Thursday, August 9, 2018




मैथिलीशरण गुप्त


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 3 अगस्त, सन् 1886 ई0
पुण्य-तिथि- 12 दिसम्बर, सन् 1964 ई0

मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी साहित्य के प्रथम खड़ी बोली के कवि हैं, आपने प्रारंभ ब्रजभाषा में कवितायें लिखने से किया, लेकिन महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से खड़ी बोली को अपनी कविताओं का माध्यम बनाया. महावीर प्रसाद द्विवेदी आपकी रचनाओं में सुधार करके सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित करते थे. सन् 1907 ई0 में आपकी पहली खड़ी बोली की कविता हेमंत शीर्षक से सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई. आपने खड़ी बोली को काव्य की भाषा बनाने में अथक प्रयास किया. धीरे-धीरे नये कवि ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण खड़ी बोली हिन्दी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाने लगे.

मैथिलीशरण गुप्त जी की कृति भारत-भारती(सन् 1912 ई0 में प्रकाशित) स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय स्वतन्त्रता सेनानियों के लिये प्रेरणादायक रही. इसमें जहाँ भारत के अतीत के गौरव का वर्णन है वहीं वर्तमान की दयनीय दशा का भी वर्णन है. साथ ही नवयुवकों में उज्जवल भविष्य के लिये उत्साह और उमंग उत्पन्न करने वाली रचनायें भी हैं. भारत-भारती से प्रभावित होकर ही गाँधीजी ने आपको राष्ट्र कवि की पदवी से सम्मानित किया था.

साकेत महाकाव्य में उर्मिला के माध्यम से समसामयिक नारियों के प्रति उपेक्षित भाव को अभिव्यक्त किया है. पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा गुप्त जी के काव्य में सर्वत्र देखने को मिलती है.

मैथिलीशरण गुप्त सन् 1941 ई0 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के अन्तर्गत जेल गये थे. सन् 1952 ई0 से सन् 1964 ई0 तक राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे. आगरा विश्वविद्यालय और हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा आपको डी0 लिट्0 की उपाधि से सम्मानित किया गया. आप पद्म विभूषण और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गये. मध्य प्रदेश के शिक्षा राज्यमंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने मैथिलीशरण गुप्त के जन्म दिन को 3 अगस्त को प्रतिवर्ष कवि दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया. आज पूरा भारतवर्ष दद्दा जी के जन्म दिवस को कवि दिवस के रूप में मनाता है.

मैथिलीशरण गुप्त जी की प्रत्येक व्यक्ति के लिये प्रेरणादायी कालजयी पंक्तियाँ-

नर हो ना निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो,
जग में रहकर कुछ नाम करो.




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