बाबूजी थे
सीधे-सच्चे
खोटे युग में खरे रहे वे
x x x x x
बरगद थे वे
झेले पतझर
फिर भी, साधो, हरे हरे वे।
कुमार रवीन्द्र
No comments:
Post a Comment