Thursday, March 21, 2019


हिन्दी भाषा का मानक रूप पुस्तक का अंश- (डॉ. मंजूश्री गर्ग)

  लिपि-परिचय

लिपि से अभिप्राय ऐसे प्रतीक और चिह्नों से है जिनके माध्यम से किसी भाषा में भाव और विचार लिखित रूप में अभिव्यक्त होते हैं.
                                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग
हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है, इसे नंदिनागरी भी कहते हैं. देवनागरी लिपि अक्षरात्मक है, इसमें एक इकाई में एक से अधिक वर्ण जुड़े हुये होते है. जैसे- क+अ=क, क+ज=क्ष.
अंग्रेजी भाषा की लिपि रोमन लिपि है, यह वर्णात्मक लिपि है, इसमें प्रत्येक इकाई स्वतंत्र वर्ण होती है. जैसे- RAMA.
अक्षर

ध्वनि की वह छोटी सी छोटी इकाई जिसका उच्चारण एक झटके में होता है, अक्षर कहलाती है. जैसे- क, , , जा, लो, आदि.
देवनागरी लिपि की विशेषतायें-

1.देवनागरी लिपि अत्यधिक वैज्ञानिक है.
2.देवनागरी लिपि बायें से दाईं ओर लिखी जाती है.
3.परस्पर सम्बद्ध स्वर ध्वनियों को एक साथ रखा गया है, जैसे-
अ, आ, इ,ई, आदि.
4.देवनागरी लिपि मात्रात्मक लिपि है, व्यंजनों पर मात्रा लगाकर लिखी जाती है.
5.देवनागरी लिपि में प्रत्येक स्वर के अपने मात्रा चिन्ह हैं.
6.व्यंजनों में भी अल्पप्राण ध्वनि, फिर महाप्राण ध्वनि, अघोष और सघोष का क्रम, अन्त में अनुनासिक का निश्चित क्रम है.
7.देवनागरी लिपि में एक ध्वनि के लिये एक ही वर्ण है. जबकि रोमन लिपि में क् ध्वनि के लिये दो वर्ण c,k; ज् ध्वनि के लिये भी दो वर्ण g, j हैं.
.   8.कुछ व्यंजनों के संयुक्त होने पर उनके लिये संयुक्ताक्षर का प्रयोग होता है, जैसे-प्र= प्+
वर्ण-परिचय
हिंदी भाषा में 13 स्वर और 36 व्यंजन हैं. कुल वर्णों की संख्या 49 है.
स्वर
, , , , , , , , , , , अं, अः .
प्रत्येक स्वर स्वतंत्र रूप से भी शब्द में प्रयोग होता है और व्यंजन के साथ मिलकर भी.
लघु स्वर-
, , , , , अं, अः.  ये स्वर जब किसी व्यंजन के साथ या स्वतंत्र रूप से किसी शब्द में आते हैं तो इनकी मात्रा(I) एक(लघु) मानी जाती है. लघु स्वरों की मात्राओं के चिह्न हैं-
, कि, कु, के, कृ, कं, कः.
दीर्घ स्वर-
, , , , , ,. ये स्वर जब किसी व्यंजन के साथ या स्वतंत्र रूप से किसी शब्द में आते हैं तो इनकी मात्रा(S) दो(दीर्घ) मानी जाती है. दीर्घ स्वरों की मात्राओं के चिह्न हैं-
का, की, कू, कै, को, कौ.

व्यंजन-
1.  कंठय-क, , , , ङ.
2.  तालव्य-च, , , , ञ.
3.  मूर्धन्य- ट,, , , ण.
4.  दंत्य- त, , , , .
5.  ओष्ठय- प, , , , म.
6.  अंतःस्थ- य, ,, व. 
7.  ऊष्म- श, , , ह.
संयुक्त वर्ण- क+ज=क्ष
           त+र=त्र
           ज+ञ=ज्ञ
वर्ण भेद-

हिंदी वर्णों को हम दो आधार पर विभाजित कर सकते हैं-
1.  श्वास वायु की मात्रा के आधार पर वर्णों के दो भेद होते हैं-
क.  अल्पप्राण
ख. महाप्राण
क.अल्पप्राण ध्वनि-
जिन वर्णों के उच्चारण में श्वास वायु कम मात्रा में बाहर निकलती है, वे अल्पप्राण कहलाते हैं. वर्ण माला की प्रत्येक पंक्ति का पहला, तीसरा, पाँचवा(क, , ; , , ; ,, ; , , ; , , म) वर्ण और य, , ,
14.
वर्ण अल्पप्राण हैं. सभी स्वर भी अल्पप्राण हैं.
ख.महाप्राण ध्वनि-
जिन वर्णों के उच्चारण में श्वास वायु अधिक मात्रा में बाहर निकलती है वे वर्ण महाप्राण कहलाते हैं. वर्ण माला की प्रत्येक पंक्ति का दूसरा, चौथा(ख, ; , ; , ; , ; , भ) वर्ण और श, , , , वर्ण महाप्राण हैं.

2.  स्वर तंत्रियो की स्थिति और कम्पन के आधार पर भी वर्णों के दो भेद होते हैं-

अ.  घोष वर्ण
आ.                 अघोष वर्ण
                                  i.   घोष वर्ण
घोष का अर्थ है नाद या गूँज. जिन वर्णों का उच्चारण करते समय प्राणवायु में कम्पन होने के कारण घोष या गूँज उत्पन्न होती है, घोष वर्ण कहते हैं. क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, प वर्ग के अंतिम तीन-तीन वर्ण(ग,, ; ,, ; , , ; , , ; , , म) य, , , व और स्वर (अ, , , , , , , , , , ऋ) घोष वर्ण हैं. इनकी संख्या तीस है.

                                 ii.   अघोष वर्ण
अघोष वर्णों के उच्चारण में प्राण वायु में कम्पन                
नहीं होता, इसलिये इन्हें अघोष कहते हैं. सभी वर्गों के पहले और दूसरे वर्ण(क, ; , ; ,; ,; ,फ), , , स वर्ण अघोष हैं. इनकी संख्या तेरह है.
अनुनासिक-
प्रत्येक वर्ग का पाँचवा वर्ण अनुनासिक है, इसकी ध्वनि नाक से निकलती है. आजकल हिंदी भाषा में सभी अनुनासिक वर्णों को के रूप में मान्यता मिल गयी है और इसकी मात्रा के रूप में का प्रयोग होता है.
                   क्रमशः








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