डॉ0 नामवर सिंह
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि- 28 जुलाई सन् 1926 ई0
जन्म-तिथि- 1 मई सन् 1927 ई0( स्कूल में नामांकन के लिये)
डॉ0 नामवर सिंह हिन्दी के
प्रसिद्ध आलोचक, शोधकार व निबन्धकार हैं, आप आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के
शिष्य रहे हैं. डॉ0 नामवर सिंह अध्ययनशील व विचारक प्रकृति के हैं. आपने अपनी
आलोचनायें हिन्दी में अपभ्रंश भाषा से प्रारंभ कर छायावाद, प्रगतिवाद व अति आधुनिक
काल के समसामयिक साहित्य तक लिखी हैं. काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिन्दी में
एम0ए0 और पीएच0 डी0 की उपाधि प्राप्त करने के बाद अध्यापन कार्य किया. प्रारंभ में
ब्रजभाषा में कवितायें लिखते थे, बाद में खड़ी बोली में लिखनी शुरू की. सन् 1940
ई0 में बनारस में अपने सहयोगी पारसनाथ मिश्र सेवक के साथ मिलकर नवयुवक
साहित्यिक संघ की स्थापना की जिसमें हर सप्ताह साहित्यिक गोष्ठी होती थी. बाद
में इस संस्था का नाम साहित्यिक संघ रह गया. आप प्रगतिशील लेखक संघ से भी
जुड़े रहे और आपने साहित्यिक प्रगतिशाल
आन्दोलन में भाग लिया.
डॉ0 नामवर सिंह जी के
व्यक्तित्व के विकास में काशी की परम्परा और परिवेश की अहम भूमिका है. आपने सन्
1965 ई0 से सन् 1967 ई0 तक जनयुग(साप्ताहिक) और सन् 1967 ई0 से सन् 1990 ई0
तक आलोचना(त्रैमासिक) नामक दो हिन्दी पत्रिकाओं का सम्पादन किया. कविता
के नये प्रतिमान पुस्तक में समालोचनात्मक निबन्ध हैं. इस पुस्तक के लिये आपको
सन् 1971 ई0 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. आपके
निबन्धों में व्याख्यान कला का पुट होने के कारण निबन्ध रोचक हो गये हैं.
डॉ0 नामवर सिंह दवारा लिखे
गये शोध-ग्रंथ हैं-
1. हिन्दी के विकास में अपभ्रंश
का योग- सन् 1952 ई0 में प्रकाशित
2. पृथ्वीराज रासो की भाषा-
सन् 1956 ई0 में प्रकाशित
डॉ0 नामवर सिंह द्वारा आलोचना
पर लिखी पुस्तकें हैं-
1. आधुनिक साहित्य की
प्रवृत्तियाँ- सन् 1954 ई0 में प्रकाशित
2. छायावाद- सन् 1955 ई0 में
प्रकाशित
3. इतिहास और आलोचना- सन् 1957
ई0 में प्रकाशित
4. कहानीः नयी कहानी- सन् 1964
ई0 में प्रकाशित
5. कविता के नये प्रतिमान- सन्
1968 ई0 में प्रकाशित
6. दूसरी परम्परा की खोज- सन्
1982 ई0 में प्रकाशित
7. वाद-विवाद और संवाद- सन्
1989 ई0 में प्रकाशित
डॉ0 नामवर सिंह जी की कविता
का उदाहरण-
तुम्हार प्यार बन सावन
बरसता याद के रसकन
कि पाकर मोतियों का धन
उमड़ पड़ते नयन निर्धन।
विरह की घाटियों में भी
मिलन के मेघ मंडराते।
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