Tuesday, August 28, 2018




प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने समाज की समसामयिक पर्यावरण की समस्या को अभिव्यक्त किया है-

मत छुओ इस झील को।
कंकड़ी मारो नहीं,
पत्तियाँ डारो नहीं,
फूल मत बोरो।
और कागज की तरी इसमें नहीं छोड़ो।

खेल में तुमको पुलक-उन्मेष होता है,
लहर बनने में सलिल को क्लेश होता है।

                                             रामधारी सिंह दिनकर

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