जिंदगी की किताब
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
जिंदगी है एक कोरी किताब
जिसकी पृष्ठ संख्या असीमित.
जिसका हर पृष्ठ रंगा समय ने-
कहीं बिखराये पुष्पों के गुच्छे
कहीं डाली काँटों की टहनी.
कोई दुःख की स्मृति में भूला
कोई सुख की स्मृति में भूला.
हर पल लिखती रही कलम
कभी ना थकता समय का हाथ.
किन्तु, अचानक खत्म होती उसकी स्याही
और छूट पड़ती कलम हाथ से.
ज्यों ही करता मौत हस्ताक्षर
बंद हो जाती गतिशील किताब.
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