभ सों.

काके न कँपाय प्रान परहथ पारै री ?

काम कंदुका से फूल डोलि डोलि डारै, मन

और किए डारै ये कदंबन की डारै री।

 

                              कवींद्र 


तुम्हीं कान्हा हो, कन्हैया हो तुम।

तुम्हीं नन्दलाला, वासुदेव हो तुम।

तुम्हीं माखनचोर, चितचोर हो तुम।

तुम्हीं बाँसुरी वादक, सुदर्शन चक्रधारी हो तुम।

गोपों संग ग्वाला, गोपियों की प्रीत हो तुम।

राधा के मनमीत, द्वारकाधीश रूक्मिणी के।


डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, August 3, 2022

हाइकु

डॉ. मंजूश्री गर्ग


पास हो प्रिया

प्रियतम का प्यार

बढ़ता सदा.

1.


दूर हो प्रिय

प्रियतमा का प्यार

बढ़ता और.

2.