हिन्दी साहित्य
Friday, August 31, 2018
ना कोई आशा, ना आकांक्षा,
ना कोई चाहत मन में।
फिर भी कौन सी है प्यास
?
जो बुझती ही नहीं।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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