प्रस्तुत पंक्तियों में कवि
ने समाज की समसामयिक पर्यावरण की समस्या को अभिव्यक्त किया है-
मत छुओ इस झील को।
कंकड़ी मारो नहीं,
पत्तियाँ डारो नहीं,
फूल मत बोरो।
और कागज की तरी इसमें नहीं
छोड़ो।
खेल में तुमको पुलक-उन्मेष
होता है,
लहर बनने में सलिल को क्लेश
होता है।
रामधारी सिंह ‘दिनकर’
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