उन्मुक्त गगन के पंछी हो तुम, क्यों पिंजरे में तुम्हें कैद करें।
प्यार हमारा सच्चा है तो, बिन डोर खिंचे चले आओगे।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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