Friday, January 27, 2023


डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

जन्म-तिथि- 27 मई, सन्1894ई. राजनाँदगाँव, छत्तीसगढ़

पुण्य-तिथि- 28 दिसंबर सन् 1971ई. रायपुर, छत्तीसगढ़

 

डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल के प्रमुख रचनाकार, निबंधकार व पत्रकार थे। द्विवेदी युग की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती के बहुत समय तक सहायक संपादक व संपादक रहे और हिन्दी साहित्य की सेवा की। हिन्दी साहित्य के प्रमुख आन्दोलन आदर्शोन्मुख यथार्थवाद में बख्शी जी की अहम् भूमिका रही व बख्शी जी अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुड़े रहे।

 

डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी का जन्म छत्तीसगढ़ के राजनादगाँव के छोटे से कस्बे खैरागढ़ में एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। हाई स्कूल तक की शिक्षा खैरागढ़ में हुई थी और बनारस विश्व विद्यालय से बी. ए. किया था। बख्शी जी की प्रतिभा को सर्वप्रथम खैरागढ़ के इतिहासकार लाल प्रद्युम्न सिंह ने पहचाना था और बख्शी जी को साहित्य सृजन के लिये प्रेरित किया था। सन् 1911 ई. में जबलपुर से निकलने वाली हितकारिणी पत्रिका में बख्शी जी की प्रथम कहानी तारिणी प्रकाशित हुई। बख्शी जी का पहला निबन्ध सोना निकालने वाली चींटियाँ सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुआ।

   डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी ने सर्वप्रथम सन् 1916 ई. से सन् 1919 तक राजनाँद गाँव के स्टेट हाईस्कूल में संस्कृत शिक्षा के रूप में सेवा की। दूसरी बार बख्शी जी सन् 1929 से सन् 1949 तक खैरागढ़ विक्टोरिया हाईस्कूल में अंग्रेजी के शिक्षक रहे। तीसरी बार बख्शी जी सन् 1959 में दिग्विजय कॉलेज, राजनाँद गाँव में हिन्दी के प्रोफेसर बने और आजीवन वहीं कार्यरत रहे।

 

डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी जी विशेष रूप से निबंधकार के रूप में जाने जाते हैं लेकिन इन्होंने कवितायें, कहानियाँ, नाटक, उपन्यास, आत्मकथा, संस्मरण भी लिखे हैं-

उदाहरण-

कविता संकलन- अश्रुदल, शतदल, पंचपात्र, आदि।

नाटक- अन्नपूर्णा का मन्दिर, उन्मुक्ति का बन्धन

उपन्यास- कथाचक्र, भोला(बाल उपन्यास), वे दिन(बाल उपन्यास)

समालोचनात्मक निबंध- हिन्दी साहित्य विमर्श, विश्व साहित्य, हिन्दी कहानी साहित्य,हिन्दी उपन्यास साहित्य, प्रदीप(प्राचीन एवम् अर्वाचीन कविताओं का आलोचनात्मक अध्ययन

साहित्यिक व सांस्कृतिक निबंध- बिखरे पन्ने, मेरा देश

आत्मकथा- मेरी आत्मकथा

संस्मरण- जिन्हें नहीं भूलूँगा

डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी जी को सन् 1949 ई. में हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्य वाचस्पति(पीएच. डी) की डिग्री से अलंकृत किया गया और सन् 1969 ई. में सागर विश्व विद्यालय द्वारा डी. लिट् की उपाधि से विभूषित किया गया।

बख्शी जी की कविता का उदाहरण-

 

मातृ मूर्ति

क्या तुमने मेरी माता का देखा दिव्याकार

उसकी प्रभा देखकर विस्मय-मुग्ध हुआ संसार।

 

अति उन्नत ललाट पर हिमगिरि का है मुकुट विशाल,

पड़ा हुआ है वक्षस्थल पर जह्नसुता का हार।

 

हरित शस्य से श्यामल रहता है उसका परिधान,

विन्ध्या-कटि पर हुई मेखला देवी की जलधार।।

 

भव्य भाल पर शोभित होता सूर्य रश्मि सिंदूर,

पाद पद्म को प्रक्षालित है करता सिंधु अपार।

 

                                     डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी

 

 

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